अंबेडकर अस्पताल में जरूरी पदों तक को नहीं भरा गया:राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल ऐसा जहां नर्स बेड व दवाइयां सबसे कम, सीढ़ी पर रख रहे मरीजों को

राज्य के सबसे बड़े सरकारी अंबेडकर अस्पताल को ही अब इलाज की जरूरत पड़ गई है। अस्पताल की ओपीडी में एक हजार से ज्यादा लोग रोज आते हैं। अधिकतर बिना इलाज के ही वापस जा रहे हैं। अस्पताल में लगे बेड हर जगह से खराब हो रहे हैं। गद्दे फट गए हैं। बेड ऊपर-नीचे तक नहीं होते हैं। इतना ही नहीं इमरजेंसी वार्ड तक में मरीजों के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं है। अस्पताल के शौचालय इतने गंदे हैं कि लोग वहां जाने से भी कतराते हैं। दैनिक भास्कर ने अस्पताल के सभी वार्डों की पड़ताल की तो पता चला कि हर वार्ड में सुविधाओं की कमी है। कई वार्डों में मरीजों की संख्या इतनी बढ़ जाती है कि उन्हें बरामदे में रखा जाता है। कई मरीज और उनके घरवाले रात में सीढ़ियों में सोने में मजबूर हो रहे हैं। अस्पताल में जगह-जगह फर्श के टाइल्स उखड़ रहे हैं। मरीजों और उनके परिवारवालों को पीने के लिए साफ पानी तक नहीं मिल रहा है। जहां-जहां वॉटर कूलर लगाए गए वो खराब हो रहे हैं। कुछ के तो नल भी खराब हो गए हैं। अस्पताल में लगाई लिफ्ट भी नहीं चल रही है। मरीजों को भी रैंप से ले जाना पड़ रहा है। वॉर्ड ब्वाय की इतनी कमी है कि हर मरीज को उनके परिवारवाले ही लाना ले जाना करते हैं। टूटे स्ट्रेचर और व्हीलचेयर में मरीजों को ले जाना भी लोगों को भारी पड़ रहा है। एक्सरे, सोनोग्राफी से लेकर हर जांच के लिए मरीजों को घंटों तक इंतजार करना पड़ता है। ऐसे में बीमार मरीज और बीमार होते हैं। घरवालों का आरोप है कि अस्पताल में ऐसी कोई बड़ी सुविधा नहीं है जिससे मरीजों को राहत​ मिल सके। इमरजेंसी वार्ड में नहीं मिल रहे बेड
अंबेडकर अस्पताल में आने वाले मरीजों को इमरजेंसी में लाने के लिए एक अलग गेट बनाया गया है। अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड भी अलग है। लेकिन यहां गेट के पास ही गड्ढे बन गए हैं। एंबुलेंस या अन्य मरीज जो इमरजेंसी में अस्पताल पहुंचते हैं, उन्हें यहां आने के बाद मरीज को उतारने और अपनी गाड़ी व्यवस्थित करने में ही 5 मिनट से ज्यादा का समय लग जाता है। बारिश के समय यह रास्ता और ज्यादा खराब हो जाता है। कई बार तो एंबुलेंस के चक्के भी फंस जाते हैं। इमरजेंसी में आने वाले मरीजों के लिए पर्याप्त बेड भी नहीं है। कई बार मरीजों का इलाज बरामदे में ही किया जाता है। गंभीर स्थिति के मरीजों को भी व्यापक इलाज नहीं मिल रहा है। कई बार तो इक्यूपमेंट की भी कमी हो जाती है।
मरीज बरामदे-सीढ़ियों पर गुजार रहे दिन
अस्पताल में पहुंचने वाले मरीजों के परिजनों के ठहरने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। परिवार वाले दिन में कभी गार्डन, कभी अस्पताल की सीढ़ी, पार्किंग तो अधिकतर समय बरामदे में ही अपना समय बिताते हैं। रात में रुकने वाले मरीजों की परेशानी और बढ़ जाती है। उन्हें खुले बरामदे में सोना पड़ता है। कई बार इस बात को लेकर उनका अस्पताल स्टाफ से विवाद भी होता है। अस्पताल का नर्सिंग स्टाफ, कर्मचारी, वार्ड ब्वाय तक मरीजों से सही तरीके से बात नहीं करते हैं। हर बात में उनको झिड़का जाता है। बाहर से आने वाले खासतौर पर गांवों से आने वाले मरीजों और उनके परिवारवालों से जमकर बदतमीजी की जाती है। अस्पताल में स्टाफ की भारी कमी
अस्पताल में मैन पावर की कमी है। मानकों के अनुसार एक समय में 4 से 5 सौ का नर्सिंग स्टाफ और कर्मचारी होने चाहिए। लेकिन इनकी संख्या आधी भी नहीं है। प्रबंधन भर्ती को लेकर कभी गंभीर ही नहीं रहता है। वित्तीय मंजूरी नहीं मिलने की बात कहकर अस्पताल में जरूरी स्टाफ तक की भर्ती नहीं की जा रही है। समाधान
जिन-जिन वार्डों में परेशानी बताई जा रही है वहां जांच कराई जाएगी। एक हफ्ते के भीतर सुधार कर दिया जाएगा। सभी ​विभागाध्यक्षों से इसकी रिपोर्ट भी ली जाएगी। -डॉ. संतोष सोनकर, अधीक्षक अंबेडकर अस्पताल

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