बीकानेर | जैन धर्म में वर्षीतप एक अत्यंत उच्च कोटि का आध्यात्मिक अनुष्ठान माना जाता है। वर्षीतप का अर्थ है एक वर्ष तक नियमित तपस्या करना। इस तपस्या में साधक एक वर्ष तक नियत क्रम से उपवास और अन्य आत्मशुद्धि के अभ्यास करते हैं। इसका उद्देश्य आत्मा को शुद्ध करना, कर्मों का क्षय करना और मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ना है। जैन धर्म की दृष्टि में वर्षी तप आध्यात्मिक अनुष्ठान है। इसमें साधक का मूल लक्ष्य चित्त शुद्धि है,जबकि वर्ष भर चलने वाले इस तप से लोगों को निरोगी काया भी मिलती है। ये उद्गार पत्रकारों से वार्ता के दौरान आचार्य महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती मुनि कमल कुमार ने कही। उन्होंने कहा इस बार भी तेरापंथ भवन में यह आयोजन 30 अप्रैल को होगा। जिसमें 21 जने पारणा करेंगे। शरीर को साधन मानकर आत्मा के शुद्धिकरण पर बल देता है। अहंकार, आसक्ति और इच्छाओं पर नियंत्रण सिखाता है। मोक्षमार्ग में सहायक है, क्योंकि तप से कर्मों का निर्जरा (क्षय) होता है। 46 वर्षों से लगातार कर रहे हैं वर्षीतप : आचार्य तुलसी से दीक्षा लेने वाले गंगाशहर के जन्मे मुनि कमल कुमार ने बताया कि वे पिछले 46 वर्षों से लगातार वर्षीतप कर रहे हैं। इसके अलावा मुनि विमल विहारी, मुनि श्रेयांस मुनि श्रेयांस कुमार, मुनि मुकेश कुमार आदि ने तप किए हैं।