प्रदेश में ब्यूरोक्रेट्स के विरुद्ध करप्शन और शासकीय नियमों की अवहेलना के मामले में लोकायुक्त द्वारा की जाने वाली जांच और उनके विरुद्ध कार्रवाई के लिए अभियोजन स्वीकृति के मामले में जानकारी न देने सरकार ने नया तरीका खोजा है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने इसको लेकर सरकार से जानकारी मांगी तो सरकार ने लिखित तौर पर यह कहकर जानकारी देने से इनकार कर दिया कि विधायक ने अधिकारियों के अभियोजना के संबंध में जानकारी मांगी है, शासकीय पत्राचार में अधिकारी शब्द का इस्तेमाल नहीं होता बल्कि शासकीय सेवक लिखा जाता है, इसलिए जानकारी नहीं दी जा सकती। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सिंघार ने विधानसभा के जरिए सरकार से पूछा था कि, लोकायुक्त संगठन द्वारा कुल कितने अधिकारियों के विरुद्ध अभियोजन की स्वीकृति सरकार से मांगी गई है। सरकार से यह भी पूछा गया था कि 2019 से 2024 के बीच कुल कितने मामलों में स्वीकृति दी गई है और किस तरह के प्रकरणों में नहीं दी गई है? जिन प्रकरणों में स्वीकृति दी है, क्या उनके मामले न्यायालय में पेश हो गए हैं? इसके साथ ही यह भी पूछा गया है कि जिनके मामले में स्वीकृति नहीं दी गई है, उसके नियम के बारे में जानकारी दी जाए। सरकार ने यह जवाब दिया है नेता प्रतिपक्ष के सवाल के लिखित जवाब में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की ओर से बताया गया है कि सामान्य प्रशासन विभाग के 1 नवम्बर 2014 के परिपत्र के अनुसार शासकीय प्रशासकीय व्यवहार में अधिकारी-कर्मचारी का संबोधन समाप्त कर दिया गया है। अब लोक सेवकों को शासकीय सेवक से संबोधित किए जाने के निर्देश हैं। विधायक के प्रश्न से अधिकारियों के शब्द का इस्तेमाल किए जाने से यह स्पष्ट नहीं है कि किन लोक सेवकों के संबंध में जानकारी मांगी गई है। इसलिए जानकारी नहीं दी जा सकती है।