भास्कर न्यूज | बेरमो/दुग्दा बेरमो अनुमंडल में समय के साथ खेती-किसानी के तरीकों में तेजी से बदलाव आ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में पहले जहां खेती के अधिकतर काम पशुओं के माध्यम से किए जाते थे, लेकिन अब यह परंपरा धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। धान की झड़ाई, खेत की जुताई जैसे कार्यों में मशीनों ने परंपरागत तरीकों की जगह ले ली है। इससे न केवल किसानों के श्रम में कमी आई है, बल्कि उत्पादन में तेजी और समय की बचत भी होने लगी है। किसान बताते हैं कि पहले पशुओं से धान झड़ाई में काफी समय और मेहनत लगती थी। नर्रा गांव के किसान विनोद महतो ने कहा कि चार डिसमिल की जमीन में उपजे धान झाड़ने में दो दिन तक का समय लग जाता था। खलिहान में बैल चलाना, धान फैलाना और बार-बार उसे उलट-पलट करना काफी मेहनत का काम था। लेकिन अब मशीनों के आने से परिस्थिति पूरी तरह बदल गई है। अब वही काम महज 10 से 15 मिनट में आसानी से निपट जाता है। थ्रेशर आपरेटर आनंद कुमार बताते हैं कि आधुनिक थ्रेशर मशीनों से एक घंटे में 40 डिसमिल क्षेत्रफल में तैयार हुई धान की फसल की झड़ाई हो जाती है। इसका खर्च भी किसानों की पहुंच में है। एक घंटे का खर्च करीब 1200 रुपए आता है। वहीं, एक एकड़ फसल की झड़ाई दो घंटे में पूरी की जा सकती है और खर्च 1200 से 2400 रुपए के बीच होता है। पहले जहां यह काम कई लोगों में की मेहनत और एक से दो दिनों के समय में पूरा होता था, अब मशीनों के कारण किसान कम समय में अधिक कार्य कर पा रहे हैं। किसानों ने कहा- तकनीक ने खेती को दी नई दिशा किसानों का कहना है कि मशीनों से जहां समय की बचत होती है, वहीं खेतों में काम करना भी आसान हो गया है। जुताई, बुआई, धान झड़ाई और फसल कटाई सभी में मशीनों के प्रयोग से खेती अधिक व्यवस्थित और उत्पादक बन रही है। इससे खेतों में मेहनत कम होने के साथ-साथ फसल की गुणवत्ता भी बेहतर हो रही है। ग्रामीणों का मानना है कि वैज्ञानिक युग की तकनीक ने खेती किसानी को नई दिशा दी है। हालांकि कई पुरानी परंपराएं अब खत्म होती जा रही है, लेकिन किसानों का कहना है कि बदलते समय व आवश्यकताओं को देखते हुए मशीनों का उपयोग लाभदायक साबित हो रहा है। मशीनों के कारण समय की बचत, कम श्रम और बेहतर उत्पादन की पद्धतियों को किसान तेजी से अपना रहे हैं।


