आनंद मार्ग आश्रम मेंआध्यात्मिक-सामाजिक सेमिनार का दूसरा दिन:स्पीकर नईम बोले: “ईश्वर को आनंद देने के लिए जो की जाने वाले साधना भक्ति का सर्वोच्च स्तर”

आनंद मार्ग आश्रम, बैरन बाजार रायपुर में दो दिन तक चले आध्यात्मिक-सामाजिक सेमिनार का समापन रविवार को हुआ। दूसरे दिन के स्पीकर नईम ने साधना, भक्ति, चक्र विज्ञान और माइक्रोवाइटा जैसे गूढ़ आध्यात्मिक विषयों पर बात की। नईम ने पहले अति नंदन विज्ञान और भक्ति-त्याग की व्याख्या की। उन्होंने बताया कि— नंदन विज्ञान / रागानुराग भक्ति वह है, जब साधक ईश्वर से स्वयं आनंद प्राप्त करने के लिए भक्ति करता है। अतिनंदन विज्ञान / रागात्मिका भक्ति वह है, जब साधक ईश्वर को आनंद देने के लिए भक्ति करता है। यह भक्ति का सर्वोच्च स्तर है। उन्होंने कहा कि राधा और मीरा की भक्ति इसी श्रेणी की थी। आनंद मार्ग के प्रवर्तक श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने जो “बाबा नाम केवलम” कीर्तन दिया है, वह भी इसी रागात्मिका भक्ति का रूप है। जब भक्त, भक्ति के सागर में डूबकर स्वयं को भुला देता है, तो इसे मोहन विज्ञान कहते हैं। उन्होंने जोर दिया कि भक्ति, साधना और आत्मसमर्पण ईश्वर प्राप्ति के लिए अनिवार्य हैं। चक्र विज्ञान और माइक्रोवाइटा का रहस्य दूसरे सत्र में नईम ने चक्र और माइक्रोवाइटा (अनुजीवत) पर विस्तृत प्रकाश डाला। उन्होंने बताया— मानव शरीर में छः प्रमुख चक्र होते हैं — मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा चक्र। सहस्रार चक्र कपाल के ऊपर स्थित होता है। ये चक्र शरीर में हार्मोन स्राव को नियंत्रित करते हैं और इसका असंतुलन व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक प्रगति को प्रभावित करता है। आनंद मार्ग की साधना से चक्र सशक्त होते हैं और मानसिक वृत्तियों पर नियंत्रण प्राप्त होता है। माइक्रोवाइटा के बारे में उन्होंने कहा कि ये इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन से भी सूक्ष्म होते हैं तथा भूमा-चित्त से प्रसारित होते हैं। जीवन का प्रारंभ इन्हीं माइक्रोवाइटा से होता है, न कि कार्बन परमाणु से। पहले दिन ऋतेश्वरानंद अवधूत ने भक्ति पर की थी बात मुख्य प्रशिक्षक आचार्य ऋतेश्वरानंद अवधूत ने “भक्ति” पर बात करते हुए हुए कहा कि भक्ति केवल बाहरी कर्मकांड नहीं, बल्कि अंतरात्मा का अनुभव है। उन्होंने वेदों का उल्लेख करते हुए कहा—
“भक्ति भगवत सेवा, भक्ति प्रेमस्वरूपिणी, भक्ति आनन्दरूपाच, भक्ति भक्तस्य जीवनम्।” इस श्लोक के माध्यम से उन्होंने बताया कि भक्ति जीवन का आधार है, जैसे मछली जल के बिना नहीं रह सकती, वैसे ही मानव भक्ति के बिना अधूरा है। मोक्ष का सर्वोच्च मार्ग है भक्ति आचार्य ऋतेश्वरानंद ने आदि शंकराचार्य के श्लोक “मोक्षकारणसमग्र्यां भक्तिरेव गरीयसी।”का उदाहरण देते हुए बताया कि मोक्ष प्राप्ति के सभी उपायों में भक्ति सर्वोच्च है। प्रउत की तीन मुख्य नीतियों पर चर्चा: उन्होंने समाज के संतुलित विकास के लिए PROUT यानी प्रोग्रेसिव यूटिलाइजेशन थ्योरी की तीन आधारभूत बातों को रेखांकित किया: ​​​​​​​संस्था की मीडिया प्रभारी मनीषा दासे ने बताया कि आनंद मार्ग के ऐसे आयोजनों के माध्यम से आध्यात्मिक चेतना, सांस्कृतिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के प्रति समाज को जागरूक करने का प्रयास लगातार किया जा रहा है।

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