आबकारी विभाग:दो नंबर की शराब के सिंडिकेट की जांच में 30 अफसर,EOW ने मुकदमे की मंजूरी मांगी

आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) आबकारी घोटाले की हर कड़ी को सुलझा चुकी है। जांच में उन्होंने 30 आबकारी अधिकारियों की संलिप्तता पाई है। ये अफसर जिलों में पदस्थ होकर अवैध तरीके से शराब बेचने के सिंडिकेट में सहयोग करते थे। इसमें से 21 अफसरों के नाम एफआईआर में भी दर्ज हैं। बाकी 9 अफसरों की जानकारी जांच के दौरान मिली है। ईओडब्ल्यू ने डेढ़ महीने पहले इन अफसरों पर मुकदमा चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति मांगी है। लेकिन, फाइल अभी तक नहीं लौटी। मंत्रालय के सूत्रों की मानें तो अगर अभियोजन स्वीकृति सरकार दे देती है तो आधा विभाग खाली हो जाएगा। जिलों में आबकारी अधिकारी ही नहीं बचेंगे। यही वजह है कि मामले में कोई भी अफसर जवाब देने को तैयार नहीं हो रहा है।
2800 करोड़ की दो नंबर की शराब सरकारी दुकानों से बेची
ईओडब्ल्यू ने होलोग्राम बनाने वाली प्राइम कंपनी का लैपटॉप जब्त कर रखा है। इस लैपटॉप को रिकवर करने के बाद अब इस शराब घोटाले का सही आंकड़ा सामने आया है। करीब 60 लाख पेटी के लिए नकली होलोग्राम बनाए गए थे। एक पेटी में 48 बोतल आती हैं। यानी 28 करोड़ 80 लाख बोतलें दो नंबर में बेची गईं। एक बोतल को 80 से 100 रुपए के बीच में बेचा जाता था। इस तरह करीब 2800 करोड़ की दो नंबर की शराब सरकारी दुकानों के जरिए बेची गई। एक ही सीरियल के कई होलोग्राम, इन्हें ऑपरेट कराते थे अफसर जिलों में एक ही सीरियल नंबर के दो या उससे अधिक होलोग्राम प्रिंट किए जाते थे। एक सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज होता था बाकी को अवैध तरीके से सरकारी दुकानों में भेजा जाता था। इसका रिकॉर्ड अलग रखा जाता था। एक बोतल टैक्स सरकार को जाता था और उसी सीरियल नंबर से बेचे गए बाकी बोतलों का पूरा हिसाब किताब अधिकारियों और सिंडिकेट की जेब में जाता था। इसके लिए दुकान में दो गल्लों की व्यवस्था की गई थी। इसको ऑपरेट करने के लिए अलग सॉफ्टवेयर बनाया गया था। जिसे ऑपरेट करने का काम अरुणपति त्रिपाठी करता था। बाकी जिलों के अफसर इस दो नंबर की व्यवस्था को संरक्षण देने के साथ-साथ इसमें हिस्सेदार भी थे। इसके सबूत ईओडब्ल्यू को मिल चुके हैं। इन अफसरों पर हुई है एफआईआर {जनार्दन कौरव, सहायक जिला आबकारी अधिकारी
{ अनिमेष नेताम, उपायुक्त
{ विजय सेन शर्मा, उपायुक्त
{ अरविंद कुमार पटले, सहायक आयुक्त
{ प्रमोद कुमार नेताम, सहायक आयुक्त
{ रामकृष्ण मिश्रा,
सहायक आयुक्त
{ विकास गोस्वामी, सहायक आयुक्त
{ इकबाल खान, जिला आबकारी अधिकारी
{ नितिन खंडूजा, सहायक जिला आबकारी अधिकारी
{ नवीन तोमर, सहायक आयुक्त मंजूश्री कसेर, जिला आबकारी अधिकारी
{ सौरभ बक्सी, सहायक आयुक्त
{ दिनकर वासनिक, सहायक आयुक्त
{ आशीष श्रीवास्तव, अतिरिक्त आयुक्त
{ अशोक सिंह, जिला आबकारी अधिकारी
{ मोहित जायसवाल, जिला आबकारी अधिकारी
{ नीतू नोतनी, उपायुक्त
{ रवीश तिवारी, सहायक आयुक्त
{ गरीब पाल दर्दी, जिला आबकारी अधिकारी
{ नोहर सिंह ठाकुर, जिला आबकारी अधिकारी
{ सोनल नेताम, सहायक आयुक्त फंसे अफसरों का तर्क: सिस्टम की गलती थी
शराब घोटाले में फंसे अफसरों ने भाजपा संगठन से संपर्क किया था। उन्होंने तर्क दिया कि हमारी नौकरी को 10-20 साल हो चुके हैं। कुछ ने 15 साल रमन सरकार में काम किया, लेकिन तब एक भी आरोप नहीं लगा। कांग्रेस सरकार में हम पर दबाव बनाकर काम करवाया गया। अब साय सरकार में भी हम ही काम कर रहे हैं, लेकिन कहीं कोई गड़बड़ी नहीं हो रही। यानी गलती हमारी नहीं सिस्टम की थी। एक लाइजनर का नाम भी आया सामने
एफएल-10 व्यवस्था के तहत अंग्रेजी शराब कंपनियों से लाइजनिंग का काम अतुल सिन्हा देखा करता था। इसके सबूत ईओडब्ल्यू को जांच में मिले हैं। किस कंपनी की शराब ज्यादा बिकेगी और किसी खपत कम होगी, इसमें सिन्हा की भूमिका अहम थी। इसके बदले वह शराब कंपनी से फीस भी लेता था। विधि विभाग से अभियोजन स्वीकृति का पत्र हमारे पास एक सप्ताह पहले ही आया है। परीक्षण करने के बाद ही जवाब दिया जाएगा। इसके बाद शासन इस संबंध में निर्णय लेगी।
– आर संगीता, सचिव, आबकारी विभाग

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