आम्रपाली चंद्रगुप्त परियोजना की 417 एकड़ भूमि के कागजात से हुई छेड़छाड़

सीसीएल की आम्रपाली चंद्रगुप्त कोल परियोजना की 417 एकड़ भूमि के कागजात में गड़बड़ी का मामला सामने आया है। अपराध अनुसंधान विभाग (सीआइडी) ने जांच के दौरान इसकी पुष्टि की और राज्य सरकार से आरोपियों के िखलाफ कार्रवाई की अनुशंसा की है। सीआईडी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि निजी लाभ के लिए साजिश के तहत 417 एकड़ जमीन की प्रकृति का उल्लेख किए बगैर आम्रपाली चंद्रगुप्त परियोजना को प्रमाण पत्र जारी किया गया। विवादित भूमि की प्रकृति के लिए वन विभाग व अन्य विभाग से प्रमाण-पत्र नहीं लिया गया। िरपोर्ट के अनुसार, सीओ केरेडारी ने जमीन की विवरणी में प्लॉट, रकबा व अन्य बिंदुओं से छेड़छाड़ की। परियोजना पदाधिकारियों ने भी भूमि की खाता संख्या का उल्लेख नहीं किया। राजस्व पदाधिकारी, सीओ और परियोजना पदाधिकारियों ने जमीन अधिग्रहण की निर्धारित प्रक्रिया के प्रतिकूल कार्य किया। सीआईडी के आईजी सुदर्शन प्रसाद मंडल ने गृह कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव से इस मामले में पत्र िलखा है। रिपोर्ट में हजारीबाग के तत्कालीन उपायुक्त व केरेडारी सीओ की भूमिका पर सवाल उठाया है। सीआईडी ने जांच में पाया कि हजारीबाग के तत्कालीन डीसी कार्यालय ने 25 जून 2022 को सीसीएल के आम्रपाली चंद्रगुप्त क्षेत्र के लिए 417.06 एकड़ भूमि का प्रमाण पत्र निर्गत किया। उस प्रमाण पत्र में भूमि की प्रकृति शून्य दर्शाते हुए यह प्रमाण पत्र जारी किया गया। उपायुक्त के माध्यम से निर्गत पत्र में न तो खाता नंबर का उल्लेख है और न ही चिह्नित भूमि की प्रकृति का जिक्र किया गया है। केरेडारी सीओ के साथ तत्कालीन डीसी की भी संदिग्ध भूमिका सीआईडी ने अपनी जांच में पाया है कि केरेडारी सीओ ने पचड़ा, चट्टी बरियातू और बघई खाप से संबंधित दस्तावेजों की प्रमाणित सूची में भी प्लॉट और रकबा में छेड़छाड़ पेंसिल से की। केरेडारी सीओ ने 21 जून 2021 को हजारीबाग के तत्कालीन डीसी को जमीन संबंधित जो विवरणी दी थी, उसमें जमीन की प्रकृति जंगल-झाड़ी बताई थी। बावजूद तत्कालीन उपायुक्त ने जमीन की प्रकृति शून्य अंकित की, सीओ की रिपोर्ट की अनदेखी कर स्वयं प्रमाण पत्र निर्गत किया। जांच में यह भी खुलासा हुआ है कि चंद्रगुप्त कोल परियोजना के परियोजना पदाधिकारी ने 16 अप्रैल 2022 को डीसी, हजारीबाग को जमीन संबंधित जो विवरणी दी थी, उसमें खाता नंबर व जमीन की प्रकृति का जिक्र नहीं था। दस्तावेज नहीं मिलने के लिए न तो जिम्मेदारी तय की, न ही दस्तावेज प्राप्त करने के लिए सार्थक प्रयास किया गया।

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