गुरमीत लूथरा | अमृतसर गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ. करमजीत सिंह द्वारा आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के सामने की गई टिप्पणियों को लेकर सिख पंथ में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। श्री अकालतख्त के जत्थेदार संबंधी सेवा नियम बनाने को लेकर गठित कमेटी की सदस्यता से वीसी को हटाने के समर्थन में भाजपा, शिअद अमृतसर व सिख बुद्धिजीवियों की राय अलग-अलग है। भाजपा वीसी को हटाने का विरोध कर रही है तो शिअद अमृतसर वीसी को हटाने का समर्थन करते हुए उन्हें श्री अकालतख्त पर तलब करने की मांग कर रही है। दरअसल डॉ. कर्मजीत सिंह ने केरल के कोच्चि विश्वविद्यालय में आरएसएस द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में वेदों के दर्शन को गुरु नानक देव जी के सिद्धांतों से जोड़ने का प्रयास किया था। शिरोमणि अकाली दल अमृतसर के महासचिव उपकार सिंह संधू ने इस बयान की कड़ी निंदा करते हुए कहा है कि यह सिख सिद्धांतों के खिलाफ है। संधू ने आरोप लगाया कि कुलपति ने सिख सिद्धांतों के विरुद्ध जाकर असहनीय लापरवाही दिखाई है। उन्होंने तर्क दिया कि गुरु नानक साहिब का पूरा जीवन और दर्शन ब्राह्मणवाद द्वारा प्रचारित वेदों के कर्मकांडों और पाखंडों के खिलाफ था, जबकि कुलपति दोनों को एक जैसा बता रहे हैं। उन्होंने कहा कि शिरोमणि कमेटी को न केवल इस कुलपति को सिख विद्वानों की पांच सदस्यीय समिति से हटाना चाहिए, बल्कि इस तथाकथित विद्वान को श्री अकालतख्त साहिब पर तलब कर सिख सिद्धांतों के अनुसार दंडित भी करना चाहिए। सिख स्कालर एवं राजनीतिक चिंतक डा. रणबीर सिंह ने कहा है कि वीसी डा. कर्मजीत को जत्थेदार के सेवा नियम तय करने के लिए गठित कमेटी से हटाना तर्कसंगत नहीं है। एसजीपीसी को ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए था। एसजीपीसी ऐसा कर सिख बुद्धिजीवी से अन्याय कर रही है। इससे सिख पंथ में गलत संदेश जाएगा। उन्होंने कहा कि एसजीपीसी को संकुचित नजरिया नहीं रखना चाहिए क्योंकि विचारों की अभिव्यक्ति करना देशवासियों का नैतिक अधिकार है। गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के उपकुलपति डॉ. करमजीत सिंह द्वारा अमृता विश्वविद्यालय कोच्चि (केरल) में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने को लेकर की गई टिप्पणी पर उन्हें कमेटी की सदस्यता से हटाना एकतरफा कार्रवाई है। प्रो. ख्याला ने स्पष्ट किया कि डॉ. करमजीत सिंह ने उस कार्यक्रम में न तो सिख सिद्धांतों के विरुद्ध कोई बात की, न ही सिखी के मूल्यों से टकराने वाला कोई रुख अपनाया। उन्होंने केवल गुरु नानक देव विश्वविद्यालय की उन पहलकदमियों की जानकारी दी, जो पंजाबी भाषा, सिख चेतना और पर्यावरण जागरूकता को आगे बढ़ाने के लिए की जा रही हैं। ख्याला ने शिरोमणि कमेटी से इस फैसले पर पुनर्विचार करने करने की मांग भी की है।