आरटीई: 1 सीट के लिए 3 आवेदन

भास्कर न्यूज | राजनांदगांव शिक्षा का अधिकार अधिनियम आरटीई के तहत एडमिशन लेने 1 सीट के लिए 3 आवेदन पहुंचे है। सरकारी स्कूल के प्राचार्यों का इसका नोडल अफसर बनाया गया है। वह दस्तावेजों की जांच कर स्क्रूटनी करेंगे इसके बाद प्रदेश स्तर की ऑनलाइन लॉटरी से बच्चों का चयन कर सीटें आवंटित की जाएगी। इसके बाद स्कूलों में उन्हें एडमिशन दिया जाएगा। शिक्षा विभाग ने 166 स्कूलों का प्रोफाइल अपडेट कर लिया है। बताया गया कि ऑनलाइन आवेदन करने की अंतिम तिथि 10 अप्रैल तक 5 हजार से अधिक आवेदन पहुंचे है। नोडल अफसरों द्वारा पालकों से प्राप्त आवेदनों की जांच की जा रही है। यह प्रक्रिया इस माह के अंत तक चलेगी एवं मई की शुरुआत में प्रदेश स्तर की लॉटरी से बच्चों का चयन किया जाएगा। इसके बाद प्रवेश की प्रक्रिया शुरू होगी। पहला चरण पूरा होने के बाद 2 जून से दूसरा चरण शुरू होगा। पहले चरण में एडमिशन से वंचित एवं दूसरे चरण में प्राप्त आवेदनों की जांच कर एडमिशन देने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। आरटीई के तहत निजी स्कूलों की 25 प्रतिशत आरक्षित सीटों में गरीब एवं वंचित समूह के बच्चों को प्रवेश दिया जाना है। आत्मानंद स्कूलों में लॉटरी सिस्टम से मिलेगा प्रवेश: स्वामी आत्मानंद स्कूलों में भी शिक्षा का अधिकार कानून लागू है। यहां 10 अप्रैल से ऑनलाइन आवेदन करने प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। शहर में म्युनिसिपल स्कूल और बख्शी स्कूल, स्टेट हाई स्कूल को स्वामी आत्मानंद स्कूल में तब्दील किया गया है। म्युनिसिपल स्कूल को पीएमश्री योजना से जोड़ा गया है। जिले में 10 स्वामी आत्मानंद स्कूल है। इन स्कूलों में बेटियों को एडमिशन में 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। सीटें नहीं भरने पर सभी कक्षाओं की खाली सीटों में बालकों को प्रवेश दिया जाएगा। आवेदन ज्यादा आने पर यहां भी लॉटरी से जिले के स्कूलों में प्रवेश दिया जाएगा। दर्ज संख्या कम बता कर सीटें कम कर रहे शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिले में आरटीई के तहत पंजीकृत 175 प्राइवेट स्कूलों की लगभग 1889 सीटों के लिए 5500 आवेदन पहुंचे है। इसमें 1889 बच्चों का ही चयन होगा। अन्य बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने से वंचित होना पड़ सकता है। आरटीई में हर साल सीटों की संख्या कम होती जा रही है। इसका प्रमुख कारण निजी स्कूलों द्वारा दर्ज संख्या कम बना कर आरटीई की 25 प्रतिशत आरक्षित सीटों का कम किया जा रहा है। शिक्षा विभाग और नोडल अफसरों को इसकी जानकारी होने के बाद भी गंभीरता नहीं बरती जाती है।

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