सुप्रीम कोर्ट ने जोधपुर के मणाई आश्रम में नाबालिग से रेप के मामले में सजायाफ्ता आसाराम को राजस्थान हाईकोर्ट से मिली 6 महीने की अंतरिम जमानत खारिज करने से इनकार कर दिया है। जस्टिस पामिडिघंटम नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस. चंदुरकर की पीठ ने जोधपुर पॉक्सो केस में पीड़िता की ओर से दायर स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) खारिज करते हुए इसे निस्तारित कर दिया है। पीड़िता की ओर से 21 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल की गई थी। इसमें राजस्थान राज्य और आसाराम उर्फ आशुमल को प्रतिवादी बनाया गया था। इसे क्रिमिनल लॉ कैटेगरी के तहत ‘बच्चों के खिलाफ अपराध व पॉक्सो एक्ट 2012’ की श्रेणी में दर्ज किया गया। सोमवार को सूचीबद्ध हुई इस याचिका पर सुनवाई हुई और दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। जोधपुर केस में अंतरिम जमानत मिलते ही सुप्रीम कोर्ट में कैवियट
आसाराम को जोधपुर केस में राजस्थान हाईकोर्ट से 29 अक्टूबर को 6 महीने की अंतरिम जमानत मिली थी। उसी दिन पीड़िता की ओर से राजस्थान हाईकोर्ट के इस आदेश को चुनौती देने के लिए एडवोकेट अल्जो के. जोसेफ ने 29 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में एप्लिकेशन (IA) दाखिल किए थे:। इनमें SLP दायर करने की अनुमति, राजस्थान हाईकोर्ट के विवादित निर्णय की सर्टिफाइड कॉपी दाखिल करने के लिए छूट के लिए आवेदन किए गए थे। इसके बाद पीड़िता की ओर से यह SLP दायर होकर 8 दिसंबर को सूचीबद्ध होने से कई दिनों पहले ही आसाराम की ओर से 3 नवंबर को एडवोकेट निशांत बिश्नोई के माध्यम से कैवियट दाखिल कर दी गई थी, जो 24 नवंबर को इस मामले से लिंक हुई ताकि बिना सुने कोई एकतरफा आदेश न हो सके। 8 दिसंबर को यह मामला सुप्रीम कोर्ट में बेल मैटर्स श्रेणी में लिस्ट होकर सुना गया, जहां पीड़िता की ओर से एडवोकेट अल्जो के. जोसेफ और आसाराम के वकील बिश्नोई पेश हुए। ऑर्डर में लिखे “Delay Condoned” का अर्थ है कि कोर्ट ने समय सीमा से देरी से दायर याचिका को तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया बल्कि देरी माफ कर दी। वहीं “matter dismissed” का मतलब है कि मेरिट पर सुनवाई के बाद याचिका को स्वीकार करने से इंकार कर दिया गया और राहत नहीं दी गई। इसका सीधा असर यह है कि राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा दी गई चिकित्सीय आधार वाली अंतरिम जमानत पर सुप्रीम कोर्ट ने दखल नहीं दिया। सभी लंबित आवेदन भी निपटे, हाईकोर्ट का आदेश कायम सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर में साफ तौर पर ‘including all pending IAs’ लिखा है, यानी पीड़िता पक्ष द्वारा दायर सभी इंटरिम एप्लिकेशन-जिनमें अंतरिम जमानत रद्द करने से जुड़े आवेदन भी शामिल थे, एक साथ खारिज माने जाएंगे। इससे 29 अक्तूबर 2025 को राजस्थान हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (जस्टिस संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस संगीता शर्मा) द्वारा दी गई अंतरिम जमानत फिलहाल यथावत रहेगी और अब मुख्य अपील पर फैसला हाईकोर्ट को ही करना होगा। साल 2013 के जोधपुर पॉक्सो केस की पृष्ठभूमि वर्ष 2013 में उत्तर प्रदेश की एक नाबालिग ने आरोप लगाया कि आसाराम ने जोधपुर के पास मणाई गांव स्थित आश्रम में उसका यौन शोषण किया। इस पर 21 अगस्त 2013 को दिल्ली के कमला मार्केट थाने में जीरो एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें आईपीसी की धारा 376 (रेप) और पॉक्सो एक्ट सहित अन्य धाराएं लगाई गईं। बाद में यह केस जोधपुर पुलिस को ट्रांसफर कर दिया गया। 1 सितंबर 2013 को जोधपुर पुलिस ने आसाराम को इंदौर स्थित आश्रम से गिरफ्तार कर जोधपुर लाकर जेल भेज दिया था। जांच के बाद केस जोधपुर की विशेष पॉक्सो अदालत में चालान पेश किया गया। 7 फरवरी 2014 को विशेष न्यायाधीश (POCSO कोर्ट), जोधपुर ने आसाराम के खिलाफ बलात्कार, आपराधिक साजिश, नाबालिग से यौन शोषण आदि धाराओं में आरोप तय कर ट्रायल शुरू किया था। 25 अप्रैल 2018 को जोधपुर की विशेष पॉक्सो अदालत के जज मधुसूदन शर्मा ने आसाराम को नाबालिग से बलात्कार का दोषी ठहराते हुए उम्रकैद (शेष जीवन तक) की सजा सुनाई। उसी दिन से आसाराम जोधपुर जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है और इसी सजा के खिलाफ उसकी अपील राजस्थान हाईकोर्ट में लंबित है।
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