बॉलीवुड फिल्म ‘आजाद’ से अमन देवगन और राशा थडानी एक्टिंग की दुनिया में कदम रख रहे हैं। ये दोनों डायरेक्टर अभिषेक कपूर की फिल्म से डेब्यू कर रहे हैं। अमन दिग्गज एक्टर अजय देवगन के भांजे हैं। राशा एक्ट्रेस रवीना टंडन की बेटी है। दोनों एक्टर फिल्मी बैग्राउंड से होने के बावजूद पूरी तैयारी और ट्रेनिंग के बाद इंडस्ट्री में कदम रख रहे हैं। अमन ने बताया- यह फिल्म आसान नहीं थी। शूटिंग से पहले वर्कशॉप में घुटने की समस्या शुरू हुई, जिसकी अभी तीन महीने पहले सर्जरी हुई है। घोड़े के साथ काम करने में चैलेंज तो बहुत थे। घोड़े के साथ कनेक्ट करने के लिए मैं तबेले में रहता था। उनके साथ एक्सरसाइज करता था। यहां तक की घोड़े की गंदगी भी साफ करता था। राशा ने कहा कि मुझे मेरे नाना ने कहा था कि फिल्म का कैप्टन डायरेक्टर होता है। ऐसे में जो डायरेक्टर बोले उसे ब्लाइंड ली फॉलो करना, सक्सेस जरूर मिलेगी। डायरेक्टर अभिषेक कपूर ने कहा- इस फिल्म में दोनों कलाकारों का डेब्यू हो रहा है, लेकिन यह एक घोड़े की कहानी है। उसे बयां करना बेहद खास है। हमने इसके लिए मारवाड़ी घोड़े को चुना था। आज उसने इस फिल्म को एक अलग लेवल पर पहुंचा दिया है। आगे पढ़िए तीनों का डिटेल इंटरव्यू… सवाल: आपके माता-पिता की शादी राजस्थान में हुई, आपकी पहली फिल्म की शूटिंग राजस्थान से शुरू हुई और अब अपनी फिल्म के प्रमोशन की शुरुआत की राजस्थान से हो रही हैं, यहां से जुड़ाव के बारे में बताएं? राशा थडानी: राजस्थान से मेरा एक स्पेशल बॉन्ड है, क्योंकि हम शूटिंग से पहले भी यहां पर वर्कशॉप करने के लिए आए थे। इसके लिए हम उदयपुर आए थे। यहां पर हमने वर्कशॉप ली थी। राजस्थान से खूबसूरत और क्या है इस दुनिया में। सवाल: अपने किरदार के बारे में बताएं किस तरह का किरदार है और क्या खास रहने वाला है ? अमन देवगन: मैं आपको अपने किरदार के बारे में ज्यादा नहीं बता पाऊंगा। मेरे किरदार का नाम गोविंद है। उसे घोड़े का बहुत शौक है। इसके अलावा घुड़सवारी का बहुत शौक है। उसे अब तक अपना घोड़ा मिला नहीं होता है। यही इसका सबसे इंटरेस्टिंग पॉइंट है। सवाल: आपने इंडस्ट्री को कई बड़े कलाकार दिए हैं, उनमें सुशांत सिंह राजपूत, सारा अली खान और फरहान अख्तर के नाम शामिल है, अब आप दो नए कलाकारों को फिल्म में जगह दे रहे हैं, इसे कैसे देख रहे हैं? अभिषेक कपूर: हर नई फिल्म एक नई चुनौती लेकर आती है। ऐसा नहीं है कि मैं वही फिल्म दोबारा बना रहा हूं। एक नई दुनिया बसती है। एक नई कहानी का जन्म होता है। मैंने कभी किसी फिल्म का सीक्वल नहीं बनाया है। अपने आप को कभी रिपीट नहीं किया है। अपने काम के नजरिए से, कहानियों में मेरे जो किरदार होते हैं, फिल्मों में वह भी एकदम नए होते हैं। उनके बारे में मैं भी सीख ही रहा होता हूं। यह एक बहुत ही हंबलिंग एक्सपीरियंस होता है। यह नहीं होता है कि मैं इनको जानता हूं या इस तरह का काम में पहले कर चुका हूं। हर फिल्म मेरे लिए एक नए अनुभव की तरह होती है। मैं शुरू से शुरू करता हूं। ऊपर वाले को इशारा करके कहता हूं कि सहारा देना और कुछ सीखा देना। बनते बनते फिर फिल्म बन जाती है। मैं खुद अपने हाथों से फिल्म नहीं बनाता। बहुत सारे लोग जुड़ते हैं फिल्म बनाने के लिए। यह दोनों कलाकार जरूर नए है लेकिन उनके योगदान के बिना यह फिल्म नहीं बन सकती है। यह भी अपने कैरेक्टर में घुसने की कोशिश करते हैं जैसे मैं अपनी एक नई फिल्म बना रहा हूं, यह लोग भी एक नई दुनिया में घुस रहे हैं। ऐसे में हम एक दूसरे का हाथ पकड़ कर फिल्म बनाते हैं। सवाल: कलाकारों का चयन तो ऑडिशन के जरिए हो जाता है, लेकिन आपने इस फिल्म के लिए एक मारवाड़ी घोड़े को चुना, उसे कैसे ढूंढा और किस तरह का चैलेंज सामने आया? अभिषेक कपूर: यह फिल्म बनेगी कैसे? यह समझना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। मुझे यह समझ में नहीं आ रहा था कि घोड़ा वीएफएक्स में बनाऊंगा या एक ट्रेंड घोड़ा विदेश से मंगवाऊंगा। ट्रेनर्स को लाकर उनकी ट्रेनिंग करूंगा क्या? यह मुझे पता नहीं था। मैं रुका हुआ था, मुझे कोई दिशा नहीं मिल रही थी। एक दिन मैंने अपनी टीम को भेजा और कहा कि इस देश का कोना-कोना देखो और सबसे अच्छा काला घोड़ा कहीं से ढूंढों। मुझे उस खूबसूरत घोड़े से मिलवाओ। हम मुंबई में रहते हैं। ऐसे घोड़े के दर्शन भी नहीं होते हैं। इसके 15 -20 दिन बाद मुझे फोन आया कि ऐसा एक घोड़ा पंजाब के किसी गांव में मिला है, वह एक मारवाड़ी घोड़ा है। मुझे याद है जनवरी-फरवरी का महीना था। उस दिन बहुत धुंध थी। उसे धुंध के बीच में से वह घोड़ा भागता हुआ मेरे सामने आया, लंबा चौड़ा घोड़ा था। मुझे उसे देखते ही प्यार हो गया। उस वक्त ही सोच लिया कि यही मेरा आजाद है। यह वह लम्हा था, जब आप किसी के बारे में सोचते हो और वह आपके सामने से निकलता है। मेरे दिमाग में जब कहानी चल रही थी, तब वह घोड़ा भी साथ में चल रहा था। जब वह मेरे सामने आया तो मुझे महसूस हो गया कि यही मेरा हीरो है। वह ट्रेंड नहीं था, वह किसी गांव में था, फिर उसे ट्रेंड करने के लिए मैंने विदेश से ट्रेनर मंगवा बहुत अलग-अलग देशों से ट्रेनर आए। इंग्लैंड, पुर्तगाल, अमेरिका से भी आए। कुछ राइडर्स साथ में जुड़े और घोड़े को ट्रेंड किया। इस दौरान एक्टर्स को भी घोड़े के साथ ट्रेंड किया गया। उनके साथ एक अलग सा जुड़ाव महसूस करवाया गया। दोनों एक्टर्स को एक्टिंग की ट्रेनिंग के साथ हॉर्स राइडिंग की भी ट्रेनिंग दी गई। मेरे लिए यह एक बहुत चैलेंजिंग और यूनीक फिल्म रही है। न्यू कमर्स और एक जानवर के साथ फिल्म बनाना आसान नहीं होता है। न्यू कमर्स का एक जानवर के साथ काम करना और भी कठिन होता है। मैंने पहले भी आपको कहा है कि हमने एक दूसरे का हाथ पकड़ कर फिल्म बनाई है। वैसे ही सीखते बात बनती गई और यह फिल्म बन गई। आज हमारी इंडस्ट्री में घोड़े के साथ जब फिल्म बनती है तो किराए पर उन्हें लाया जाता है। मैंने शुरू में ही सोच लिया था कि मेरी फिल्म का हीरो घोड़ा है। आज मेरे पास पांच घोड़े हो गए हैं। वे सभी उदयपुर में किसी जानकार के पास रहते हैं। सवाल: दर्शकों को सब चीज आसान लगती है लेकिन उन्हें तैयार करने में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, आप जरा उनके बारे में बताएं? अमन देवगन: हमारे पास कई देशों के ट्रेनर मौजूद थे, वे हमें हर तरह की ट्रेनिंग दे रहे थे। क्योंकि फिल्म में सिर्फ हॉर्स राइडिंग के सीन नहीं थे, इसमें एक्शन भी था। बहुत सारे ऐसे सीन थे, जिसमें मुझे गिरना भी था। उस पर फिर से चढ़ना भी था। यह ट्रिक राइडिंग होती है, इसकी भी हमें ट्रेनिंग दी गई। इसकी पूरी ट्रेनिंग हमने उदयपुर में ही की थी। मुश्किलों की बात करें तो अभी 3 महीने पहले ही मेरे घुटने की सर्जरी हुई है। इस समस्या की शुरुआत वर्कशॉप से हुई थी, फिर शूटिंग में यह बढ़ गए। घोड़े के साथ काम करने में चैलेंज तो बहुत थे। घोड़े के साथ कनेक्ट करने के लिए मैं तबेले में रहता था। उनके साथ एक्सरसाइज करता था। यहां तक की घोड़े की गंदगी भी साफ करता था। वह कनेक्शन उनके साथ नहीं बनाते तो सीन में जस्टिस नहीं हो पाता। इसलिए इस तरह की चीज करना भी जरूरी था। सवाल: आपके साथ ऑन स्क्रीन अजय देवगन भी है, जो आपके मामा हैं। वह पहले ही कई घोड़े की सवारी कर चुके हैं। उन्होंने किस तरह आपको गाइड किया? अमन देवगन: वे हमेशा मुझे बेसिक टिप्स बताया करते थे। कैसे बैठना होता है, लेग्स टाइट रखने होते हैं। बेसिक जितनी भी जानकारियां थी, वह मुझे दिया करते थे। ताकि मैं प्रिपेयर होकर हॉर्स राइडिंग कर सकूं। सवाल: आपके नाना से फिल्मी की लेगेसी आ रही है, किस तरह के सुझाव आपको मिले और पैरेंट्स ने क्या कहा? राशा थडानी: नानाजी ने तो मुझे पहले ही कहा था कि डायरेक्टर इस ‘द कैप्टन ऑफ शिप’। जो डायरेक्टर साहब बोले वह आपको करना है। वह भी बिना कोई सवाल किए। जो डायरेक्टर का विजन होता है, वह कोई और अचीव नहीं कर सकता है। अगर आप ब्लाइंड्ली उनको फॉलो करते हो तो उसमें सक्सेस जरूर मिलेगी। पापा और मम्मी ने भी बहुत एडवाइस दी थी। उन्होंने खास तौर पर बतौर ह्यूमन बीइंग कई अहम बातें बताई। वे मेरे लिए सपोर्ट सिस्टम की तरह है। उन्होंने मुझे ग्राउंडेड रहना हम्बल रहना सिखाया है। मम्मी ने मुझे कहा था कि इस लाइफ को अच्छे से जीना है। मजे करते हुए आगे बढ़ाना है। नाच हो या गाना हो या कोई ऐसी महत्वपूर्ण चीज हो। जो आपके सामने हो रही हो तो उसे मजे की तरह ही करना है। मेरी मम्मी अभिषेक सर को बहुत फॉलो करती है। वह उन पर बहुत विश्वास करती है। इसलिए मुझे ज्यादा कुछ सोचना नहीं पड़ा। सवाल: यह फिल्म किस तरह मिली, आपने कैसे आपके ऑडिशन हुए हैं उसके बारे में आप बताएं?
अमन देवगन: मैं कास्टिंग डायरेक्टर को जानता था, उन्होंने ही मुझे इस किरदार के बारे में बताया। अभिषेक सर ने इस कहानी को 2017 में ही लिख दिया था, उसके लिए ऑडिशन हुए। अभिषेक सर को मेरी कुछ चीज पसंद आई थी। वह प्रोसेस चलता गया। उसके बाद हमारी ट्रेनिंग शुरू हुई। राशा थडानी: मेरी भी जर्नी कुछ इसी तरह की रही है। यह लिपऑफ फेथ की तरह है। जैसे कोई अच्छी चीज आपके सामने आई और उसमें घुसना होता है। जब यह फिल्म मेरे पास आई थी, तब मैं 17 साल की थी। बस उस वक्त लिप ऑफ फेथ ही था। । सवाल: बड़े सितारों के साथ और डेब्यूटेंट एक्टर्स के साथ किस तरह का एक्सपीरियंस आपका रहा है, इसके बारे में आप बताएं? अभिषेक कपूर: मैंने ज्यादा फिल्में बड़े स्टार्स के साथ बनाई नहीं है। सिर्फ अजय ही है, जो बड़े स्टार के रूप में मेरी फिल्म में नजर आए हैं। मेरे लिए किरदार महत्वपूर्ण होते हैं। मेरे लिए बड़े स्टार या नए कलाकार मायने नहीं रखते सिर्फ किरदार महत्वपूर्ण होते हैं। मेरी कोशिश रहती है कि फिल्में अगर अच्छी बनेगी तो मेरे एक्टर्स अपने आप स्टार्स बन जाएंगे। ऊपर वाले ने मुझे उसे काम के लिए चुना है तो मैं वही काम करता हूं।