भादो मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाने वाली कजरी तीज इस बार मंगलवार 12 अगस्त को मनाई जाएगी। कई जगहों पर इसे बूढ़ी तीज या सातूड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। हरियाली तीज और हरतालिका तीज के समान ही कजरी तीज भी सुहागिनों के लिए खास माई गई है। ये त्योहार सुहागिनों के लिए प्रमुख माना जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन की सुख प्राप्ति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। शिव दुर्गा खाटु श्याम मंदिर कमल विहार बस्ती पीरदाद के पुजारी गौतम भार्गव ने बताया कि धार्मिक मान्यतानुसार, राखी के तुरंत बाद और जन्माष्टमी से पांच दिन जो तीज आती है, उस दिन यह पर्व मनाया जाता है। पालकी को सजाकर उसमें तीज माता की सवारी निकाली जाती है। उन्होंने बताया कि महिलाएं और लड़कियां इस दिन परिवार की सुख-शांति की मंगल कामना के लिए व्रत रखती हैं। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर धम्मोड़ी यानि नाश्ता करने का रिवाज है। जिस प्रकार पंजाब में करवाचौथ की सुबह सरगी की जाती है, इसके बाद कुछ नहीं खाया जाता और दिनभर व्रत चलता है, ठीक उसी प्रकार इस व्रत में भी एक समय आहार करने के बाद दिनभर कुछ नहीं खाया जाता। शाम को चंद्रमा की पूजा कर कथा सुनीं जाती है। नीमड़ी माता की पूजा करके नीमड़ी माता की कहानी सुनी जाती है। चांद निकलने पर उसकी पूजा की जाती है। चांद को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद सत्तू के स्वादिष्ट व्यंजन खाकर व्रत तोड़ा जाता है। कजरी तीज के दिन भगवान शिव और पार्वती की उपासना की जाती है। नीमड़ी माता की पूजा के लिए तालाब जैसी आकृति बनाने के लिए मिट्टी से पाल बनाई जाती है और नीम की टहनी को तालाब के भी भीतर दीवार पर लगाया जाता है। तालाब में कच्चा दूध और जल डाला जाता है और एक दीया प्रज्जवलित किया जाता है। पूरे विधि-विधान के साथ नीमड़ी माता को केला, सेब, सत्तू, नींबू, ककड़ी, रोली, मोली और अक्षत अर्पित करना चाहिए। इस दिन जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। चंद्रोदय के बाद भोजन करके व्रत तोड़ा जाता है। भगवान शिव की प्रतिमा।