कल्चरल डायरीज में अल्बर्ट हॉल पर गूंजा भक्ति संगीत:जैसलमेर के प्रसिद्ध लोकगायक महेशाराम और उनके दल ने जागरण शैली में दी प्रस्तुति

सर्द शाम में भी अल्बर्ट हॉल पर सांस्कृतिक धरोहर को समर्पित ‘कल्चरल डायरीज’ के तीसरे एडिशन ने दर्शकों का उत्साह कम नहीं होने दिया। जैसलमेर के प्रसिद्ध लोकगायक महेशाराम और उनके दल ने जागरण शैली में भक्ति संगीत की मनमोहक प्रस्तुति देकर श्रोताओं को आध्यात्मिक अनुभव से सराबोर कर दिया। कार्यक्रम में महेशाराम और उनके दल ने “सतगुरु रे दर्शन में जासा,” “क्यों सोवे रे बंदा क्यों सोवो,” किरपा हुई भगवान री, कदे आवो द्वारकावासी और “सांवरिया रे नाम हजार” जैसे भजनों की प्रस्तुति दी। सर्द मौसम के बावजूद, कला सुधी दर्शको ने बड़ी संख्या में इस आयोजन में हिस्सा लिया। उनकी सुमधुर आवाज और संत वाणियों की गहराई ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। राजस्थान पर्यटन विभाग की ओर से प्रदेश की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी की पहल पर शुरू की गई सांस्कृतिक श्रृंखला ‘कल्चरल डायरीज’ का उद्देश्य राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करना और लोक कलाकारों को प्रोत्साहन देना है। हर पखवाड़े के दूसरे व चौथे शुक्रवार व शनिवार आयोजित होने वाली इस श्रृंखला में राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों के लोक कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने का मंच दिया जाता है। यह पहल न केवल सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का कार्य कर रही है, बल्कि इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाने और लोक कला को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। महेशाराम जैसलमेर जिले के छतागढ़ गांव के निवासी हैं और मेघवाल समुदाय के प्रमुख भक्ति गायकों में से एक हैं। इस समुदाय की परंपरा में सत्संगों और जागरणों में संत वाणी गायन का विशेष महत्व है। महेशाराम ने अपने पिता सदाराम जी के साथ आठ वर्ष की उम्र में गायन की शुरुआत की थी। वे कबीर, मीरा बाई, रोहल फकीर, गोरखनाथ और अन्य संतों की वाणियों का गायन करते हैं। उनकी प्रस्तुतियां भारत के अलावा इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड, सिंगापुर, दुबई, न्यूयॉर्क और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी आयोजित हुई हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन पर अपनी नियमित प्रस्तुतियों के साथ, महेशाराम को लोक नायक जयप्रकाश नारायण पुरस्कार और मरुधरा संस्थान पुरस्कार जैसे सम्मानों से नवाजा जा चुका है। इस अवसर पर राजस्थान पर्यटन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी मौजूद थे।

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