हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में विश्व प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के तीसरे दिन भगवान नरसिंह की पारंपरिक शाही जलेब निकाली गई। इसे ‘राजा की जलेब’ के नाम से भी जाना जाता है, जो देवी-देवताओं की पुरातन संस्कृति का प्रतीक है। सात देवी-देवताओं ने लिया भाग इस वर्ष दशहरा के तीसरे दिन निकली शाही जलेब में सैंज घाटी के देवी-देवताओं ने शिरकत की। इससे पहले उत्सव के दूसरे दिन महाराजा कोठी के सात देवी-देवताओं ने शोभायात्रा में भाग लिया था। यह पांच दिवसीय धार्मिक शोभायात्रा है। जिसमें हर साल अलग-अलग घाटियों के देवी-देवता शामिल होते हैं। ढालपुर से शुरू हुई शाही जलेब शाही जलेब ढालपुर स्थित राजा की चणनी से शुरू हुई। भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह, जो राजा नरसिंह के प्रतिनिधि के रूप में जाने जाते हैं, एक विशेष पालकी में सवार होकर यात्रा पर निकले। जलेब में सबसे आगे भगवान नरसिंह की सजी-धजी घोड़ी चल रही थी, जिसके दोनों ओर देवताओं के रथ थे। वाद्ययंत्रों की थाप पर थिरके श्रद्धालु शोभायात्रा में शामिल युवा देवलू (देवी-देवताओं के सेवक) ढोल-नगाड़ों और अन्य वाद्ययंत्रों की थाप पर नाचते-गाते हुए साथ चले। यह शोभायात्रा राजा की चणनी से रथ मैदान होते हुए वापस मुख्य छड़ीबरदार के अस्थायी शिविर या राजा की चणनी पर समाप्त हुई। उत्सव स्थल से बुरी शक्तियां दूर शाही जलेब के पीछे एक प्राचीन मान्यता जुड़ी है। माना जाता है कि यह शोभायात्रा भगवान के चारों ओर एक सुरक्षा घेरा बनाती है, जिससे उत्सव स्थल से बुरी शक्तियां दूर रहती हैं और उत्सव शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न होता है। यह परंपरा कुल्लू की सदियों पुरानी देव संस्कृति और शाही विरासत का प्रतीक है।