खैरागढ़ में मधुमक्खियों के बीच मां भ्रामरी देवी:दो-धारी तलवार लेकर पूजा करने जाते थे राजा; घने जंगलों में 10वीं शताब्दी के अवशेष भी मिले

छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ जिले स्थित भंवरदाह एक अद्भुत आध्यात्मिक स्थल है। यह गंडई से कुछ दूर घने जंगलों में स्थित है। मैकल पर्वत की ऊंची चट्टानों और सुरही नदी की शांत धारा के बीच यह स्थान आस्था का केंद्र है। यहां मां भ्रामरी देवी का मंदिर है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, जब राक्षसों ने धरती पर उत्पात मचाया, तब देवी ने अपने शरीर से हजारों मधुमक्खियां उत्पन्न कर उनका वध किया। तभी से उन्हें भ्रामरी देवी के नाम से जाना जाता है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि आज भी यहां की पहाड़ियों पर हजारों मधुमक्खियों के छत्ते मौजूद हैं। स्थानीय लोग इन्हें मां की उपस्थिति का प्रतीक मानते हैं। यह मंदिर दिखावे से दूर है। यहां न तो भव्य शिखर है और न ही चांदी के दरवाजे। इसके साथ ही 10वीं शताब्दी के प्रमाण यहां मिलते है। दो धारी तलवार और बकरा लेकर मंदिर जाते थे राजा बताया जाता है कि दसवीं शताब्दी के पहले यहां माता का भव्य मंदिर था और गंडई जमीदारी के राजा यहां पूजा पाठ किया करते थे। हर साल राजा अपनी दो धारी तलवार और बकरा लेकर माता के दरबार जाते थे। राजा की दो धारी तलवार को देख कर सुरही नदी रास्ता देती थी और मंदिर पहुंच कर पूजा पाठ किया जाता था। लेकिन एक बार गंडई के राजा पूजा पाठ करने के बाद अपनी तलवार वही भूलकर वापस आ गए। जिसके बाद फिर सुरही नदी ने रास्ता नहीं दिया और धीरे धीरे माता का भव्य मंदिर विलोपित हो गया। लेकिन आज भी यहां दसवीं शताब्दी के प्रमाण मिलते हैं। पेड़ की छाया में विराजमान है मां भ्रामरी मंदिर का इतिहास सैकड़ों साल पुराना बताया जाता है। यहां भ्रामरी मां के दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ ही नहीं देश भर से लोग पहुंचते है। यहां बहुत गुप्त रूप से पूजा होती है। मंदिर के ज्यादा प्रचार प्रसार की मनाही होती है। मां भ्रामरी बिना किसी मंदिर के पेड़ की छाया में रहती है। यहां किसी बड़े मंदिर का स्थापना नहीं हुई बल्कि ऊपर मधुमक्खी के छत्ते और नीचे मां को पूजा जाता है। माता की इस मुख्य मूर्ति के आस पास और भी कई पुरातन काल की मूर्तियां और शिलाखंड मौजूद हैं। कुंड का पानी कभी खत्म नहीं होता मंदिर में भ्रामरी माता के स्थान के ठीक नीचे एक कुंड स्थित है। इस कुंड का पानी कभी खत्म नहीं होता। साल भर भरा रहता है। ठीक इसी से लगी मैकल श्रेणी की चट्टान पर हजारों मधुमक्खी के छत्ते हैं। इन मधुमक्खियों को माता भ्रामरी देवी के रूप में माना जाता है। मधुमक्खियों ने कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया बताया जाता है कि यहां पहुंचने वाले भक्तों को मधुमक्खी कभी नुकसान नहीं पहुंचाते। मधुमक्खियों के इतने झुंड के बाद भी आज तक किसी को कोई नुकसान पहुंचा है। लेकिन ऐसा बताया जाता है कि अगर यहां कोई गलत मानसिकता या नशाखोरी करके जाता है तो ये मधुमक्खियां उसे काटती हैं। जल्द होगा मंदिर का निर्माण भ्रामरी देवी गंडई के राज परिवार की कुल देवी है। हर साल राज परिवार के युवराज यहां पूजा करते है। घनघोर जंगल और पहुंच मार्ग में नदी के चलते यहां अब तक कोई विकास कार्य नहीं हुआ है। लेकिन गंडई के राजा लाल तारकेश्वर खुसरो बताते है जल्द ही अब मां के इस स्थल का जीर्णोद्धार किया जाएगा और एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया जाएगा। 17 सालों से चल रही अनूठी परंपरा पिछले 17 सालों से यहां एक अनूठी परंपरा चल रही है। चैत्र नवरात्रि के दौरान मां के दरबार में 101 अखंड ज्योत जलाई जाती हैं। इस साल नवरात्रि में भी यह परंपरा निभाई गई। 9 दिनों तक ज्योत जलने के बाद हवन और पूजन के साथ इन ज्योति का विसर्जन किया गया। 10वीं शताब्दी के प्रमाण भंवरदाह की महत्ता केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं है। दसवीं शताब्दी के प्रमाण यहां मिलते हैं। यहां मिले प्राचीन शिलालेख, खंडित मूर्तियां और स्थापत्य के अवशेष बताते हैं कि यह क्षेत्र एक समय में सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध था। जाने यहां कैसे पहुंचे यहां पहुंचने के लिए गंडई से भड़भड़ी डैम होते हुए, लगभग 2 से 3 किलोमीटर का सफर पगडंडी और उबड़-खाबड़ रास्तों से होता है। रास्ते में एक ही नदी को दो बार पार करना पड़ता है। जंगलों के बीच से होते हुए अंततः जब आप पहुंचते हैं, तो मां भ्रामरी देवी के दर्शन एक साधारण से पीपल वृक्ष के नीचे होते हैं न कोई शिखर, न मंडप सिर्फ एक वृक्ष, और उसके नीचे जाग्रत देवी की उपस्थिति। शायद यही सादगी इस जगह को सबसे खास बनाती है। यहां का हर पत्थर, हर पेड़ श्रद्धा से भरा प्रतीत होता है। अगर कभी जीवन में भीतर की यात्रा करनी हो, या भक्ति की उस मौन शक्ति को महसूस करना हो जो शब्दों से परे है, तो भंवरदाह आइए। यहां न कोई चमत्कार होता है, न कोई दिखावा। लेकिन जो होता है, वो भीतर तक असर करता है। मंदिर से जुड़ी कुछ तस्वीरें देखिए…

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