गीता कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग का सबसे बड़ा ग्रंथ गीता:गीता जयन्ती महोत्सन में जुटे देशभर के विशेषज्ञ, गलता पीठ में भी गीता का नित्य पाठ होता था

राजस्थान संस्कृत अकादमी की ओर से गणगौरी बाजार स्थित वैदिक हैरिटेज एवं पाण्डुलिपि शोध संस्थान के सहयोग से संस्थान परिसर में गीता जयन्ती महोत्सव का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में अतिथि के रूप में महन्त हरिशंकर नेदान्ती, पं. महेशदत्त शर्मा गुरुजी, महामण्डलेखर स्वामी ज्ञानेश्वर पुरी, कैलाश चतुर्वेदी, वैद्य गोपीनाथ पारीक, कपिल अग्रवाल और राजस्थान संस्कृत अकादमी निदेशक रजनीश हर्ष उपस्थित रहे। कार्यक्रम की गुरु‌आत वैदिक मन्त्रोच्चारण के साथ दीप प्रज्ज्वलन से हुई। इसके बाद सनातन परम्परा का निर्वहन करते हुए वैदिक हैरिटेज एवं पाण्डुलिपि शोध संस्थान के समन्वयक डॉ. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ने अतिथियों का स्वागत अभिनन्दन किया। अकादमी के निदेशक रजनीश हर्ष ने अतिथियों का माला, श्रीफल, सॉल और मोमेण्टो देकर सम्मान किया। रजनीश हर्ष ने स्वागत भाषण के जरिए अतिथियों और कार्यक्रम में उपस्थित रहे सभी नागरिकों का स्वागत किया। डॉ. सुरेन्द्र कुमार शर्मा ने कार्यक्रम की रूपरेखा संक्षिप्त में बताकर गीता पर व्याख्यान माला का आरंभ हुआ । कार्यक्रम में रजनीश हर्ष ने गीता का सामान्य जीवन में महत्त्व बताते हुए इसे अपने जीवन में आत्मसात् करने को कहा। कैलाश चतुर्वेदी (पूर्व निदेशक संस्कृत शिक्ष) ने अपने वक्तव्य में गीता व गीता पर लिखी गई टीकाओं के बारे में बताते हुए कहा कि गीता कर्मयोग ज्ञानयोग व भक्तियोग का सबसे बड़ा ग्रन्थ है। यदि प्रत्येक व्यक्ति इस पवित्र ग्रन्थ का अध्ययन कर ले तो उसका जीवन सफल हो जाएगा। महन्त हरिशंकर वेदान्ती ने गीता का महत्व बताते हुए कहा कि गीता का महत्व प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में हो। उन्होंने कहा कि रामानन्द सम्प्रदाय की प्रधान पीठ गलता पीठ में भी गीता का नित्य पाठ होता था। वेदान्तीजी ने कहा कि हिन्दू धर्म को बचाने के लिए गीता जन-जनके मानस में होनी चाहिए। गीता पर व्याख्यान करते हुए पं. महेशदत्त शर्मा गुरुजी ने कहा कि गीता हिन्दुओं का पवित्र ग्रन्थ है। गीता हर क्षेत्र में विद्यमान है। रामायण महाभारत में गीता है। महामण्डलेश्वर स्वामी ज्ञाने खर पुरी महाराज ने अपने उद्‌बोधन में प्रत्येक व्यक्ति व बच्चों को अपने जीवन में गीता के ज्ञान को समाहित करने का आग्रह किया। गीता जयंती के अवसर पर हुए इस कार्यक्रम में 100 साल पुरानी लिथो प्रिंट में मराठी, अरबी, कन्नड़ ताड़पत्र पर जयपुर की हस्तलिखित गीता की पांडुलिपि का भी जनमानस के समक्ष अवलोकन के लिए रखा गया।

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