गीता जयंती महोत्सव के तीसरे दिन बुधवार को ऋषि कुल संस्कृत विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा गीता पाठ किया गया, जिसके बाद स्वामी योगेश्वरानंद के प्रवचन हुए। स्वामी योगेश्वरानंद महाराज ने कहा कि आज का दिन मोक्षदा एकादशी को गीता जयंती के रूप में मनाया जाता है। जयंती उस ग्रंथ की मनाई जाती है जो संपूर्ण विश्व के ऋषि मुनियों विद्वानों चिंतकों के केंद्र में रही है। जब किसी का उत्कर्ष उद्घोषित करना होता है तब उसकी जयंती मनाई जाती है। गीता ग्रंथ ज्ञान का भंडार है। अर्जुन को भी भगवान विराट रूप में दर्शन के पूर्व दिव्य दृष्टि प्रदान करते हैं। अर्थात अर्जुन ज्ञान रूपी नेत्रों से ही भगवान के दिव्य दर्शन कर पाता है। गीता के 18 अध्याय के श्लोक 67 से 71 तक भगवान इसे अपात्रों को नहीं सुनाने के बारे में बताते हैं। गीता के ज्ञान से अर्जुन का मोह नष्ट हो जाता है उसकी एकत्व रूपी स्मृति लौट आई है। यह सब भगवान केशव की कृपा रूपी प्रसाद से होता है। आखिर में अंतिम श्लोक में उल्लेखित है कि जहां जिसके पक्ष में भगवान होते हैं, वहां निश्चय ही विजय प्राप्त होती है, जो भगवान को अनन्य भाव से भजता है उसके कुशल छेम का निर्माण भगवान स्वयं करते हैं। कार्यक्रम के प्रारंभ में ऋषि कुल संस्कृत विद्यालय के विद्यार्थियों द्वारा गीता पाठ किया गया। भजनांजलि के अंतर्गत ऋत्विक राजपूत द्वारा भजन की प्रस्तुति की गई। हारमोनियम पर आदित्य परसाई व तबले पर सक्षम पाठक, विपुल दुबे ने सहयोग किया गया। स्वामी योगेश्वरानंद महाराज का स्वागत विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष व विधायक सीतासरन शर्मा, सुरेश अग्रवाल, आशीष अग्रवाल, अंकित अग्रवाल, योगेश्वर तिवारी, प्रशांत दुबे मुन्नू, अजय सैनी, संजय बल्ला राय, माधव दुबे ने किया।