चपेट में आने पर बचाव

दिलीप द्विवेदी | पाली शहर में ठंड बढ़ते ही कमजोर इम्युनिटी वाले मरीजों को वैरिसेला जोस्टर वायरस का नया खतरा बढ़ गया है। यह 40 साल से अधिक उम्र के लोग इसकी चपेट में ज्यादा आ रहे हैं। इसके चपेट में आने के बाद मरीज को हर्पीज जोस्टर बीमारी हो रही है। इसमें लोगों के शरीर में दर्द के साथ लाल दाने निकल रहे हैं। इनमें चिकन पॉक्स की तरह पानी भर रहा है। मरीज को बुखार, शरीर व जोड़ों में दर्द, सिरदर्द, थकान जैसे प्रभावों के साथ शरीर में जलन, खुजली व झनझनाहट हो रही है। मरीज को बीमारी की जानकारी नहीं होने के कारण चिकन पॉक्स समझ झाड़ फूंक तक करवा रहा है। इसमें समय निकल जाने के बाद मरीज को तेज बुखार के साथ पूरे शरीर में दर्द का अहसास हो रहा है। मरीज द्वारा समय पर इलाज नहीं लेने पर चेहरे के लकवे सहित तेज न्यूरोलाजिकल दर्द की आशंका रहती है। बांगड़ अस्पताल के चर्म रोग विभाग के 150 की ओपीडी में 30 से 35 मरीज हर रोज आ रहे हैं। हर्पीज जोस्टर तेजी से फैलने वाला वायरस है। संक्रमित व्यक्ति के साथ संपर्क में आने के 2 दिन से 7 दिन में दूसरे व्यक्ति के शरीर में इसके लक्षण दिखने लग जाते हैं। ठीक होने में 20 दिन से ज्यादा लगते हैं। यह रोग शरीर के आधे हिस्से। दाएं या बाएं भाग में ही फैलता है। इसमें चिकनपॉक्स की तुलना में फफोले जैसे बड़े दाने होते हैं। बताया जा रहा है कि कोरोना के बाद हर्पीस जोस्टर के मरीजों में इजाफा हुआ है। इलाज के शुरुआती 48 घंटे महत्वपूर्ण यह वायरस मरीज को चिकनपॉक्स होेने के बाद निष्क्रिय हो जाता है। जब वापस एक्टिव होता है तो हर्पीज जोस्टर का कारण बनता है। कमजोर इम्युनिटी वाले मरीजों को यह बीमारी अधिक होने की संभावना रहती है। इम्यून सिस्टम को मजबूत रखने के लिए विटामिन ए, सी, ई, और जिंक से भरपूर आहार लेना चाहिए। हर्पीज के घाव बढ़ने पर मिठाई, सोडा, एनर्जी ड्रिंक्स और केक को खाने से बचना चाहिए। इलाज के लिए शुरुआती 48 घंटे महत्वपूर्ण होते हैं। – डॉ. शिवानी सैनी, सहायक आचार्य, चर्मरोग विभाग { ठंडे पानी से नहाएं। { घाव को बार-बार न धोएं, सूखा रखें { तरल पदार्थों का सेवन अधिक करें। { ढीले कपड़े पहनें { घाव छूने से पहले हाथ ठीक से धोलें { बर्फ से सिकाई करें { घाव पर क्रीम-लोशन लगाते रहें { लक्षण दिखते ही आइसोलेट कर लें चिकन पॉक्स और हर्पीस जोस्टर का वायरस एक ही है। 35 की उम्र तक मरीज को चिकनपॉक्स हुआ है तो यह वायरस उनके शरीर में रिजर्व रह जाता है। इम्युनिटी कमजोर होते ही जिस नर्व में रह जाता है, शरीर के उस हिस्से में हर्पीस जोस्टर सक्रिय हो जाता है। इसमें पानी वाले फफोले हो जाते हैं, जबकि चिकन पॉक्स में छोटे दाने होते हैं। चिकन पॉक्स पूरे शरीर में होता है। फफोलों के पानी के संपर्क में आने से हर्पीस जोस्टर फैलता है, चिकन पॉक्स छींकने, खांसने व एक दूसरे के कपड़े का उपयोग करने से भी फैलता है। समय पर इलाज जरूरी, दर्द हमेशा रह सकता है यह एक वायरल इंनफेक्शन है। वायरस जब मरीज के शरीर पर इंपेक्ट करता है तो उसके एक पार्ट पर फफोले हो जाते हैं। जैसे चेहरे पर करता है तो आंख का इनवोलमेंट हो जाता है। पांव, हाथ चेस्ट कहीं भी हो सकता है। स्थानीय भाषा है इसे हफनी भी बोलते हैं। कई लोग इसका समय पर इलाज करवाने के बजाए झाड़ फूंक करवाने में लग जाते हैं। इस अंध विश्वास के चलते उनके शरीर पर हुए फफोलों में मवाद हो जाता है। जिससे मरीज को पोस्ट हरपेटिक न्यूराल्जिया हो जाता है। इससे मरीज को तेज बुखार के साथ न्यूरोलॉजिक दर्द शुरू हो जाता है। यह दर्द मरीज को उम्रभर के लिए भी रह सकता है। – डॉ. रेखा सीरवी, सह आचार्य व एचओडी, चर्मरोग विभाग यह संक्रमण से भी फैलता है, मरीज के सीधे संपर्क में न आएं, सावधानी बरतें हर्पीज जोस्टर का वायरस वैरिसेला जोस्टर शरीर में सूक्ष्म अवस्था में रहता है। शरीर की इम्युनिटी कम होती है तो वायरस बीमारी का रूप ले लेता है। हर्पीस डायबिटीज, इम्यूनोकॉम्प्रोमाइज् ड या एड्स के मरीजों को अधिक होता है। समय पर इलाज नहीं लेने पर मरीज को चेहरे के लकवे (फेशियल नर्व पैरालिसिस) या तेज न्यूरोलाजिकल दर्द होने लगता है। ये दर्द कई बार 6 महीने तक रह सकता है। 0डॉक्टर्स का मानना है कि कोरोना के बाद मरीजों ने अधिक एमजी की दवाओं का सेवन किया, इसके चलते इनकी इम्युनिटी कमजोर हो गई। यह बीमारी गंभीर बीमारी से पीड़ित मरीजों को आसानी से संक्रमित कर देती है। डॉक्टर मरीजोें को संक्रमित के सीधे संपर्क में आने से बचने की सलाह दे रहे हैं।

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