छेने का गढ़ है यूपी का इंदरगढ़:यहां शादी में मिठाई नहीं बनती, ऑर्डर इतना कि मशीन से बनाते रसगुल्ले, ड्रमों में होती डिलीवरी

यूपी का कन्नौज जिला यूं तो इत्र के लिए मशहूर है। लेकिन, यहां एक जगह ऐसी है, जो छेने का गढ़ है। इस जगह का नाम है- इंदरगढ़। कन्नौज आने वाले लोग इंदरगढ़ के छेने का स्वाद लेना नहीं भूलते और इसे पैक कराकर जरूर ले जाते हैं। छेने के स्वाद और क्वालिटी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यहां मांगलिक कार्यक्रम में मिठाई नहीं बनती। लोग शादी पार्टी में इंदरगढ़ का छेना ही ऑर्डर करते हैं। दैनिक भास्कर की स्पेशल सीरीज जायका में जानते हैं इंदरगढ़ के छेने के इतिहास और इसके फेमस होने की पूरी कहानी… कन्नौज जिला मुख्यालय से करीब 32 किमी दूर है इंदरगढ़ कस्बा। यह इलाका एशिया के सबसे बड़े पक्षी विहार के लिए भी फेमस है। यहां के लोग बताते हैं कि इंदरगढ़ के छेने की पहचान और स्वाद 52 साल से बरकरार है। हम यहां सबसे पहले पटेल नगर तिराहा पहुंचे। यहां की श्री बालाजी स्वीट्स पर लोगों की भीड़ लगी हुई थी। पूछने पर पता चला ये लोग यहां छेना खरीदने आए हैं। छेने की अलग-अलग वैराइटी यहां मौजूद हैं। इनमें राजभोग-मलाई चाप और चमचम की डिमांड भी ज्यादा है। लेकिन, सबसे ज्यादा पैकिंग सफेद रसगुल्ले की होती दिखी। लोग दुकान पर इसका स्वाद भी लेते दिखाई दिए। होरीलाल जी यज्ञ सैनी ने की छेना बनाने की शुरुआत श्री बालाजी स्वीट्स के मालिक अभिषेक पटेल ने बताया- इंदरगढ़ में छेना बनाने की शुरुआत 1973 में होरीलाल जी यज्ञ सैनी ने की थी। उनके छेने में चाशनी कम होती थी। लेकिन, मिठास लाजवाब। बस सूखे छेने के रूप में उनका स्वाद प्रसिद्ध होने लगा। लोग दूर-दूर से डिब्बों में छेना पैक कराने पहुंच जाते। यह छेना यूपी के सभी जिलों में पहुंचा और खूब नाम हुआ। हालांकि, होरीलाल जी यज्ञ सैनी के कोई बेटा नहीं था। इसलिए उनके निधन के बाद बेटी ने इस कारोबार को संभाला। इसके बाद कस्बे में कई लोग छेना बनाने लगे। छेना फेमस हो गया, तो इसकी डिमांड भी बढ़ने लगी। डिमांड ऐसी कि मशीन लगानी पड़ी श्री बालाजी स्वीट्स के छेने का टेस्ट ऐसा है कि सुबह से लेकर देर रात तक यहां खरीदारों की भीड़ लगी रहती है। छेना बनाने के लिए दुकान से 100 मीटर की दूरी पर कारखाना लगाया गया है। यहां छेना बनाने के लिए ऑटोमैटिक सिस्टम वाली मशीन भी लगाई गई है। इसके अलावा भी कारीगर दिन-रात छेना बनाने में बिजी रहते हैं। ड्रम में छेने की डिलीवरी, दाम भी सस्ता बड़े ऑर्डर मिलने पर ड्रम में छेने की डिलीवरी की जाती है। दुकानदार बताते हैं- यह अन्य मिठाइयों से सस्ता है। इसलिए भी इसकी बिक्री ज्यादा है। आम और चमचम छेना 120 से 150 रुपए किलो। राजभोग 180 से 200 और स्पेशल मलाई चाप छेना 220 से 250 रुपए किलो के हिसाब से बिकता है। आम दिनों में श्री बालाजी स्वीट्स पर 1 से डेढ़ कुंतल तक छेने की बिक्री हो जाती है। वहीं, सहालग के समय डिमांड ढाई कुंतल तक बढ़ जाती है। पशुपालन प्रमुख पेशा, इसलिए भी दाम सस्ता कन्नौज के लोगों का मुख्य पेशा खेती-किसानी और पशुपालन है। इंदरगढ़ और इसके आसपास के इलाकों में सबसे ज्यादा पशुपालक रहते हैं, जो छेने के लिए दूध की आपूर्ति करते हैं। यही वजह है कि छेना बनाने के लिए दूध की कमी नहीं होती और क्वालिटी भी बरकरार रहती है। अब पढ़िए, कस्टमर रिव्यू …………………………….. हर गुरुवार को प्रकाशित होने वाली ‘जायका सीरीज की ये 4 स्टोरी भी पढ़िए… 1.ठग्गू के लड्डू…ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं: 55 साल पुराना कनपुरिया जायका; स्वाद ऐसा कि पीएम मोदी भी मुरीद, सालाना टर्नओवर 5 करोड़ रुपए गंगा नदी के किनारे बसा कानपुर, स्वाद की दुनिया में भी खास पहचान रखता है। यहां का एक जायका 55 साल पुराना है। इसकी क्वालिटी और स्वाद आज भी वैसे ही बरकरार है। यूं तो आपने देश के कई शहरों में लड्डुओं का स्वाद चखा होगा। लेकिन गाय के शुद्ध खोए, सूजी और गोंद में तैयार होने वाले ठग्गू के लजीज लड्डुओं का स्वाद आप शायद ही भूल पाएंगे। पीएम मोदी जब कानपुर मेट्रो का उद्घाटन करने आए थे, तब उन्होंने मंच से इस लड्डू की तारीफ की थी। पढ़िए पूरी खबर… 2. बाजपेयी कचौड़ी…अटल बिहारी से राजनाथ तक स्वाद के दीवाने: खाने के लिए 20 मिनट तक लाइन में लगना पड़ता है, रोजाना 1000 प्लेट से ज्यादा की सेल बात उस कचौड़ी की, जिसकी तारीफ यूपी विधानसभा में होती है। अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर राजनाथ सिंह और अखिलेश यादव भी इसके स्वाद के मुरीद रह चुके हैं। दुकान छोटी है, पर स्वाद ऐसा कि इसे खाने के लिए लोग 15 मिनट तक खुशी-खुशी लाइन में लगे रहते हैं। जी हां…सही पहचाना आपने। हम बात कर रहे हैं लखनऊ की बाजपेयी कचौड़ी की। पढ़िए पूरी खबर… 3. ओस की बूंदों से बनने वाली मिठाई: रात 2:30 बजे मक्खन-दूध को मथकर तैयार होती है, अटल से लेकर कल्याण तक आते थे खाने नवाबी ठाठ वाले लखनऊ ने बदलाव के कई दौर देखे हैं, पर 200 साल से भी पुराना एक स्वाद है जो आज भी बरकरार है। लखनऊ की रियासत के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह भी इसके मुरीद थे। अवध क्षेत्र का तख्त कहे जाने वाले लखनऊ के चौक पर आज भी 50 से ज्यादा दुकानें मौजूद हैं, जहां बनती है रूई से भी हल्की मिठाई। दिल्ली वाले इसे ‘दौलत की चाट’ कहते हैं। ठेठ बनारसिया इसे ‘मलइयो’ नाम से पुकारते हैं। आगरा में ‘16 मजे’ और लखनऊ में आकर ये ‘मक्खन-मलाई’ बन जाती है। पढ़िए पूरी खबर… 4. रत्तीलाल के खस्ते के दीवाने अमेरिका में भी: 1937 में 1 रुपए में बिकते थे 64 खस्ते, 4 पीस खाने पर भी हाजमा खराब नहीं होता मसालेदार लाल आलू और मटर के साथ गरमा-गरम खस्ता, साथ में नींबू, लच्छेदार प्याज और हरी मिर्च। महक ऐसी कि मुंह में पानी आ जाए। ये जायका है 85 साल पुराने लखनऊ के रत्तीलाल खस्ते का। 1937 में एक डलिये से बिकना शुरू हुए इन खस्तों का स्वाद आज ऑस्ट्रेलिया,अमेरिका और यूरोप तक पहुंच चुका है। पढ़िए पूरी खबर…

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