जबलपुर में आचार्य रजनीश के देवताल आश्रम पहुंचे सैकड़ों अनुयायी:’ओशो’ का जन्मदिन आज, देश-विदेश से मौल श्री वृक्ष के दर्शन करने आते हैं रजनीश मार्गी

11 दिसंबर को आचार्य रजनीश ‘ओशो’ का जन्मदिन है। हर साल की तरह आज भी ओशो का जन्मदिन मनाने के लिए उनके सैकड़ों अनुयायी दूर-दूर से जबलपुर स्थित देवताल आश्रम पहुंचे हुए हैं। आचार्य रजनीश (ओशो) का जन्म 11 दिसंबर 1931 को मध्य प्रदेश के कुचवाड़ा में हुआ था। ओशो का नाम चंद्रमोहन जैन था। बाद में वह रजनीश के नाम से जाने गए। रजनीश को बाद में ओशो के नाम से प्रसिद्धि मिली। ओशो ने अपनी पढ़ाई जबलपुर से पूरी की थी। जबलपुर के रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी में बतौर प्रोफेसर भी उन्होंने कई दिनों तक पढ़ाया था। महा कौशल कॉलेज में ओशो दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर थे उन्होंने 1957 से 1970 तक कॉलेज में अध्यापन कार्य किया था। रजनीश को बचपन में ही दर्शन में रुचि पैदा हो गई थी। इसका जिक्र उन्होंने अपनी किताब ”ग्लिम्पसेस ऑफ ए गोल्डन चाइल्ड हुड” में भी किया है। प्रोफेसर होने के साथ साथ ओशो ने अलग-अलग धर्म और विचारधारा पर देश भर में प्रवचन देना शुरू किया। ध्यान शिविर भी आयोजित किए। उन्होंने विश्वविद्यालय की नौकरी छोड़ ‘नव संन्यास आंदोलन’ की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने खुद को ओशो कहना शुरू कर दिया। आचार्य रजनीश(ओशो) को जबलपुर से बहुत प्रेम था। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका पहुंचकर विश्व प्रसिद्ध होने के बाद भी वह जबलपुर को कभी नहीं भूले। कहा जाता है कि उनके एक अनुयायी ने जब उनसे पूछा कि धरती पर सबसे पसंदीदा जगह आपकी कौन सी है। तो उनका कहना था जबलपुर वो स्थान है जो मुझे सबसे सुंदर लगता है। यही वजह है कि ओशो के जन्मदिन पर कई सालों से उनके अनुयायी जबलपुर आते रहे हैं। बताया जाता है कि उन्होंने कहा था, ”जबलपुर मेरा पर्वत स्थल है, जहां मैं सर्वाधिक आनंदित हुआ.”। जबलपुर के ही भंवर ताल पार्क में मौल श्री वृक्ष है। कहा जाता है कि मार्च 1953 को भंवर ताल पार्क के मौलश्री वृक्ष के नीचे आचार्य रजनीश को बोध तत्व की उपलब्धि प्राप्त हुई थी। वर्तमान में मौलश्री वृक्ष को नगर निगम ने संरक्षित कर रखा है। आचार्य रजनीश की साधना शिला देवताल पार्क में है। जबलपुर के महा कौशल कॉलेज की लाइब्रेरी में आज भी ओशो से जुड़े लिटरेचर, मैगजीन और उनके जीवनकाल से जुड़ी तस्वीरों का कलेक्शन मौजूद है।

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