डूंगला का किशन करेरी बना हजारों प्रवासी पक्षियों का ठिकाना:पर्यटकों के लिए अनोखी सुविधा – बैलगाड़ी और घुड़ सवारी से कर सकते है बर्ड वाचिंग

चित्तौड़गढ़ जिले के डूंगला क्षेत्र का किशन करेरी गांव हर साल सर्दियों में पक्षियों से भर जाता है। यह गांव पक्षी विहार के नाम से फेमस है। अक्टूबर से लेकर मार्च तक यहां दूर-दूर देशों से आए परिंदों की धूम रहती है। जैसे ही सर्दी शुरू होती है, तालाब पर परिंदों के आवाज और उड़ान से पूरा इलाका जीवंत हो उठता है। हजारों किलोमीटर उड़कर आते हैं विदेशी पक्षी हर साल की तरह इस बार भी हजारों किलोमीटर दूर से अनेक प्रवासी पक्षी यहां पहुंच चुके हैं। पक्षी प्रेमी भैरु पुरोहित बताते हैं कि इस समय किशन करेरी तालाब पर बार-हेडेड गूज़, नॉर्दर्न शोवलर, यूरेशियन विजन, कॉमन टील, रुडी शैल डक, ब्लैक-टेल्ड गॉडविट, स्पॉट-बिल्ड डक, गेडवाल और सारस जैसी कई प्रजातियां बड़ी संख्या में देखी जा रही हैं। इनके साथ-साथ स्थानीय पक्षी भी तालाब के माहौल को और खुशनुमा बना देते हैं। प्रवासी पक्षियों को यहां मिलता है सुरक्षित ठिकाना किशन करेरी तालाब पक्षियों के लिए बिल्कुल सुरक्षित और आरामदायक जगह मानी जाती है। यहां उन्हें भरपूर भोजन, शांत माहौल और रहने की जगह मिल जाती है। इसी कारण हर साल हजारों परिंदे यहां महीनों तक रुककर अपना प्रवासकाल बिताते हैं। स्थानीय संगठन ग्रीन अर्थ नेचुरल सोसायटी इन परिंदों की सुरक्षा और देखभाल में लगातार काम कर रहा है। गांव के लोग भी कर रहे हैं सराहनीय काम गांव के लोग भी तालाब की सुरक्षा को लेकर काफी सजग हैं। तालाब में मछली के ठेके और सिंघाड़े की खेती पर पूरी तरह रोक लगा दी है, ताकि पक्षियों को किसी तरह की दिक्कत न हो। संगठन और ग्रामीणों ने मिलकर अवैध खनन और पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए कई बार कार्रवाई की है। साथ ही हजारों पौधे लगाकर इस इलाके का पर्यावरण और बेहतर बनाया गया है। यहां कई औषधीय पौधे भी पाए जाते हैं, जिनमें रुद्रवंती और नामी पौधे खास पहचाने जाते हैं। सर्दी की दस्तक के साथ बढ़ रहा है परिंदों का आना अक्टूबर के आखिरी दिनों में जैसे ही सर्दी ने दस्तक दी, वैसे ही परिंदों ने भी तालाब पर अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी। अक्टूबर के पहले हफ्ते में कुछ पक्षी पहुंचे थे, और अब उनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। यह सिलसिला फरवरी-मध्य मार्च तक चलता है। गर्मी शुरू होते ही ये पक्षी वापस अपने देशों की ओर लौट जाते हैं। परिंदों को देखने पहुंचते हैं दूर-दराज के लोग किशन करेरी तालाब पर पक्षियों के करतब और उड़ान देखना बेहद रोमांचक होता है। ग्रेट कस्टर्ड ग्रीब के जोड़ों का नृत्य और सारस की ऊंची आवाज तालाब के किनारे एक अलग ही माहौल बना देती है। हर साल यहां दूर-दूर से पर्यटक और पक्षी प्रेमी पहुंचते हैं। पिछले कुछ सालों में यहां पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ी हैं। सुबह 6 से 9 बजे का समय बर्ड वॉचिंग के लिए सबसे बढ़िया माना जाता है। शाम 4 से 6 बजे तक ढलते सूरज के साथ तालाब का नजारा और भी खूबसूरत दिखता है। पक्षी दर्शन के लिए खास सुविधाएं भी उपलब्ध, बैलगाड़ी और घोड़े पर बैठकर देख सकते है पक्षी पर्यटकों की सुविधा के लिए तालाब के पास पक्षी देखने के लिए अगर कोई पहले बुकिंग करवा ले, तो बैलगाड़ी या घोड़े पर बैठकर भी तालाब के चारों ओर घूमकर पक्षी दर्शन कर सकता है। किशन करेरी के अलावा बड़वाई, मंगलवाड़, नंगावली और वागन बांध में भी सर्दियों में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी दिख जाते हैं। हर साल सर्दियों में बड़ी संख्या में पक्षी प्रेमी, प्रकृति प्रेमी और फोटोग्राफर यहां पहुंचते हैं। इतिहास और प्रकृति का सुंदर मेल, द्वारकाधीश का भी है मंदिर किशन करेरी न सिर्फ पक्षियों के कारण जाना जाता है, बल्कि यहां का प्राचीन द्वारिकाधीश मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। बताते हैं कि इस मंदिर की मूर्ति कई साल पहले इसी तालाब से निकली थी। प्रकृति की खूबसूरती, शांत वातावरण और इतिहास का मिलाजुला रूप इस जगह को और खास बनाता है। इतिहास और प्रकृति का यह सुंदर मेल इस क्षेत्र को और भी खास बनाता है। तालाब, जंगल, पहाड़ और पक्षियों के बीच समय बिताने वाले लोगों के लिए यह जगह किसी शांत प्राकृतिक स्वर्ग जैसी लगती है।

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