दिव्यांगों की कृष्णा…:टॉयलेट, स्टेशन, मंदिर को बना रहीं हैंडीकैप्ड फ्रेंडली

दिव्यांगों की दिक्कतें समझने वाले बहुत कम हैं, पर जांजगीर-चांपा जिले की प्राध्यापक कृष्णा यादव इस मामले में अलग हैं। खुद दिव्यांग होकर भी दूसरों का जीवन आसान बनाना ही उन्होंने अपनी जिंदगी का लक्ष्य बना लिया है। वे रेलवे स्टेशन, सिनेमा घर, मंदिर तक में दिव्यांगों की सुविधा दिलाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष कर रही हैं। यहां जानते हैं दूसरों के​ लिए किए जा रहे संघर्ष की कहानी, उन्हीं की जुबानी… मैं कृष्णा यादव हूं। जांजगीर-चांपा जिले के गांव से हूं। आज कॉलेज में प्राध्यापक हूं, पर मेरे जीवन का उद्देश्य दिव्यांगजनों के लिए काम करना है। छह महीने की उम्र में झोलाछाप डॉक्टर के गलत इलाज के चलते मैंने दोनों पैर गंवा दिए। एक इंजेक्शन ने पहले पैर को लकवाग्रस्त किया, दूसरे ने दूसरे पैर को भी काम के लायक नहीं छोड़ा। खुद विकलांगता झेली, तो ठान लिया कि अपने जैसे लोगों की जिंदगी आसान बनानी है। कॉलेज तक डंडे के सहारे पढ़ाई की। अब ट्राइसाइकिल से चलती हूं। एक मंदिर में मैंने देखा कि दिव्यांग घंटों तक सामान्य लोगों के साथ दर्शन के लिए लाइन में खड़े थे। यह अनुभव जीवन बदलने वाला था। उसी दिन तय किया कि अब बदलाव लाकर रहूंगी। यह भी देखा कि दिव्यांगों के लिए स्कूलों में रैंप जैसी सुविधा तक नहीं होती। प्रयास कर अब तक 42 स्कूलों में टॉयलेट रैंप बनवाए। स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के दाखिले को लेकर भी जागरुकता अभियान चलाया, जिससे अब तक 50 से अधिक दृष्टिबाधित बच्चों को दाखिला मिल चुका है। रेलवे स्टेशन हो या मंदिर, सिनेमा घर हो या पेयजल से लेकर व्हीलचेयर तक की समस्या हर जगह दिखी। इन सबके बारे में अधिकारियों से मिलकर समाधान निकालने की कोशिश की। आज करीब 200 से अधिक व्हीलचेयर रेलवे स्टेशन, स्कूल, सिनेमा हॉल व मंदिरों में रखवा चुकी हूं। दिव्यांग बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के लिए वाल पेंटिंग करती हूं। परिवार वाले दुनिया के सामने नहीं लाना चाहते: दिव्यांगों को समाज में कम देखे जाने का कारण उनका छुपाया जाना है। परिवार वाले शर्मिंदगी से उन्हें बाहर नहीं लाते। विकलांगता को आज भी लोग शर्म और बोझ समझते हैं, जबकि उनमें अद्भुत क्षमता होती है। ऐसे कई दिव्यांग लोग हैं जो कभी समाज के सामने नहीं आए। मैंने कुछ को काम सिखाया और नौकरी दिलाई। परिवारों की काउंसिलिंग की, ताकि वे बच्चों को समाज में सामने लाएं। बहुत से दिव्यांग लोग घरेलू हिंसा का शिकार होते हैं। उन्हें यौन शोषण का भी सामना करना पड़ता है, खासकर जब वे बोलने या विरोध करने में असमर्थ हों। पुलिस भी उन्हें सुरक्षित ठिकाना नहीं दे पाती क्योंकि शेल्टर होम की भारी कमी है। मैं इन्हें सामान्य जीवन देने के लिए निरंतर प्रयासरत हूं। दिव्यांगों सम्मान और जिंदगी में मुकाम दिलाना मकसद मैं दिव्यांगों के सम्मान और जीवन में स्थिरता के लिए काम कर रही हूं। समाज को सिर्फ कुछ विकलांगताओं की जानकारी है, जबकि यह 21 प्रकार की होती हैं। लोग इन बच्चों को पढ़ाना नहीं चाहते और उनका मज़ाक उड़ाते हैं। मेरा उद्देश्य है कि दिव्यांगों को बराबरी और सम्मान मिले।

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