भारतीय रेलवे ने देश के पहले हाइड्रोजन पावर्ड कोच की सफल टेस्टिंग की है। यह टेस्टिंग इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) चेन्नई में हुई। भारत 1,200 हॉर्स पावर हाइड्रोजन ट्रेन डेवलप करने पर काम कर रहा है। यह उसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने X हैंडल पर एक वीडियो शेयर कर इसकी जानकारी दी। यह इंजन हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक पर आधारित है। इसमें हाइड्रोजन गैस और ऑक्सीजन के बीच केमिकल रिएक्शन से बिजली बनती है जो ट्रेन के इलेक्ट्रिक मोटर को चलाती है। इस प्रोसेस में पानी (H₂O) बाय-प्रोडक्ट के तौर पर निकलता है। यानी, धुआं की जगह यह इंजन पानी छोड़ता है। हाइड्रोजन ट्रेनें मौजूदा रेल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ही काम करेंगी और डीजल इंजन की तुलना में ज्यादा एनर्जी एफिशिएंट होंगी। इलेक्ट्रिक इंजन की तुलना में परिचालन महंगा यह इंजन हाइड्रोजन बनाने और इससे बिजली प्रोड्यूस करने के दौरान काफी एनर्जी लॉस करता है। इसी कारण हाइड्रोजन ट्रेनें इलेक्ट्रिक ट्रेनों की तुलना में कम एफिशिएंट होती हैं। इलेक्ट्रिक ट्रेन जहां 70-95% तक एनर्जी एफिशिएंट हैं वहीं, हाइड्रोजन इंजन 30-60% तक एफिशिएंट हैं। हाइड्रोजन ट्रेनों को उन रूट्स पर चलाना किफायती हो सकता है जहां अभी ट्रैकों को इलेक्ट्रीफाइड नहीं किया गया है। क्योंकि यहां इलेक्ट्रिफिकेशन का खर्च काफी होगा।