धार्मिक आस्था, कृषि समृद्धि और सामाजिक एकता का प्रतीक है बैसाखी का पर्व: साध्वी सर्वसुखी भारती

भास्कर न्यूज | जालंधर बैसाखी के पावन अवसर पर रविवार को दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान, नूरमहल आश्रम में विशाल समागम का आयोजन किया गया। स्वामी चिन्मयानन्द ने सर्वप्रथम गुरुदेव आशुतोष महाराज की शरण में आए सभी श्रद्धालुगणों को शुभकामनाएं दी। इसके बाद साध्वी सर्वसुखी भारती एवं महात्मा सुनील ने “मित्र प्यारे नूं हाल मूरीदां दा कहना “स्वामी यशेश्वरानन्द ने जागत जोति जपै निसु बासर “गुरबाणी शब्द की ऐसी भावमय संरचना को प्रस्तुत किया, जिसे श्रवण कर सभी आत्मविभोर हो गए। सत्संग समागम के दौरान साध्वी मीनाक्षी भारती ने बताया कि बैसाख एक पवित्र माह है। भारतीय कालगणना के अनुसार यह वर्ष का द्वितीय माह है। इस माह में चहुँ ओर हरियाली छा जाती है। सूखे वृक्ष नई कोपलों को प्राप्त करते हैं और प्रकृति उल्लासित व आह्लादित हो उठती है। उसी तरह भक्त के जीवन में यह पर्व उसकी आंतरिक हरियाली की तरफ इंगित करता है। जब जीवन में भक्ति, प्रेम एवं समर्पण की नवीन कोपलें फूटती हैं, तभी हृदय जगत में बैसाख होता है। जब हरी समान संत जीवन में आता है, तभी सही मायने में एक साधक की बैसाखी होती है। इसके पश्चात स्वामी रामेश्वरानंद ने गुरु गोबिंद सिंह जी के द्वारा 1699 में खालसा पंथ की साजना के बारे में बताते हुए कहा कि खालसा शब्द एक सिख धर्म में शुद्ध रूप से अपने गुरु के प्रति समर्पण भाव को प्रगट करता है। सत्संग में शामिल श्रद्धालु।

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