छत्तीसगढ़ का प्रमुख व प्रथम लोकपर्व हरियाली (हरेली) त्यौहार अंचल में धूमधाम से मनाया गया। छत्तीसगढ़ के प्रथम लोकपर्व हरेली पर गुरुवार, श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या को खेती-किसानी में काम आने वाले उपकरणों और बैलों की पूजा सपरिवार की गई। इस दौरान प्रत्येक घर में हरेली के मुख्य पारंपरिक व्यंजन गुड़ चीला और ठेठरी-खुरमी के पकवान भी बनाए गए। आज के दिन ग्रामीणों द्वारा ग्रामदेवता की पूजा विधिविधान से की गई। अंचल के भद्रपाली, मुढ़ीपार, खैरताल, मिरगी, टोनाटार, नवागांव, टोपा, गोंढ़ी, मल्दी, देवरानी, मोपर, टेकरी, जेठानी में हरेली त्यौहार किसान भाइयों द्वारा धूमधाम से मनाया गया। हरेली पर कृषक वर्ग ने अपने कृषि यंत्र हल, गैंती, कुदाली, फावड़ा समेत कृषि में उपयोग होने वाले सभी तरह के औज़ारों की साफ़-सफ़ाई कर उन्हें और बाँस की गेड़ी बनाकर एक स्थान पर रखकर पूजन किया। साथ ही आधुनिकता के बढ़ते दौर में किसानों ने ट्रैक्टर जैसे आधुनिक यंत्रों का भी विधिवत पूजन किया। मुढ़ीपार में ज़िला पंचायत सदस्य प्रतिनिधि डोमन वर्मा द्वारा गौठान में मवेशियों को आटे की लोंदी खिलाई गई। इस दिन बैल, भैंस और गाय को बीमारियों से बचाने के लिए लोंदी खिलाई जाती है। यादव समाज द्वारा दी गई औषधि को लोग सुबह घर से मवेशी निकलने के उपरांत गौठान जाकर गाय, बैल और भैंसों को लोंदी खिलाते हैं। मवेशियों को लोंदी खिलाई गई। हरेली में गांव-गांव में लोहारों व यादवों द्वारा हर घर के मुख्य द्वार पर नीम की पत्तियाँ लगाई गईं और लोहारों ने चौखट में कील ठोंककर आशीर्वाद दिया। मान्यता है कि ऐसा करने से घरों में सुख-समृद्धि बनी रहती है, साथ ही बुरी नज़र से भी बचाव होता है। इसी परंपरा के तहत लोहारों द्वारा घरों में कील ठोंकी जाती है। करही बाजार | सावन माह की कृष्ण पक्ष अमावस्या पर गुरुवार को करही बाजार सहित क्षेत्र में हरेली तिहार पारंपरिक उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया गया। इस बार हरियाली अमावस्या पर गुरु पुष्य योग और सिद्ध योग का दुर्लभ संयोग बना,जिसे स्थाई उन्नति और समृद्धि के लिए बेहद शुभ माना गया। घर-घर में पारंपरिक पकवान गुरहा (गुड़) चीला और सोहारी की खुशबू फैली रही। सुबह से ही मोहल्लों में बच्चों और युवाओं की टोलियां गेडी चढ़कर निकली। कृषि औजारों की पूजा कर अन्नदाता की समृद्धि की कामना की गई। क्षेत्र के शिवालयों में दिनभर विशेष पूजन हुए। पितरों की शांति के लिए तर्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। ब्रह्म मुहुर्त में स्नानकर लोग काले तिल, सफेद फूल और कुशा से तर्पण करते दिखे। सांस्कृतिक कार्यक्रम और छत्तीसगढ़ी परंपरा की झलक परिसर में सुबह 7:30 बजे से कृषि औजारों की पूजा की गई। इसके बाद गेडी दौड़ और नारियल फेंक प्रतियोगिताएं आयोजित की गई। महिलाओं द्वारा छत्तीसगढ़ी गीत गाए गए, जिससे पूरा माहौल पारंपरिक लोक-संगीत की गूंज से सराबोर रहा। हरियाली त्यौहार के समय धरती पूरी तरह से हरियाली से आच्छादित हो जाती है। देखने पर ऐसा लगता है मानो धरती ने हरा चादर लपेट लिया हो, हरेली हरियाली का ही प्रतीक है यह त्यौहार प्रकृति को समर्पित है। छत्तीसगढ़ का यह पहला त्यौहार है इसे हरियाली अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। हरेली तिहार के दिन औजारों की पूजा करने के साथ ही खेत में चीला चढ़ाकर पूजा कर किसान अच्छे फसल की कामना करते हैं। हरेली पर औजारों की पूजा की गई।