अंग्रेजों ने 1818 में रायपुर को ‘छत्तीसगढ़ सूबे‘ की राजधानी बनाया था और 1854 में उसे छत्तीसगढ़ संभाग बनने पर संभाग का मुख्यालय बनाया। अंग्रेजों ने सन् 1861 में रायपुर जिले का निर्माण किया और जिले का मुख्यालय भी रायपुर को बनाया। सूबे की राजधानी, संभाग का मुख्यालय और जिले का प्रमुख शहर बनने पर रायपुर क्रमशः विकसित होता रहा और तत्कालीन सेंट्रल प्राविंसेस एण्ड बरार का सातवां सबसे बड़ा शहर बन गया। यह शहर उस समय स्थापत्य की दृष्टि से बहुत उल्लेखनीय माना जाता था तथा राजनीतिक-प्रशासनिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण था लेकिन यहां नागरिक सुविधाओं का अभाव था। अंग्रेजों ने नागरिक सुविधाओं के विस्तार के लिए रायपुर में 1867 में नगर पालिका का गठन किया। 1883 में बनी पहली योजना
उस समय रायपुर में कुछ गिनी-चुनी सड़कें थीं और लोग यहां तालाबों और कुओं से जल की पूर्ति करते थे। शहर में नलजल की सुविधा देने के लिए 1883 में एक योजना बनाई गई। इस योजना पर रू. 5,66,194/- खर्च होने का अनुमान लगाया गया। इतनी बड़ी राशि जुटाना रायपुर नगर पालिका के बस की बात नहीं थी। इस वजह से इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। खैर, 1890 में छत्तीसगढ़ संभाग के कमिश्नर एम.एम. बोबी ने इस योजना को लागू करने का प्रयास शुरू किया। उनका ध्यान नांदगांव रियासत के प्रमुख राजा बहादुर बलराम दास की ओर गया। इसका कारण भी था कि नांदगांव रियासत के प्रमुख महंत घासीदास ने 1865 में रायपुर में एक पुरातत्व संग्रहालय बनवाया था जिसे अजायबघर कहा जाता था। यह अष्टकोणीय भवन अब भी अपनी गरिमा के साथ पुराने डी. के. अस्पताल के पास अस्तित्व में है। कमिश्नर बोबी ने की पहल
कमिश्नर बोबी ने नांदगांव रियासत के प्रमुख राजा बहादुर बलराम दास से रायपुर के लिए नलजल योजना शुरू करने के लिए सहायता देने का आग्रह किया। बलराम दास जब अल्प वयस्क थे तब रियासत का राजकाज उनकी प्रबुद्ध मां रानी जोत कुंवर बाई के हाथों में था। बलराम दास वयस्क होने पर प्रशासन करने का अधिकार 1891 में पा गए थे। कमिश्नर बोबी के आग्रह पर राजा बहादुर बलराम दास रायपुर की नलजल योजना के लिए दो लाख रूपये का योगदान करने के लिए उदारता पूर्वक तैयार हो गए। फिर अपनी प्रबुद्ध मां की सलाह पर इस योगदान को उन्होंने ‘मुफ्त उपहार’ के रूप में दे दिया। नलघर को दिया राजा का नाम
नांदगांव रियासत से रू. दो लाख का ‘मुफ्त उपहार‘ मिलने पर रायपुर के लिए खारून नदी से पानी लाने की योजना अगस्त 1891 में फिर से तैयार की गई जिसकी लागत रू. 3,48,691/- अनुमानित की गई। उस समय रायपुर की आबादी कोई तीस हजार थी किंतु भविष्य की जनसंख्या वृद्धि को ध्यान में रखकर चालीस हजार आबादी में प्रतिव्यक्ति को प्रतिदिन दस गैलन अर्थात लगभग 38 लीटर पानी देने के लिए यह योजना तैयार की गई थी। नवम्बर 1891 में योजना का कार्य शुरू किया गया जो दिसम्बर 1892 में पूरा हुआ। खारून नदी से पानी लाने और रायपुर में टंकी बनाने तथा पाईप लाईन बिछाने पर कुल वास्तविक खर्च रू. 3,38,444/- आया था। राजा बहादुर बलराम दास के योगदान को ध्यान में रखकर नलघर का नाम बलराम दास जलपूर्ति गृह रखा गया था। इसके साक्ष्य में एक शिलालेख अभी भी लगा है।


