झारखंड के साहिबगंज जिले में नींबू पहाड़ स्थित अवैध पत्थर-खनन केस में सुप्रीम कोर्ट ने CBI को पूरी स्वतंत्रता के साथ जांच जारी रखने का आदेश दिया है। यह फैसला जस्टिस आलोक राठे और जस्टिस संजय कुमार की दो-सदस्यीय पीठ ने सुनाया। पीठ ने साफ कहा कि हाई कोर्ट ने CBI को जो जिम्मेदारी दी थी, वह सही है। इसे सीमित दायरे में नहीं देखा जा सकता। कोर्ट ने झारखंड सरकार और याचिकाकर्ता विजय हांसदा की सभी दलीलें खारिज कर दीं। ₹1,500 करोड़ का अवैध खनन घोटाला साहिबगंज का यह मामला करीब ₹1,500 करोड़ के अवैध पत्थर-खनन घोटाले से जुड़ा है। वर्ष 2022 में ED ने इसकी जांच शुरू की थी। इसी दौरान JMM के प्रभावशाली नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी माने जाने वाले पंकज मिश्रा को गिरफ्तार किया गया था। ED की जांच में खनन विभाग के अधिकारियों, स्थानीय राजनीतिक नेतृत्व और खनन माफियाओं की मिलीभगत के आरोप सामने आए थे। इस मामले में साहिबगंज के रहने वाले विजय हांसदा ने भी हाईकोर्ट में याचिका दायर कर पंकज मिश्रा और खनन अधिकारियों की भूमिका की शिकायत की थी। मीडिया में आई खबरों के मुताबिक विजय हांसदा ने बाद में आरोप लगाया कि ED ने उन पर दबाव डालकर बयान दिलवाया। उन्होंने अपनी याचिका वापस लेने की मांग की, लेकिन झारखंड हाई कोर्ट ने इससे इनकार कर दिया। हाई कोर्ट ने CBI को निर्देश दिया कि वह विजय हांसदा के आचरण के साथ-साथ आरोपी पक्ष की भूमिका की भी जांच करे। सरकार और हांसदा दोनों पहुंचे सुप्रीम कोर्ट हाईकोर्ट के आदेश के बाद झारखंड सरकार और विजय हांसदा दोनों ही सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। उनका तर्क था कि हाईकोर्ट ने CBI को केवल आचरण की जांच का आदेश दिया था, न कि पूरे अवैध खनन मामले की। सरकार का कहना था कि CBI को इस मामले में शामिल करना अधिकार क्षेत्र से बाहर है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाई कोर्ट का सामना गंभीर आरोपों से था। जांच सीमित रखने से सच सामने लाने में बाधा आती। CBI को अब पूरे केस की जांच का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद CBI अब पूरे अवैध खनन घोटाले की जांच कर सकेगी। इसमें पत्थर माफिया, सरकारी अधिकारियों, राजनीतिक हस्तियों और याचिकाकर्ता के कथित दबाव व बयान बदलने जैसे पहलू शामिल होंगे। कोर्ट के आदेश के बाद यह केस झारखंड की राजनीति, प्रशासन और खनन व्यवस्था तीनों पर बड़ा असर डाल सकता है।


