सरकार आंगनबाड़ी केंद्रों को प्ले स्कूल की तरह बनाना चाहती है। यानी बच्चा पढ़ाई करने के साथ खेले भी। पर राजधानी में ही ज्यादातर आंगनबाड़ी ऐसी हैं जिनमें खेलने की जगह तो दूर केंद्र के सारे बच्चे एक साथ बैठ भी नहीं सकते। रायपुर में 1890 आंगनबाड़ी केंद्र हैं। इनमें से करीब 450 केंद्रों के पास खुद के भवन नहीं। ऐसे में किराए के कमरों में बच्चों की पढ़ाई कराई जा रही है। भवन किराए की सीमा कम होने से बस्तियों में छोटे-छोटे कमरे किराए पर लेकर आंगनबाड़ियां संचालित की जा रही हैं। कई जगह तो कमरे ऐसी संकरी बस्तियों में हैं कि बच्चों के लिए केंद्र के बाहर भी खेलने की जगह नहीं है। भास्कर ने पड़ताल की तो पता चला है कि सरकार से आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए किराया अधिकतम 6 हजार रुपए तय है। इतना भी किराया उसी केंद्र के लिए तय है जहां कमरा, किचन, बाथरूम समेत सारी सुविधाएं हैं। परेशानी यह है कि राजधानी में 6 हजार रुपए महीने में ऐसा सुविधायुक्त घर मिलना मुश्किल है। इसलिए मजबूरी में कार्यकर्ता आउटर और स्लम इलाकों में ढाई-तीन हजार महीने के एक कमरे में आंगनबाड़ी केंद्र संचालित कर रही हैं। इस वजह से ज्यादातर केंद्रों में न तो जरूरी सुविधाएं हैं और न ठीक माहौल है। उसी छोटे से कमरे में पढ़ाई के साथ खेलकूद की एक्टिविटी, किचन, टेक होम राशन का स्टॉक रखने के अलावा छोटा ऑफिस भी होता है। यही वजह है कि उसके बाद बच्चों के बैठने तक के लिए पर्याप्त जगह नहीं बचती। 8X8 के कमरे में चल रहे केंद्र में 20 बच्चे, गली में जाते हैं पेशाब करने बीरगांव आजाद चौक
छोटा कमरा, उसी में किचन और बच्चे बीरगांव का आजाद चौक। इसी एक हिस्से में एक छोटी सी दुकाननुमा कमरे में आंगनबाड़ी केंद्र। भास्कर टीम जब पहुंची तो यहां बच्चे गोल घेरा बनाकर एक्टिविटी कर रहे थे। बच्चों को गोल घेरा बनाकर बिठाया गया था ताकि ज्यादा से ज्यादा बैठ सकें। इसी कमरे के एक हिस्से पर रखे टेबल पर चूल्हा और वहीं गैस सिलेंडर रखा था। लकड़ी की छोटी सी आलमारी में खेल सामग्री दिख रही थी। बच्चों के लिए बाथरूम की व्यवस्था भी नहीं थीं। आंगनबाड़ी केंद्र संचालित करने वाली महिलाएं तो कुछ नहीं कह रहीं थीं अलबत्ता वहां के हालात बता रहे थे कितनी मुश्किल से केंद्र संचालित किया जा रहा है। रामेश्वर नगर रामेश्वर नगर के लुटियापारा आगे तंग में एक किराने की दुकान के पास 6 फीट की संकरी गली। यहां 8 बाई 8 के एक कमरे में आंगनबाड़ी केंद्र चल रहा। कमरा इतना छोटा है कि यहां दर्ज 20 बच्चे एक साथ आ जाएं तो बिठाया नहीं जा सकता। यहां बच्चों के लिए बाथरूम तक नहीं है। पूछताछ करने पर पता चला बच्चे कमरे से निकलकर गली में खुले में ही जाते हैं। भनपुरी बाजार चौक भनपुरी के बाजार चौक स्थित प्रायमरी स्कूल परिसर। एक कमरे को आंगनबाड़ी केंद्र के लिए दिया गया है। करीब 200 वर्गफीट का कमरा और एक छोटा सा स्टोर रूम। बस यही है केंद्र के लिए आरक्षित जगह, जबकि यहां 25 बच्चे रोज पढ़ने आते हैं। भास्कर टीम पहुंची तो पता चला कि बच्चों के अलावा 6 गर्भवती भी रजिस्टर्ड हैं। सुबह बच्चे और महिलाएं अगर एक साथ आ जाएं तो केंद्र में खड़े रहने की जगह बचती। बच्चों के लिए बाथरूम तक की व्यवस्था नहीं है। मोवा शराब भट्ठी के पास सरकारी भवन में संचालित आंगनबाड़ी केंद्र। यहां करीब 250 स्क्वेयर फीट में बने दो कमरों का केंद्र है। कमरे छोटे तो हैं ही सरकारी भवन होने के बावजूद यहां बाथरूम नहीं है। बच्चों के खेलने के लिए कोई बरामदा भी नहीं है, जबकि यहां 35 बच्चे रजिस्टर्ड हैं। 10 गर्भवती महिलाओं का भी रजिस्ट्रेशन है। वे अपनी जरूरतों के लिए आती हैं। यहां भी जगह की दिक्कत। परेशानी तब बढ़ जाती है जब पूरे बच्चे एक साथ पहुंच हैं। सीधी बात – पीएस एल्मा, डायरेक्टर, महिला बाल विकास विभाग तंग कमरों में आंगनबाड़ी केंद्र चल रहे हैं?
-हां, शहर में ये समस्या है। इसे दूर करेंगे।
बच्चे खेल नहीं पा रहे तो ऐसे केंद्र का क्या मतलब?
– नहीं, कई तरह की एक्टिविटी कराई जा रही हैं।
पर यहां केंद्र तो नियम ही पूरे पालन नहीं कर रहे हैं?
– नहीं ऐसी कोई बड़ी समस्या नहीं है।
कैसे सुधारेंगे इस सिस्टम को?
– बजट बढ़ाने के साथ मॉनीटरिंग की जाएगी। कमरे बड़े किए जाएंगे। जो केंद्र किराए पर हैं जहां शौचालय लाइट पानी की सुविधा नहीं है, वहां आने वाले 15 जुलाई तक सभी पर्यवेक्षकों को भवन बदलने के निर्देश दिए गए हैं। शहर में ज्यादा परेशानी है।
– शैल ठाकुर, जिला कार्यक्रम अधिकारी मानक 300 वर्गफीट न्यूनतम छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा निर्धारित मानक के अनुसार, एक मिनी आंगनबाड़ी केंद्र का क्षेत्रफल 300 वर्गमीटर होना चाहिए। इसमें एक कमरा, बरामदा, खेल का मैदान और शौचालय होना अनिवार्य है। शहर के अधिकांश आंगनबाड़ी केंद्र सिर्फ 100 से 150 वर्गफीट क्षेत्र में संचालित हैं। ज्यादातर में न तो शौचालय है ना ही बरामदा। मैदान नहीं है। शौच व यूरिन के लिए खुले में जाना पड़ता है।