पंजाब में अब सरकारी अस्पताल में थैलेसीमिया का इलाज सरकार के द्वारा मुफ्त किया जाएगा। इसकी शुरूआत लुधियाना के सिविल अस्पताल से होने जा रही है। आज सेहत मंत्री डा. बलबीर सिंह दोपहर 3.30 बजे थैलेसीमिया वार्ड का उद्घाटन करेंगे। वहीं वह अस्पताल के अन्य वार्डों की भी चैकिंग करेंगे। सेहत मंत्री के साथ विशेष रूप से अस्पताल के एसएमओ, सिविल सर्जन व अन्य स्टाफ मौजूद रहे। थैलेसीमिया क्या है यह एक वंशानुगत ब्लड डिसऑर्डर है। यह हमारे शरीर की हीमोग्लोबिन बनाने की क्षमता को प्रभावित करता है। लाल रक्त कोशिकाओं में एक प्रोटीन होता है, जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं। खून के जरिए पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम इसी प्रोटीन का है। इससे शरीर की अन्य कोशिकाओं को पोषण मिलता है। अगर किसी को थैलेसीमिया है तो उसकी बोन मैरो लाल रक्त कोशिकाएं कम बना पाएगी। इसका नतीजा यह होगा कि एनीमिया की स्थिति बन जाएगी। इसके अलावा ऑक्सीजन से वंचित होकर शरीर की अन्य कोशिकाओं की ऊर्जा कम हो जाएगी। यह स्थिति जानलेवा भी हो सकती है। थैलेसेमिया जन्मजात बीमारी है। इसका मतलब है कि इसका हमारी लाइफस्टाइल से कोई सीधा संबंध नहीं है। हालांकि हमारी लाइफस्टाइल का इसके लक्षणों पर सीधा असर पड़ता है। थैलेसीमिया होने के क्या कारण हैं हीमोग्लोबिन में 4 प्रोटीन चेन होती हैं। इसमें 2 अल्फा ग्लोबिन चेन और 2 बीटा ग्लोबिन चेन होती हैं। प्रत्येक चेन में यानी अल्फा और बीटा दोनों में आनुवांशिक जानकारी या जीन शामिल होते हैं। ये हमें हमारे माता-पिता से मिलते हैं। इन जीन को एक कार के चार पहियों की तरह सोचिए। इसमें हर पहिए की अपनी उपयोगिता है। अगर इनमें से किसी भी एक पहिये की हवा निकाल दी जाए तो कार सही से नहीं चल पाएगी। यह बहुत दूर तक भी नहीं चल पाएगी। कार की ही तरह हीमोग्लोबिन की प्रोटीन चेन में शिकायत होने पर लाल रक्त कोशिकाएं कम और कमजोर पड़ जाती हैं। इस कंडीशन को थैलेसीमिया कहते हैं। यह डिसऑर्डर तब होता है, जब हीमोग्लोबिन उत्पादन में शामिल जीन में से किसी एक में असामान्यता या डिफेक्ट होता है। यह आनुवांशिक असामान्यता हमें अपने माता-पिता से विरासत में मिलती है। यदि माता-पिता में से केवल एक को थैलेसीमिया है तो बच्चे में थैलेसीमिया माइनर विकसित हो सकता है। ऐसी स्थिति में आमतौर पर लक्षण नहीं विकसित होते हैं, लेकिन यह बीमारी बच्चों में ट्रांसफर हो सकती है। थैलेसीमिया माइनर वाले कुछ लोगों में मामूली लक्षण विकसित होते हैं। अगर माता-पिता दोनों को थैलेसीमिया है तो बीमारी का अधिक गंभीर रूप विरासत में मिलने की अधिक संभावना है। ऐसी स्थिति में गंभीर एनीमिया हो सकता है। बच्चे का विकास बाधित हो सकता है।
थैलेसीमिया कितने प्रकार का होता है यह बीमारी मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है। बीटा थैलेसीमिया
अल्फा थैलेसीमिया
थैलेसीमिया माइनर