मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले में स्थित रमदहा जलप्रपात बारिश के दिनों में अपनी सुंदरता का मनोरम दृश्य प्रस्तुत करता है। यह जलप्रपात अपनी आकर्षक छटा के लिए प्रसिद्ध है। साथ ही इसका पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व भी है। चारों ओर घने जंगलों के बीच में यह जलप्रपात जिले के सबसे खूबसूरत जलप्रपात में से एक है। चट्टानों से टकराते हुए गिरता हुआ पानी दूध की तरह सफेद दिखाई देता है, जो किसी पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए काफी है। रमदाहा जलप्रपात से लगा हुआ मुरेलगढ़ का पहाड़ है, जिस पर जाने का रास्ता थोड़ा सा कठिन है। यहां के बारे में कहा जाता है कि ऊपर एक किला और तालाब है, जिसका कोई गुप्त मार्ग रमदहा वाटरफॉल तक आता है। स्थानीय महत्व और रहस्य यहां के स्थानीय लोग इस जलप्रपात को चांगभखार की शान के साथ साथ अपनी कुलदेवी का स्थान भी मानते हैं। साथ ही 200 फीट ऊंचाई से गिरने वाले जलप्रपात की की सुंदरता को निहारने के लिए पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती शहरों से भी लोग यहां पहुंचते हैं। प्रकृति ने रमदहा जलप्रपात और उसके आसपास के क्षेत्र को इस तरह सजाया और संवारा है कि पहली नजर में ही यह सैलानियों को भा जाता है। प्रकृति की सुंदरता और ऋतुओं का महत्व प्रकृति ने यहां तीन अलग-अलग ऋतुएं प्रदान की है, जिनकी अलग-अलग विशेषता है। वर्षा ऋतु में जब प्रकृति पहाड़ों को नहला-धुला कर पेड़ पौधों से सजाकर उसको निहारती है, तब स्वयं अपने हाथों से एक काला डिठौना लगाना नहीं भूलती। वर्षा ऋतु हरियाली को अपने आंचल में बांधकर लाने वाली सर्वश्रेष्ठ ऋतु होने का गौरव प्राप्त करती है। छत्तीसगढ़ की सीमाओं के 44% वन क्षेत्र से घिरे होने के कारण इसकी प्राकृतिक सुंदरता और भी बढ़ जाती है। मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले की ऊंची- नीची पहाड़ियों का सौंदर्य इतना खूबसूरत दिखाई देता है कि लगता है कि किसी तरह इसे हमेशा के लिए कैद कर लिया जाए। मुरेलगढ़ का इतिहास यहां के बारे में कहा जाता है कि ऊपर एक किला और तालाब है, जिसका कोई गुप्त मार्ग रामदहा वाटरफॉल तक आता है। पुराने लोगों के बताने के अनुसार मुरेलगढ़ में एक राजा रहते थे, साथ में उनकी रानी भी रहती थीं। राजा किसी कार्य से बाहर गए थे, वहां रहने वाले एक नाई ठाकुर के मन में रानी को लेकर गलत भावना आ गई। उसने रानी के साथ अनाचार करना चाहा, नाई के इस कृत्य से रानी अत्यंत दुखी हुई। उन्होंने रमदहा में जा कर अपने प्राण त्याग दिए। जब राजा वापस आए तो उन्हें इस घटना की जानकारी मिली, रानी की खोज में जब राजा निकले तो रानी से आग्रह किया कि यदि आप इस जलप्रपात में हो तो अपना हाथ पानी से निकाल कर दिखाओ। रानी ने अपना हाथ पानी से निकाल कर इशारा किया तब राजा अपने घोड़े सहित रमदहा में जल समाधि ले लिए। पत्थर की चूड़ियां और सिक्के आज भी मुरेलगढ़ पहाड़ और उसके आस-पास लोगों को पत्थर की चूड़ियां और सिक्के मिल जाते हैं। यह रमदहा जलप्रपात के इतिहास और रहस्य को और भी रोचक बनाता है। पर्यटक नीतीश ने बताया कि रमदहा जल प्रपात में हरे-हरे पेड़-पौधे और पानी का जल प्रपात बहुत अच्छा दिखता है। यहां बहुत सुकून मिलता है, लेकिन कुछ लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है। जो सेल्फी के चक्कर में ज्यादा नजदीक जाते हैं। उन्होंने सावधानी बरतने की सलाह दी और कहा कि रास्ता खराब है, खासकर रमदहा घुसते ही रास्ता खराब हो जाता है। प्रशासन से मांग की कि रास्ता बन जाए तो बेहतर सुविधा हो जाएगी और बरसात में लोग गिरने-फंसने से बच जाएंगे। उन्होंने पर्यटकों से अपील की कि दूर से प्राकृतिक का आनंद लें और सावधानी बरतें। दूर-दूर से आते हैं पर्यटक स्थानीय देवलाल ने बताया कि इस जलप्रपात को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं, जिनमें दिल्ली, भोपाल, रायपुर, अंबिकापुर, शहडोल जैसे शहरों से पर्यटक आते हैं। पर्यटकों का कहना है कि यह जगह बहुत अच्छी है और ऐसी कोई दूसरी जगह नहीं है। प्रोफेसर सचिन वर्मा ने बताया कि बनास नदी का यह जलप्रपात बहुत ही रमणीय और मनोरम है। सुरक्षा व्यवस्था अच्छी कर दी गई है, जिससे पर्यटकों को यहां आने में सुविधा होती है। दूर-दूर से पर्यटक यहां आते हैं और पिकनिक मनाते हुए इसकी छटा देखते हैं। मैं सभी से अपील करता हूं कि वे यहां आएं और इसके मनोरम दृश्य का लुत्फ उठाएं, लेकिन सावधानी बरतें। जलप्रपात के पास न जाएं, क्योंकि इससे बड़ी दुर्घटना हो सकती है। 2022 में हुई घटना का जिक्र करते कहा कि जलप्रपात की मनोरम छवि का दूर से ही आनंद लें और पास न जाएं।