रांची यूनिवर्सिटी के डोरंडा कॉलेज में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा : एक प्राच्य पुनर्जागरण’ विषय पर शनिवार को दो दिवसीय नेशनल सेमिनार शुरू हुआ। चीफ गेस्ट वित्तमंत्री राधाकृष्ण किशोर ने कहा कि आधुनिकता के दौर में भारत की पुरानी ज्ञान परंपरा और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए युवाओं को आगे आने की जरूरत है, ताकि आनेवाली पीढ़ी महान विरासत पर गर्व कर सके। सेमिनार की अध्यक्षता करते हुए वीसी डॉ. अजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि कैंपस में औषधीय गुणों वाले पौधों की कमी नहीं है। इन पौधों पर भारतीय ज्ञान परंपरा का उपयोग करते हुए चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है। इसके लिए रिसर्च स्कॉलरों को आगे आना होगा। महाभारत का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि युद्ध में योद्धा घायल होते थे, तब ऐसी कौन सी दवा थी, जिससे वे रातभर में ही ठीक हो जाते थे। इसके बाद अगले दिन फिर युद्ध में शामिल हो जाते थे। यह आयुर्वेदिक की ही शक्ति थी। पटना विवि के पूर्व वीसी प्रो. आरबीपी सिंह ने कहा कि भारतीय दर्शन में देवी-देवताओं की सवारी के रूप में पशु-पक्षियों को दर्शाया गया है। यह इस बात का प्रमाण है कि हमारी ज्ञान परंपरा किस तरह से एक संतुलित पारिस्थितिकी के बारे में चिंतन करने वाली है। इससे पहले प्रिंसिपल डॉ. राजकुमार शर्मा ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विषय प्रवेश कराया। 400 रिसर्च स्कॉलर्स हुए शामिल: नेशनल सेमिनार में विभिन्न राज्यों के 400 प्रतिभागी सह रिसर्च स्कॉलर्स शामिल हुए हैं, जो अपने-अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत करेंगे। शाम छह से आठ बजे तक सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। संचालन डॉ. शिल्पी सिंह और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मलय भारती ने किया। भारतीय ज्ञान परंपरा काफी विराट है: प्रो. स्वागत जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रो. स्वागत भादुरी ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा अपने आप में बहुत ही विराट है। यह मानव जाति के बेहतर भविष्य के लिए अपने अंदर बहुत सारे विचारों को समाहित किए हुए है। भारतीय ज्ञान परंपरा के माध्यम से विकास के साथ बेहतर समाज का निर्माण किया जा सकता है।