सीएम व मुख्य सचिव दिल्ली में, रांची से दिल्ली तक ली जा रही विधिक राय सारंडा को वन्य जीव अभयारण्य घोषित करने पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। इससे पहले राज्य सरकार में गहमा-गहमी तेज हो गई है। अधिकारी रांची से दिल्ली तक विधिक राय ले रहे हैं। वन एवं पर्यावरण विभाग ने पूरे सारंडा वन क्षेत्र को वन्य जीव अभयारण्य घोषित करने को लेकर खान-भूतत्व और उद्योग विभाग से मंतव्य मांगा था। ये दोनों विभाग पूरे वन क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने के पक्ष में नहीं हैं। इन विभागों का कहना है कि पूरे वन क्षेत्र को अभयारण्य बनाना राज्य के लिए नुकसानदेह होगा। कैबिनेट के लिए तैयार प्रस्ताव में वित्त विभाग ने भी इन दोनों विभागों की राय पर सहमति जताई है। कहा है कि ऐसा होने से माइनिंग रॉयल्टी की संभावना भविष्य में और जटिल हो जाएगी। इन विभागों का कहना है कि सरकार राज्यहित में बीच का कोई रास्ता निकाले। सरकार ने इस पर भी मंथन शुरू कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सारंडा वन क्षेत्र के 575.1941 वर्ग किलोमीटर को अभयारण्य अधिसूचित करने का निर्देश दिया है। 24 सितंबर को इसके लिए वन विभाग का एक संलेख आया था। जिस पर विचार हुआ और फिर 29 सितंबर को वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर की अध्यक्षता में राज्य सरकार ने पांच सदस्यीय ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की घोषणा की। यह समिति क्षेत्र का दौरा और आर्थिक अध्ययन कर लौट आई है। जल्दी ही सरकार को रिपोर्ट सौंपी जाएगी। खान विभाग… खनिज की उपलब्धता पर असर पड़ेगा, बड़ा नुकसान होगा खान विभाग ने लिखा-सारंड वन क्षेत्र के करीब 26 फीसदी हिस्से में लौह अयस्क का भंडार है। यहां करीब 4700 मिलियन टन लौह अयस्क है, जिसकी कीमत 25 से 30 लाख करोड़ रुपए आंकी गई है। इससे राज्य सरकार को करीब 14 लाख करोड़ रुपए की रॉयल्टी मिल सकती है। अगर इस क्षेत्र को अभयारण्य घोषित किया जाता है तो सभी परिचालन खत्म हो जाएंगी। इससे खनिज की उपलब्धता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। राज्य में सालाना करीब 20 मिलियन टन लौह अयस्क का उत्पादन होता है। अभयारण्य घोषित होने से उत्पादन घटेगा। रॉयल्टी सेस ओर डीएमएफटी के लिए होने वाले कलेक्शन में सालाना 5000 से 8000 करोड़ रुपए की हानि होगी । इसलिए इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए जिससे पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास, दोनों हो सके। उद्योग विभाग… औद्योगिक विकास, राजस्व के साथ रोजगार प्रभावित होगा उद्योग विभाग ने लिखा-पूरे वन क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने से वर्ष 2030-31 तक 300 मिलियन टन कच्चे इस्पात उत्पादन के लक्ष्य को पूरा करने में परेशानी होगी। सारंडा के लौह अयस्क भंडार से टाटा स्टील, सेल और निजी खनन कंपनियां चल रही हैं। इस क्षेत्र के खान एवं उद्योग से करीब 4.20 लाख लोगों को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला है। इलाके में 2000 एमएसएमई इकाइयां भी हैं। ऐसे प्रस्ताव से औद्योगिक विकास, राजस्व और रोजगार पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। यहां से होने वाला 4400 करोड़ रुपए का निर्यात भी प्रभावित होगा। सारंडा एशिया के सबसे समृद्ध लौह अयस्क भंडारों में से एक है। यहां करीब 2420 मिलियन टन लौह अयस्क का भंडार है, जो झारखंड के साथ पड़ोसी राज्यों के इस्पात उद्योग के लिए आधार बन चुका है। पूरे वन क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने से खनन बंद हो जाएगा। -शेष पेज 11 पर वित्त विभाग… आजीविका प्रभावित होगी, रॉयल्टी पर भी असर पड़ेगा इन दोनों विभागों की राय जानने के बाद वित्त विभाग ने लिखा-मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सभी संबंधित विभागों के साथ बैठक की गई । बैठक में खान एवं भूतत्व विभाग और उद्योग विभाग ने आपत्तियां दर्ज की है । खान एवं भूतत्व विभाग ने कैरिंग कैपेसिटी के अध्ययन पर भारत सरकार द्वारा निर्धारित लक्ष्य का विरोध किया है। इससे आजीविका पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगी। वित्त विभाग ने अपने मंतव्य में लिखा है कि तैयार प्रस्ताव स्वीकृत होने से खनन विभाग द्वारा संभावित माइनिंग रॉयल्टी की संभावना भविष्य में और भी जटिल हो जाएगी ।इस क्षेत्र में खनन कार्य नहीं होने से राजस्व प्राप्ति की संभावना पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। जानिए…किस विभाग ने क्या दी राय