राजस्थान हाईकोर्ट ने पूर्व आईएएस अधिकारी निर्मला मीणा की याचिका खारिज कर दी है, जिसमें उन्होंने सरकार द्वारा दी गई अभियोजन स्वीकृति (प्रॉसिक्यूशन सैंक्शन) रद्द करने की मांग की थी। जस्टिस सुनील बेनीवाल की कोर्ट ने अपने रिपोर्टेबल जजमेंट में कहा कि अभियोजन स्वीकृति देने का निर्णय न तो मनमाना है और न ही अवैध। यह मामला गेहूं के कथित दुरुपयोग से जुड़ा है, जिसमें मीणा के जोधपुर में डीएसओ रहते करोड़ों रुपये का घोटाला होने का आरोप है। जोधपुर की सबसे पॉश उम्मेद हेरिटेज निवासी याचिकाकर्ता निर्मला मीणा के खिलाफ 2 नवंबर 2017 को एसीबी जयपुर ने एफआईआर दर्ज की गई थी। उस समय वह जोधपुर जिला रसद अधिकारी के पद पर तैनात थीं। इसमें गेहूं के दुरुपयोग और उनके निर्देश पर अतिरिक्त सप्लाई करके करोड़ों की गड़बड़ी से संबंधित है। विभाग ने पहले चार्जशीट थमाई, फिर दे दी क्लीनचिट मामला सामने आने के बाद विभाग ने चार्जशीट जारी की थी। हालांकि, विस्तृत जांच के बाद विभागीय जांच अधिकारी ने मीणा के पक्ष में सिफारिश करते हुए कहा था कि इनके खिलाफ कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ। इसी बीच निर्मला मीणा के खिलाफ दो अन्य एफआईआर, आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने और पुलिस विवि में गड़बड़ी को लेकर दर्ज की गई। वर्ष 2018 में दर्ज एफआईआर के संबंध में एसीबी ने 30 जनवरी 2023 को एफआर लगा दी थी। लेकिन गेहूं घोटाले से जुड़ी एफआईआर में जांच एजेंसी ने बिना अभियोजन स्वीकृति प्राप्त किए चार्जशीट दाखिल कर दी थी। याचिकाकर्ता को पता चला कि कार्मिक विभाग ने अभियोजन स्वीकृति नहीं देने की सिफारिश की थी, प्रस्ताव को तत्कालीन मुख्यमंत्री के पास अनुमोदन के लिए भेजा था। 27 जनवरी 2025 को मिली अभियोजन स्वीकृति रिट याचिका में कहा गया था कि एक ओर, विभागीय जांच अधिकारी ने बरी करने की सिफारिश की, और दूसरी ओर अभियोजन स्वीकृति के प्रस्ताव को पहले अस्वीकार किया गया था, फिर भी कार्मिक विभाग ने पिछली अस्वीकृति पर विचार किए बिना और रिकॉर्ड पर कोई नई सामग्री के बिना 8 जनवरी के आदेश के माध्यम से अभियोजन स्वीकृति दे दी। अंततः 27 जनवरी 2025 को अभियोजन स्वीकृति जारी की गई। इसी आधार पर निर्मला मीणा ने वर्तमान रिट याचिका दायर की थी। 7 साल की देरी को बताया मनमाना मीणा के वकीलों ने कोर्ट में तर्क दिया कि वर्तमान मामले में एफआईआर वर्ष 2017 में दर्ज की गई थी और चार्जशीट वर्ष 2018 में दाखिल की गई थी। चार्जशीट दाखिल करने के लगभग 7 साल बाद 27 जनवरी 2025 को दी गई अभियोजन स्वीकृति पूरी तरह से मनमानी है और शक्ति के अनुचित प्रयोग को दर्शाती है। रिकॉर्ड पर उपलब्ध तमाम साक्ष्य के आधार पर चार्जशीट दाखिल की गई थी। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पहले अभियोजन स्वीकृति से इनकार किया गया था और इसकी नोट शीट मुख्यमंत्री कार्यालय को भेजी गई थी। इसलिए मामले को फिर से खोलने का कोई औचित्य नहीं था। अभियोजन स्वीकृति आदेश पारित करते समय याचिकाकर्ता की दलीलों पर विचार नहीं किया गया। सरकार की दलील- करोड़ों रुपए का गेहूं गबन किया, जेल में रहीं सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता व AAG राजेश पंवार व एडवोकेट मीनल सिंघवी ने कोर्ट में तर्क दिया कि अभियोजन स्वीकृति देने या इनकार करने के आदेश में हस्तक्षेप का दायरा बहुत सीमित है। उन्होंने बताया कि निर्मला मीणा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। उनके खिलाफ गबन का गंभीर आरोप लगाया गया है। याचिकाकर्ता, जो उस समय जिला रसद अधिकारी के पद पर तैनात थीं, ने अपनी ताकत और पद का दुरुपयोग किया और करोड़ों रुपये के गेहूं का गबन किया। याचिकाकर्ता लगभग एक महीने तक जेल में रही थीं। कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदु जस्टिस बेनीवाल ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपने फैसले में दिए मुख्य बिंदु-