छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्रों में कई अनोखी रस्में और परंपराएं प्रचलित हैं, लेकिन बालोद जिले के डौंडी ब्लॉक में एक ऐसा गांव है, जहां नवरात्रि के दौरान झाड़ियों में विराजमान सैंकड़ों देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की पूजा की जाती है। ग्राम नर्राटोला की झाड़ियों में विराजमान यह मूर्तियां कब और कैसे यहां पहुंची, यह जानकारी किसी को नहीं है। हालांकि ग्रामीण पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं का पालन करते हुए नवरात्रि, शिवरात्रि और विशेष अवसर पर श्रद्धा से पूजा-अर्चना करते हैं। बुजुर्ग कहते थे, यहां ठहरी थी बारात – सरपंच गांव के सरपंच हिंसाराम चिराम बताते हैं कि इन मूर्तियों के यहां कैसे और कहां से आने का कोई प्रमाण नहीं है। हालांकि, पूर्वजों की मान्यता है कि भगवान की बारात यहां से गुजरते हुए तालाब किनारे पेड़ की छांव में विश्राम के लिए ठहरी थी। उसी दौरान सभी बाराती पत्थर में बदल गए। यह रहस्य आज भी अनसुलझा है। ऐतिहासिक दृश्य का आभास कराती हैं मूर्तियां इतिहासकारों के अनुसार, इन मूर्तियों की नक्काशी और शिल्पकला 14वीं से 16वीं शताब्दी की प्रतीत होती है। उस दौर में राजा-महाराजा अपने साहसी सैनिकों, देवी-देवताओं और पूर्वजों की स्मृति में प्रतिमाएं बनवाते थे। राजा-महाराजा का काफिला नजर आता है गांव के सरपंच हिंसाराम चिराम बताते हैं कि नर्राटोला की ये मूर्तियां बेहद दुर्लभ और प्राचीन हैं। इनमें देवी-देवताओं के साथ-साथ राजा-महाराजाओं जैसी आकृतियां भी नजर आती है। कई मूर्तियां अत्यंत विशिष्ट हैं, जिनकी बनावट बारीकी से की गई है। कुछ मूर्तियों में हाथी-घोड़े पर सवार राजा-महाराजाओं का काफिला दिखता है, जिनके हाथों में तलवारें हैं, जो किसी ऐतिहासिक दृश्य का आभास कराती हैं। 500 से ज्यादा मूर्तियां थीं, लेकिन चोरी हो गईं गांव के निवासी रघुनाथ चिराम बताते हैं कि पहले यहां घना जंगल था और लगभग 500 से अधिक मूर्तियां थीं, लेकिन चोरी होने के कारण अब केवल 100 के आसपास ही बची हैं। सभी मूर्तियां पहले सही-सलामत थीं, लेकिन असामाजिक तत्वों ने कई मूर्तियों के सिर तोड़ दिए, जबकि कुछ मूर्तियां चोरी के प्रयास में क्षतिग्रस्त हो गईं। मूर्तियों को बालोद ले जाने वाले तहसीलदार की मौत रघुनाथ चिराम बताते हैं कि करीब 30 साल पहले यहां की कई मूर्तियों को बालोद के बूढ़ातालाब स्थित खुले संग्रहालय में ले गए। उस समय ग्रामीणों ने इसका विरोध किया, लेकिन सरकारी आदेश के कारण वे कुछ नहीं कर सके। कहा जाता है कि मूर्तियां ले जाने के कुछ समय बाद ही तहसीलदार की अचानक मृत्यु हो गई। तालाब में आती थी, पत्थर गिरने की आवाजें ग्रामीण बताते हैं कि बालोद के बूढ़ातालाब में जब मूर्ति ले गए तो वहां के वार्डवासियों को लंबे समय तक तालाब में बड़े-बड़े पत्थर गिरने जैसी रहस्यमयी आवाजें सुनाई देती रहीं। दल्लीराजहरा में एक व्यक्ति बिना पूछे मूर्ति ले गया था। लेकिन उसकी बेटी की मानसिक स्थिति बिगड़ गई। घबराकर वह रातों-रात मूर्ति को वापस गांव में छोड़कर गया। तालाब खुदाई में मिले नए औजार सरपंच हिंसाराम बताते हैं कि वे पांच साल पहले भी इस गांव के सरपंच रह चुके हैं। उस दौरान बारिश के समय मूर्तियां पानी में डूब जाती थीं, जिसे सुरक्षित रखने के लिए ग्रामीणों के सहयोग से पास के तालाब को गहरा करने का निर्णय लिया गया। जब खुदाई शुरू हुई, तो वहां से नए-नए लोहे के औजार मिले, जिन पर जंग भी नहीं लगा था।