सरगुजा से लौटकर अश्विनी पांडेय की रिपोर्ट छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट में प्रदेश का सबसे बड़ा जमीन घोटाला उजागर हुआ है। यहां एक हजार एकड़ से अधिक सरकारी जमीन पर रसूखदारों ने कब्जा कर लिया है। चार गांव नर्मदापुर, कण्डराजा, बरिमा और उंरगा के 80 लाेगों के नाम सरकारी दस्तावेज में चढ़ी 480 एकड़ जमीन पकड़ी जा चुकी है, बाकी पर जांच जारी है। इसमें सरकारी स्कूल और पहाड़ तक को लोगों ने अपने नाम करवा लिया है। बता दें कि मैनपाट में करीब 4500 एकड़ जमीन सरकारी है। दस साल पहले राजस्व रिकॉर्ड को डिजिटलाइज किया गया। इसके बाद सरकारी कर्मियों की मिलीभगत से धीरे-धीरे कर खसरे के टुकड़े कर निजी लाेगों के नाम चढ़ाने का खेल शुरू हुआ। सरकारी आंकड़ों की मानें तो भूपेश सरकार के जमाने में यह काम बहुत तेजी से हुआ। यहां के पूर्व विधायक अमरजीत भगत मंत्री भी थे, इसलिए कब्जाधारी लोग इनके करीबी निकल रहे हैं। शेष पेज 10 धान से पकड़ में आया मामला छत्तीसगढ़ में एक एकड़ पर 20 क्विंटल धान किसान बेच सकते हैं। खुदरा में धान 1500-2000 रुपए में मिलता है, जबकि सरकारी रेट 3000 रुपए प्रति क्विंटल है। प्रशासन के पास शिकायत पहुंची कि कुछ किसान अधिक धान बेच रहे हैं। उनकी ऋण पुस्तिका में रकबा अचानक से बढ़ गया है। जब इस मामले की जांच शुरू हुई तो ऐसी ऋण पुस्तिकाओं में लगाए गए खसरे की नकल निकाली गई। खसरे को कंप्यूटर में चेक किया गया तो नाम उसी व्यक्ति दिखाया। इसके बाद पुराने कागजी रिकॉर्ड में दस्तावेज चेक किए गए तो जमीन सरकारी निकली। इसके बाद सरकारी से निजी होने के बीच का लिंक तलाशा गया लेकिन कहीं कुछ नहीं मिला। इससे स्पष्ट हो गया कि सरकारी जमीन को तत्कालीन पटवारी ने सिर्फ कंप्यूटर में नाम बदलकर निजी व्यक्ति के नाम कर दिया। अगर इस दौरान पुराने रिकॉर्ड नष्ट हो जाते तो सरकार कभी भी इस घोटाले काे नहीं पकड़ पाती। पटवारी-तहसीलदार डिजिटलाइज रिकॉर्ड में बदलाव कर सकते थे रिकॉर्ड में ऐसे हुआ बदलाव मैनपाट की जमीनों का बंदोबस्त (री सेटलमेंट) नहीं हुआ है। यही वजह है कि यहां बड़े-बड़े प्लाट है। सरकारी जमीन 300-400 एकड़ है। 2015-16 में भू अभिलेखों को डिजिटलाइज किया गया। उसमें पटवारी और तहसीलदार को एक्सेस परमीशन थी। वे चाहे तो कुछ भी बदल सकते थे। उन्होंने इसी का फायदा उठाया, लेकिन कागजी दस्तावेजों में कोई बदलाव नहीं कर पाए। जब मामले पकड़ में आए तो प्रशासन ने एडिट का ऑप्शन बंद कर दिया है। कागजों में सिर्फ नाम, कोई कब्जा नहीं भास्कर टीम ने तीन दिन तक मैनपाट की ऐसी 50 जमीनों का मुआयना किया जिन्हें सरकारी से निजी लोगों ने अपने नाम चढ़वा लिया था। किसी भी जमीन पर कोई कब्जा नजर नहीं आया। कुछ जगहों पर पत्थर से जमीन को घेरा गया था लेकिन न तो वहां खेती हो रही है और न कोई बोर्ड लगा हुआ है। ये अधिकतर जमीनें जंगल या पड़त (बंजर) में है। हालांकि प्रशासन ने अब 480 एकड़ जमीन को अपने नाम दोबारा कर लिया है लेकिन वहां भी सरकारी बोर्ड नहीं लगा है। रातों रात हो जाता है घेराव: मैनपाट के अनुराग ने बताया कि यहां जमीन को कागजों में चढ़वाने के बाद लोग पास की किसी जमीन पर पत्थरों का ढेर लगाना शुरू कर देते हैं। रातोंरात इन पत्थरों से जमीन को घेर देते हैं। टीम को कई जगह पत्थरों के ढेर देखने को मिले। समझिए.. ऐसे सरकारी जमीन के होते गए टुकड़े कण्डराजा गांव की इस जमीन का खसरा नंबर 301 है। 2018 के पहले इस जमीन का कुल रकबा 167 एकड़ था। दो किमी पैदल पहाड़ पर चढ़ने के बाद भास्कर टीम इस जमीन पर पहुंची। चारों तरफ जंगल। जमीन के कुछ हिस्से को पत्थरों से घेरा हुआ था। सरकारी रिकॉर्ड खंगालने पर सामने आया कि अब इस जमीन के 22 टुकड़े हो चुके हैं। 104 एकड़ 18 लोगों के नाम चढ़ा दी गई है, बची 63 एकड़ ही शासकीय है। देखिए किस तरह इस जमीन के टुकड़े किए गए 500 एकड़ छुड़ाई, लैंड बैंक बना रहे हैं
मैनपाट में 1000 एकड़ से अधिक सरकारी जमीन को लोगों ने अपने नाम लिखवा लिया है। अब तक 500 एकड़ सरकारी जमीन पकड़ी जा चुकी हैै। अब जमीनों को लैंड बैंक बनाने जा रहे हैं। जिससे यह पता चलेगा कि बैंक में कितनी जमीन है।
भोस्कर विलास संदीपन, कलेक्टर, अंबिकापुर कब्जा न करने के पीछे का खेल
कब्जा करने वाले तुरंत नजर में आ जाते। इसलिए इन्होंने केवल कागजों में नाम चढ़वाया था। इसका लाभ वे लोन और धान बेचने में ले रहे थे। ये धान कहां से लाते थे, यह अभी जांच का विषय है। जो संदिग्ध खसरे हैं, उन्हें नोटिस दे रहे हैं।
संजय सारथी, तहसीलदार, मैनपाट