प्रभुभोज विधि में हम प्रभु के स्वभाव को ग्रहण करते हैं: बिशप

सिटी रिपोर्टर | रांची रांची के लोयला मैदान में मसीही विश्वासियों ने येसु द्वारा अपने 12 शिष्यों के पैर धोने और अंतिम ब्यारी की स्मृति में पुण्य गुरुवार की आराधना की। आर्चबिशप ने 12 विश्वासियों के पैर धोएं। इस दौरान बाइबल से पाठ पढ़े गए और येसु के सुसमाचार को सुनाया गया। आर्चबिशप ने अपने संदेश में कहा कि आज हम अंतिम ब्यारी का पर्व मना रहे हैं। इसके तहत हम उस अंतिम ब्यारी का अनुभव करते हैं जब येसु ने अपने चेलों के साथ अंतिम भोज किया और इसे एक संस्कार के रूप में स्थापित किया। इस दिन हम दो हजार साल पीछे चले जाते हैं और प्रभु के अंतिम भोज में रहस्यमय तरीके से सहभागी होते हैं। येसु ने अपने आप को रोटी में उपस्थित किया, जिसे हम आज ग्रहण करते हैं। रोटी को ग्रहण करने के साथ उसके स्वभाव को ग्रहण करें और सेवा का काम करें और लोगों के बीच प्यार बांटे। मिस्सा पूजा को भक्ति का साधन न बनाएं बल्कि इसे सच्चाई के रूप में अपनाएं और इसे हर दिन जीएं। विशेष आराधना में पल्ली पुरोहित फादर आनंद डेविड खलखो, फादर रायमन टोप्पो, फादर गुलशन मिंज, फादर अजीत खेस, फादर अनिल तिर्की, फादर नीलम तिड़ू, फादर अजय खलखो, फादर प्रदीप कुजूर, फादर थियोडोर टोप्पो, फादर असीम मिंज शामिल हुए। जीईएल चर्च कलीसिया ने गुरुवार को प्रभुभोज स्थापन का पर्व मनाया। मेन रोड स्थित क्राइस्ट चर्च में विशेष आराधना हुई। बिशप सीमांत तिर्की ने अपने उपदेश में कहा कि यह दिन हमें बतलाता है कि येसु ने प्रभुभोज की स्थापन की। उन्होंने अपने चेलों के साथ अंतिम फसहा का भोज किया और इसकी स्थापना की। उन्होंने रोटी लेकर अपने शिष्यों को दिया और कहा कि यह मेरा शरीर है, इसे खाओ और मेरे स्मरण में किया करो। इसी तरह दाखरस देकर कहा कि यह मेरा लहू है इसे पियो। इस दिन हम प्रभुभोज ग्रहण करते हैं और विश्वास करते हैं कि इस विधि के साथ हम प्रभु में एक हो जाएंगे। इस विधि के द्वारा हम प्रभु के स्वभाव को ग्रहण करते हैं।

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