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झारखंड का राजकीय फूल पलाश, जिसे जंगल की ज्वाला कहा जाता है, वसंत के आगमन के साथ जंगलों में खिल उठता है। जादूगोड़ा के पहाड़ों और जंगलों के बीच से गुजरने वाले रास्तों पर इसकी खूबसूरती यात्रियों को आकर्षित करती है। यह प्रकृति का दुर्लभ उपहार है, जो अब विलुप्ति के कगार पर है। लाल-नारंगी रंग के पलाश फूल आमतौर पर देखे जाते हैं, लेकिन हाल ही में एक दुर्लभ सफेद पलाश की चर्चा तेज हो गई है। पौधों के शोधकर्ताओं के अनुसार, पलाश तीन रंगों में पाया जाता है लाल-नारंगी, पीला और सफेद। सोशल मीडिया पर सफेद पलाश की तस्वीरें वायरल होने के बाद इसकी खोज शुरू हुई। काफी प्रयासों के बावजूद सफेद पलाश का पौधा अब तक नहीं मिल पाया है। लाल-नारंगी पलाश आसानी से मिल जाता है, लेकिन पीला और सफेद पलाश अब दुर्लभ हो चुका है। वन विभाग और शोधकर्ताओं का मानना है कि इस दुर्लभ प्रजाति को संरक्षित करने की जरूरत है। केवल संरक्षण ही नहीं, बल्कि कृत्रिम प्रजनन के जरिए इनकी संख्या बढ़ाने की योजना बनाई जानी चाहिए। अगर वन विभाग की योजना सफल रही तो आने वाले दिनों में जादूगोड़ा न केवल लाल-नारंगी पलाश के लिए, बल्कि सफेद और पीले पलाश के लिए भी प्रसिद्ध हो सकता है। जागरूकता और संरक्षण के प्रयासों से यह दुर्लभ वृक्ष बचाया जा सकता है। अगर ऐसा हुआ तो एक दिन सफेद और पीला पलाश अपनी सुंदरता और गुणों के कारण दुनिया का ध्यान आकर्षित करेगा। साथ ही पलाश के फूल का फूटना ही होली के त्योहार का आने का सूचक है। ग्रामीण क्षेत्र में पलाश के फूल से ही रंग बनाकर लोग एक दूसरे को लगाते हैं जो काफी ऑर्गेनिक होता है। इससे किसी प्रकार की हानि भी नहीं होती है। बुढ़ापा में तंदुरुस्ती के लिए पलाश के फूल का चूर्ण बहुत लाभदायक है यह यौवन को बढ़ाता है।

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