छत्तीसगढ़ बनने के बाद प्रदेश में प्रशासनिक कसावट और कर्मचारियों के संगठनात्मक ढांचे में सुधार के लिए आयोग और समितियों का गठन किया गया। इन्होंने समस्याओं के निराकरण, वेतन विसंगतियों को दूर करने, अनियमित कर्मचारियों के नियमितीकरण आदि मुद्दों को हल करने के लिए अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपी। इसके बावजूद नतीजे सिफर रहे। वजह, सरकार ने इन सिफारिशों पर अमल ही नहीं किया। हालांकि इनमें से कई अब भी प्रासंगिक हैं।
मुद्दे जो सुलझ नहीं सके
– शिक्षक संवर्ग के वेतन विसंगति का निराकरण
– सहायक शिक्षक संवर्ग को तृतीय समयमान वेतनमान।
– तकनीकी शिक्षा विभाग के कर्मचारियों के वेतन विसंगति का निराकरण।
– प्राचार्य और व्याख्याताओं के पद पर पदोन्नति। ज्यादातर मांगें पूरी हो चुकी हैं
मेरी कमेटी के समक्ष कर्मचारियों की 14 में से दो मांगे पूरी नहीं की जा सकती थी। वेतन विसंगति को लेकर शासन ने अलग से कमेटी बना दी थी। ज्यादातर समस्याएं हल हुईं।
मनोज पिंगुआ, एसीएस एवं तत्कालीन अध्यक्ष आयोग ने 450 पन्नों की रिपोर्ट बनाई, समितियों ने विकल्प सुझाए यूनियन लीडर बोले- सिफारिशें लागू नहीं, रिपोर्ट दबा दी गई अधिकारियों- कर्मचारियों की सेवा संबंधी समस्याओं पर चर्चा-समीक्षा तो हुई, लेकिन समाधान नहीं हुआ। सिफारिशें सार्वजनिक नहीं की गईं।
राजेश चटर्जी, प्रांताध्यक्ष छत्तीसगढ़ शिक्षक फेडरेशन कर्मचारी संगठनों की मांगों को लेकर आयोग-समितियों तो बनी, पर उनकी रिपोर्ट की सिफारिशों पर अमल नहीं किया गया। समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।
कमल वर्मा, प्रांतीय संयोजक, कर्मचारी-अधिकारी फेड.