फलोदी दुर्ग की उत्तर-पश्चिमी दीवार में गंभीर क्षति और बढ़ती संरक्षण आवश्यकताओं के मद्देनजर राजस्थान सरकार के पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग द्वारा गठित चार सदस्यीय तकनीकी टीम ने आज दुर्ग का स्थल निरीक्षण किया। लगभग 600 वर्ष पुराने इस ऐतिहासिक दुर्ग की दीवारों, संरचनाओं और पूरे परिसर का बारीकी से आकलन किया गया। इससे पहले, एमएनआईटी की विशेषज्ञ टीम ने निरीक्षण किया था, जिसमें उत्तर-पश्चिमी दीवार के क्षतिग्रस्त होने का मुख्य कारण भूजल स्तर को बताया गया था। टीम ने विरासत सामग्री के उपयोग को उपयुक्त नहीं मानने की सिफारिश भी की थी। एमएनआईटी की इस रिपोर्ट के आधार पर ही पुरातत्व एवं संग्रहालय विभाग ने क्षतिग्रस्त हिस्सों के विस्तृत परीक्षण के लिए तकनीकी समिति का गठन किया था। गठित टीम ने दुर्ग की संरचनात्मक स्थिति, क्षतिग्रस्त दीवारों, वर्षाजनित एवं प्राकृतिक क्षरण, संभावित सुरक्षा जोखिम और आवश्यक संरक्षण उपायों का तकनीकी दृष्टि से निरीक्षण किया। यह टीम एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करेगी, जिसमें मरम्मत की प्राथमिकताएं, सामग्री मानक, संरक्षण पद्धति और अनुमानित लागत जैसे महत्वपूर्ण बिंदु शामिल होंगे। यह समिति सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत थानवी के परिवाद पर जयपुर से आई थी। इसमें धरमजीत कौर (अधीक्षक तकनीकी, निदेशालय जयपुर) और सुभाष शर्मा (सहायक अभियंता, पुरातत्व विभाग) शामिल रहे। हेमंत थानवी ने बताया कि निरीक्षण के बाद समिति अपनी रिपोर्ट विभाग को सौंपेगी, जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई तय की जाएगी। उन्होंने फलोदी दुर्ग के संरक्षण को लेकर संघर्ष जारी रखने और सरकार से शीघ्र सकारात्मक निर्णय की उम्मीद जताई। निरीक्षण के दौरान आशा पुरोहित, महेश आचार्य, विनोद छंगाणी और अशोक कानूगा सहित कई अन्य लोग उपस्थित थे।


