बिलासपुर के छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (सिम्स) की बदहाल व्यवस्था को लेकर हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने सिम्स के डीन और कलेक्टर से शपथपत्र के साथ जवाब मांगा है। इस मामले की अगली सुनवाई 18 अगस्त को होगी। दरअसल, यहां हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे रेजिडेंट डॉक्टरों और एमबीबीएस छात्रों के लिए बाहर से मंगाए गए खाना को प्रतिबंधित पॉलीथिन बैग में रखा जा रहा है। घंटों बाद डॉक्टर आकर अपने नाम का पॉलीथिन ले जाकर खाना खाते हैं। सिम्स की अव्यवस्था पर आई मीडिया रिपोर्ट्स को हाईकोर्ट ने जनहित याचिका मानकर सुनवाई शुरू की है। इस मामले की हाईकोर्ट में लगातार सुनवाई चल रही है। पिछली सुनवाई में कलेक्टर ने भी हाईकोर्ट में शपथपत्र दाखिल कर यह जानकारी दी थी कि शासन की ओर से सिम्स की व्यवस्थाओं को सुधारने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। इसके बावजूद सिम्स की स्थिति में सुधार नहीं होने पर कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए अब सख्ती दिखानी शुरू कर दी है। भोजन फेंकने की शिकायत पर जताई नाराजगी
सुनवाई के दौरान कोर्ट को बताया गया कि सिम्स के हॉस्टल में रहने वाले छात्र पॉलीथिन पैकेट्स में रखा खाना फेंक रहे हैं, जिससे पूरे परिसर में गंदगी फैल रही है। इस पर डिवीजन बेंच ने कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि ऐसी स्थिति कदापि स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि शासन और प्रबंधन की लापरवाही के कारण छात्र ऐसा कर रहे हैं। इससे स्पष्ट होता है कि व्यवस्था में गंभीर खामियां हैं। सुनवाई के दौरान एडवोकेट जनरल प्रफुल्ल एन भारत ने बताया कि सिम्स के मेस में अच्छा भोजन तैयार किया जाता है। लेकिन, कुछ छात्र बाहर से खाना मंगवाते हैं और उपयोग में नहीं आने वाला भोजन परिसर में फेंक देते हैं। हाईकोर्ट ने पूछा- 95 लाख रुपए फंड का उपयोग क्यों नहीं
जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान पूर्व में भी हाईकोर्ट ने सिम्स की अव्यवस्था पर नाराजगी जताई थी। पिछली सुनवाई में छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कार्पोरेशन लिमिटेड (CGMSC) के वकील ने कोर्ट को बताया था कि सिम्स डीन के पास 95 लाख रुपए का फंड रखा हुआ है, जिसका उपयोग दवाओं की खरीदी एवं अन्य आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था के लिए किया जा सकता है। इसके बावजूद सिम्स में मरीजों को समुचित इलाज नहीं मिल पा रहा है। दूर-दराज से आने वाले मरीजों को भर्ती होने के बाद मजबूरी में इलाज अधूरा छोड़कर वापस लौटना पड़ता है या उन्हें निजी अस्पतालों की ओर रुख करना पड़ता है। 18 अगस्त तक शपथपत्र के साथ मांगा विस्तृत जवाब
कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि सिम्स के डीन और कलेक्टर अगली सुनवाई से पूर्व शपथपत्र दाखिल कर यह बताएं कि परिसर में गंदगी की रोकथाम के लिए क्या कदम उठाए गए हैं और 95 लाख रुपए के फंड का उपयोग किस प्रकार किया जा रहा है। इसके साथ ही मरीजों को बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में शासन एवं प्रबंधन की ओर से क्या ठोस उपाय किए गए हैं। इसका विवरण भी प्रस्तुत करना होगा। अब टिफिन में मंगा सकेंगे खाना, पॉलीथिन बैन
इधर, हाईकोर्ट के संज्ञान लेने के कुछ घंटों बाद ही सिम्स प्रबंधन ने नई व्यवस्था लागू कर दी है। डीन डॉ. रमणेश मूर्ति के आदेश जारी किया है, इसके मुताबिक अब सिम्स के हॉस्टल में पॉलीथिन पर बैन लगा दिया गया है। इसी तरह सिम्स के स्टूडेंट्स और रेजीडेंट डॉक्टर सिर्फ टिफिन में ही खाना मंगा सकेंगे। टिफिन को भी खुले जगह में नहीं रखा जाएगा। टिफिन को परिजन या गार्ड के कमरे में ही रखने के आदेश दिए गए हैं।