भास्कर न्यूज| लुधियाना मनुष्य जाति ही श्रवण करने की वास्तविक अधिकारी है, क्योंकि देव गति में देवता गण भोग प्रधान है। उन्हें धर्म श्रवण का विशेष अवकाश नहीं है। नरक गति के नारकीय जीव हमेशा दुखों में संतृप्त है वह भी तरह श्रवण नहीं कर पाएंगे और पशु में इतना विवेक ही नहीं है। यह शब्द वीरवार को जैन भारती महासाध्वी सुशील कुमारी महाराज ने एसएस जैन सभा नूरवाला रोड के तत्वावधान में जैन स्थानक में आयोजित कथा के दौरान कहे। यह चिंतनीय विषय है कि सुनने योग्य कान होते हुए भी क्या कोई भगवान की वाणी सुन पाता है। केवल मनुष्य ही तो सत्य धर्म सुनकर हित अहित का चिंतन मनन कर सकता हैं। भगवान की वाणी अमरदीप है जो अंधकारमय कंटीले पथरीले मार्ग पर उजाले दिखाकर यात्रा को सुगमता से पार करती है। भगवान पार्श्वनाथ के जीवन चरित्र को मधुर भजनों से सजाने में कुशल साध्वी रत्न श्री शुभिता जी महाराज ने कहा की फंदे से बचाना बड़ा मुश्किल होता है। फंदा चाहे सूती हो या रेशम का। पिंजरा चाहे लोहे का या लकड़ी का या सोने का हो, वह भी बुरा है। साध्वी जी ने कहा कि जिसने बंधन को समझ कर काटने का प्रयास किया वह आजाद हो जाता है। भगवान पार्श्वनाथ ने विभिन्न गतियां के सुख-दुख, विषय विकार, मोह माया, कषायों के बंधन को तोड़कर सिद्ध बुद्ध मुक्त गति को प्राप्त किया। भगवान पार्श्वनाथ ने मेघमाली द्वारा दिए गए घोर अतिघोर कष्टों को समता से सहन करके अपनी साधना पूर्ण कर मोक्ष स्थान को प्राप्त किया। कथा में उपस्थित बच्चों को पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया गया।