भारतीय स्टार्टअप ने सबसे बड़ा 3D-प्रिंटेड रॉकेट इंजन बनाया:72 घंटे में तैयार किया, चेन्नई की कंपनी अग्निकुल को अमेरिका में पेटेंट मिला

अब एस्ट्रोनॉट्स मेड-इन-इंडिया इंजन वाले रॉकेट से अंतरिक्ष में जा सकेंगे। भारतीय स्पेस टेक स्टार्टअप अग्निकुल कॉस्मोस ने दुनिया का सबसे बड़ा सिंगल-पीस 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन बनाया है। खास बात ये है कि इस इंजन को पुर्जों को जोड़कर नहीं बनाया गया है, बल्कि इसे पूरी तरह से एक ही हिस्से में तैयार किया गया है। यानी इसे बनाने में न तो वेल्डिंग की गई और न ही कोई जॉइंट्स या बोल्ट्स लगाए गए हैं। चेन्नई स्थित स्पेस स्टार्टअप ने इसे एक ही बार में 3D प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी से तैयार किया है और इसे बनाने में सिर्फ 72 घंटे का समय लगा है। यही नहीं कंपनी को अमेरिका में इसकी डिजाइन और मैन्युफैक्चरिंग के लिए पेटेंट भी मिल गया है। इंजन से रॉकेट लॉन्चिंग सेफ रहेगी अग्निकुल कॉस्मोस ने ये इंजन इनकॉनल (Inconel) नाम के खास मेटल से बनाया है, जो स्पेस ट्रैवल के लिए मजबूत और जंगरोधी होता है। इसकी खासियत ये है कि एक ही पीस में बनने की वजह से इसमें फेल होने के चांस कम हैं, जो रॉकेट लॉन्च को और सेफ बनाता है। यह डिजाइन इंजन को ज्यादा मजबूत, हल्का और उत्पादन में कहीं ज्यादा आसान बनाता है। अग्निकुल का कहना है कि इससे प्रोडक्शन टाइम में 60% से ज्यादा की कमी आ सकती है और तकनीकी खराबी की संभावना भी कम हो सकती है। IIT मद्रास रिसर्च पार्क में मैन्युफैक्चरिंग ये इंजन अग्निकुल के ‘अग्निबान’ रॉकेट में इस्तेमाल होगा, जो 300 किलो तक का पेलोड 700 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जा सकता है। इस इंजन को बनाने के लिए अग्निकुल का मैन्युफैक्चरिंग प्लांट IIT मद्रास रिसर्च पार्क में है, जो भारत का पहला 3D प्रिंटेड रॉकेट इंजन फैक्ट्री है। 2022 में इसकी शुरुआत टाटा सन्स के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन और इसरो चीफ एस सोमनाथ ने की थी। साथ ही इसरो और इन-स्पेस (IN-SPACe) की मदद से अग्निकुल को टेस्टिंग और लॉन्चिंग के लिए सपोर्ट मिला है। लॉन्चिंग का सफर भविष्य की प्लानिंग अग्निकुल का मकसद स्पेस को सस्ता और पहुंच में लाना है। ये स्टार्टअप 30 किलो से 300 किलो तक के पेलोड के लिए कस्टमाइज्ड लॉन्च सॉल्यूशन्स देगा। 2025 तक रेगुलर फ्लाइट्स शुरू करने की योजना है, और आने वाले सालों में भारत को स्पेस सुपरपावर बनाने में बड़ा रोल निभा सकता है। रविचंद्रन ने कहा- ये हमारे 1000 घंटे की मेहनत का नतीजा इसरो चीफ डॉ. एस सोमनाथ ने इसे ‘इंडिजिनस इनोवेशन’ की मिसाल बताया, जबकि इन- स्पेस चेयरमैन डॉ. पवन गोयनका ने कहा कि ये प्राइवेट स्पेस इंडस्ट्री के लिए बड़ा कदम है। अग्निकुल के को-फाउंडर श्रीनाथ रविचंद्रन ने कहा, ‘ये हमारे 1000 घंटे की मेहनत का नतीजा है। अब हम 2025 के अंत तक ऑर्बिटल मिशन की तैयारी कर रहे हैं।’ पोस्ट्स और वेब पर लोग इसे भारत की स्पेस टेक्नोलॉजी में क्रांति बता रहे हैं।

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