मां-बाप समेत घर के 6 लोगों को कुल्हाड़ी से काटा:दूसरी जाति में लव-मैरिज के खिलाफ थी फैमिली; बॉयफ्रेंड संग साजिश रची

14 अप्रैल 2008, अमरोहा का बावनखेड़ी गांव रात करीब 2 बजे का वक्त। अचानक एक लड़की के चीखने-चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। गांववाले दौड़े, मास्टर शौकत अली की बेटी शबनम बालकनी में दहाड़ मारकर रो रही थी। पड़ोसियों को कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ लोग मकान की बाउंड्री फांदकर लॉन में कूदे। घर का दरवाजा भीतर से बंद था। उन्होंने शबनम से नीचे आकर दरवाजा खोलने को कहा। वो लगातार रोए जा रही थी। बीच में कहती- “वो लोग मुझे भी मार देंगे… मुझे बचा लो।” काफी समझाने के बाद उसने नीचे आकर मेन गेट का ताला खोला। मोहल्लेवाले घर में दाखिल हुए। दौड़कर छत पर गए तो पैरों तले जमीन खिसक गई। मास्टर शौकत अली की सिर कटी लाश चारपाई पर पड़ी थी। कमरे में बड़े बेटे और बहू की भी वही हालत थी। दूसरे कमरे में छोटे बेटे और आंगन के दूसरे छोर पर बने कमरे में बीवी और भतीजी की लाश थी। ‘कातिले इश्क’ के पहले एपिसोड में कहानी शबनम और सलीम की। जिसने शादी के लिए मना किए जाने पर पूरे परिवार को खत्म करने की प्लानिंग की। बचने के लिए डकैती की कहानी रची। पढ़िए फिर कैसे पकड़े गए शबनम और सलीम… साल 2006, सुबह का वक्त। मास्टर शौकत अली की बेटी शबनम सरकारी स्कूल में शिक्षामित्र थी। वो रोज घर से स्कूल जाने के लिए निकलती। गांव के बाहर चौराहे से ऑटो पकड़ती। चौराहे के पास ही आरा मशीन चलाने वाला एक लड़का सलीम रोज उसे देखता। शबनम रोज वहां से गुजरती, लेकिन कभी उस ओर ध्यान नहीं गया। एक दिन अचानक शबनम की नजर सलीम पर पड़ी। सलीम उसकी तरफ ही देख रहा था। शबनम को कुछ अजीब लगा। उसने अपना दुपट्टा सही किया और दोबारा उस तरफ देखा। लड़के ने नजर झुका ली थी। अगले दिन सलीम फिर उसे देख रहा था। इस बार जैसे ही शबनम ने देखा, उसने नजर हटा ली। कुछ दिन यूं ही चलता रहा। दोनों एक ही गांव के थे। आते-जाते कहीं मिलते तो सलीम नजरें झुकाकर चला जाता। एक दिन शबनम सलीम को देखकर मुस्कुरा दी। अब रोज चौराहे पर दोनों दूर खड़े एक-दूसरे को देखते, मुस्कुराते। कुछ देर में ऑटो आता और शबनम चली जाती। एक दिन शबनम स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थी। तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया। छत से शौकत अली ने आवाज दी- “बेटी देखना जरा कौन है।” सिर पर दुपट्टा ओढ़े शबनम ने दरवाजा खोला। सलीम सामने खड़ा था। दोनों की धड़कनें तेज हो गईं। सलीम हकलाते हुए बोला- “अस्सलाम वालेकुम…” शबनम ने धीरे से जवाब दिया- “वालेकुम अस्सलाम…”
शौकत अली ने फिर आवाज दी- “कौन है बेटी?” शबनम कुछ नहीं बोली। सलीम एकटक उसे देख रहा था। शबनम नजरें झुकाए खड़ी थी। तभी शौकत दरवाजे पर आए और सलीम को देखकर बोले- “अरे बेटा, आ गए तुम। आओ-आओ… बैठो, पानी पीयो मैं कपड़े बदल कर आता हूं।” सलीम ने सिर्फ एक शब्द में जवाब दिया- “जी…” सलीम बाहर बरामदे में बैठ गया। शबनम मिठाई और पानी लेकर आई। बरामदे में उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था। तभी सलीम ने धीरे से कहा- ” आप घर में और ज्यादा अच्छी लगती हैं।” शबनम ने सुना, लेकिन अनजान बनते हुए बोली- “कुछ कहा आपने?” सलीम दोबारा कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया और सिर हिला दिया। शबनम तपाक से बोली- “घर तक आ गए डर नहीं लगा, अब बोलने में डर लगता है।” इतना कहकर वो झेंप गई। सलीम भी मुस्कुरा दिया- “हां, डर तो लगता है।” तब-तक सीढ़ियों पर कुछ आहट सुनाई दी। शौकत अली नीचे आए। सलीम उन्हें बाइक पर बिठाकर निकल गया। अगले दिन शबनम स्कूल जाने को तैयार हुई, लेकिन आज की सुबह कुछ अलग थी। नहाने के बाद आज शबनम आईने के सामने देर तक रुकी रही। अपने चेहरे को ऐसे देखा, जैसे किसी और की निगाह से देख रही हो। बालों को सलीके से संवारा, दुपट्टे की एक-एक प्लेट को ध्यान से जमाया। घर से निकली तो धड़कनें तेज थीं। उसे पता था, सलीम इंतजार कर रहा होगा। लेकिन, सलीम आज अपने कारखाने पर नहीं था। वो मोटरसाइकिल लिए ऑटो स्टैंड पर के पास खड़ा था। शबनम की धड़कनें और तेज हो गईं। सलीम बाइक उसके सामने ले आया, बोला- “इजाजत हो तो स्कूल छोड़ दूं?” शबनम ने जवाब दिए बगैर सवाल किया- “अगर ना कह दूं तो?” सलीम मुस्कुरा दिया। उस मुस्कुराहट में न कोई जिद थी और न ही गुजारिश, बस उम्मीद थी। शबनम तपाक से बोली- “तुम डरपोक हो।” सलीम ने झट से कहा- “मैं डरपोक नहीं हूं।” शबनम- “नहीं, तुम हो। महीनों से आते-जाते देख रहे थे। पहले क्यों नहीं पूछा?” सलीम- “हिम्मत नहीं हुई।”
शबनम हंसते हुए बाइक पर बैठ गई। बोली- “फिर तो तुम डरपोक ही हुए न…।” सलीम ने गाड़ी चालू की, मुड़कर शबनम को देखा और धीरे से कहा- “मैं डरपोक नहीं हूं, सिर्फ आपसे डरता हूं।” दोनों प्यार की सीढ़ियां चढ़ रहे थे। धीरे-धीरे उनका साथ बढ़ने लगा। खाली वक्त में एक-दूसरे से मिलने लगे। भरोसा और लगाव बढ़ रहा था, दूरियां घट रही थीं। एक दिन शबनम, सलीम से मिलने पहुंची। सलीम उसे देखकर चहक उठा, लेकिन शबनम के चेहरे पर उदासी थी। शबनम ने कहा- “सलीम, मुझे तुम्हें कुछ बताना है।” सलीम ने उसका हाथ पकड़ा और कहा- “पहले बैठ जाओ, फिर इत्मीनान से बताना।” शबनम बोली- “इस बार मेरा महीना नहीं आया। कुछ दिनों से मिचली सी आती है। शायद मैं पेट से हूं।” बात हद से ज्यादा आगे बढ़ चुकी थी, लेकिन सलीम को हैरत नहीं हुई। वह तुरंत बोला- “तो इसलिए चेहरे पर बारह बज रहे हैं? परेशान क्यों हो, हम शादी कर लेंगे।” शबनम ने सलीम की तरफ से मुंह घुमाकर कहा- “फिर अब्बू से मेरा हाथ क्यों नहीं मांगते?” सलीम- “क्या अब्बू मान जाएंगे?” शबनम- “पूछने में क्या हर्ज? नहीं माने तो घर से भाग जाएंगे।” सलीम उठा और टहलने लगा। फिर बोला- “एक बार अब्बू को हिंट दो कि तुम किसी से प्यार करती हो। देखो वो क्या कहते हैं। मेरा नाम मत बताना।” शबनम ने ठीक ऐसा ही किया। घरवालों से बात करनी कम कर दी। हमेशा मोबाइल पर ही लगी रहती। एक दिन शौकत अली अपनी पत्नी हाशमी के साथ बैठे थे। अचानक बोले- “आज-कल शबनम रूखी-रूखी सी रहती है।” हाशमी ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया। शौकत- “इसमें हंसने की क्या बात है? कुछ बात है क्या?” हाशमी सब्जी काटते हुए कहती हैं- “कोई बात नहीं, लेकिन अब उसके लिए कोई अच्छा-सा लड़का ढूंढ दीजिए।” शौकत- “निकाह के लिए गुमसुम रह रही है?” हाशमी ने सिर हिलाया- “नहीं… गुमसुम क्यों है ये तो वही जाने, लेकिन निकाह की उम्र तो हो ही गई है। जवान लड़की को घर में रखना ठीक नहीं। क्या पता मन भटक रहा हो।” मास्टर शौकत मजाकिया अंदाज में बोले- “तुम्हारा भी मन शादी से पहले बहका था क्या?” हाशमी शर्मा गईं। फिर बोलीं- “मन भटकने से पहले ही निकाह हो गया।” दोनों एक साथ हंस पड़े। कुछ दिनों यूं ही निकल गए। ऐसा लगता था कि शबनम घर में रहकर भी घरवालों से कोई रिश्ता नहीं रख रही थी। एक शाम शौकत अली घर लौटे। हाशमी आंगन में बैठी थीं। उन्होंने आवाज लगाई- “शबनम… अब्बू के लिए पानी लाना।” शबनम पानी लेकर पास खड़ी हो गई। गिलास लेते हुए शौकत बोले- “तुम्हारे लिए लड़का ढूंढ रहे हैं, सऊदी में रहता है।” ये सुनते ही शबनम का चेहरा लाल हो गया। हाशमी ये देखकर मुस्कुरा दीं। उन्हें लगा शबनम शर्मा गई है। शबनम ने अब्बू के हाथ से गिलास लिया और मुड़कर बोली- “अब्बू, लड़का मैंने ढूंढ लिया है।” और वापस किचन की तरफ चल दी। हाशमी गुस्से से तमतमा उठी। शौकत को भी अच्छा नहीं लगा था, लेकिन शांत रहे। बोले- “तुम सही कहती थीं, मन ही भटक गया है।” फिर सिर झुकाकर धीरे से कहा- “अगर अपनी बिरादरी का लड़का है तो कह दो हमें कोई दिक्कत नहीं। बस पूछ लो, निकाह कब करेगी?” हाशमी गुस्से से बोली- “ऐसे कैसे… और उसकी हिम्मत कैसे हुई, किसी लड़के से बात करने की।” वो झटके से उठी और किचन में गई। शबनम वहीं खड़ी थी मानो उसे पता था कि अम्मी पीछे आएंगी। अंदर घुसते ही अम्मी ने कहा- “कह दे ये बात सच नहीं है।” शबनम ने घूरकर देखा। हाशमी को ये नागवार गुजरा। खींचकर दो थप्पड़ मारे फिर बोली- “बता कहां मुंह काला करा रही है?” तब-तक शौकत भी किचन में आ गए। शबनम को अपने कमरे में जाने को कहा। वे टीचर थे, समझदार थे। उन्होंने हाशमी को समझाया- “अच्छा है न, खुद ही लड़का ढूंढ लिया। हमारी चिंता खत्म हुई। बस लड़की खुश रहे, हमें और क्या चाहिए। उससे पूछो लड़का करता क्या है, कहां रहता है।” हाशमी अभी भी गुस्से में थी, बोली- “मैं ना जा रही, आप खुद ही पूछ लो।” रात हो चुकी थी। लगभग सभी खाना खा चुके थे, सिवाय शबनम के। कई बार आवाज देने पर भी शबनम नीचे नहीं आई थी। शौकत अली हाथ में थाली लेकर उसके कमरे में गए। कमरा अंदर से बंद था। शौकत ने दरवाजा खटखटाया- “दरवाजा खोल शबनम।” शबनम कुछ नहीं बोली और न ही दरवाजा खोला। शौकत ने बड़े प्यार से कहा- “बेटी जो तुम चाहती हो, वही होगा। अब गुस्सा छोड़ो और खाना खा लो।” शबनम में दरवाजा खोला। शौकत अली खुद बैठकर बिटिया को खाना खिलाने लगे। इधर-उधर की बात करते हुए अचानक बोले- “कौन है लड़का? क्या करता है?” शबनम ने नजरें झुका लीं, बोली- “सलीम नाम है उसका… अपने ही गांव का है।” सलीम का नाम सुनते ही शौकत अली सन्न रह गए। तभी हाशमी कमरे में आ गई। वो बाहर खड़ी सब सुन चुकी थी। आते ही शबनम पर गुर्राते हुए बोली- “उस लकड़ी काटने वाले के साथ मुंह काला किया है। तू भी लकड़ी काटेगी?” शबनम के सब्र का बांध टूट गया। वो नजरें मिलाकर बोली- “हां… वही है। मैं पढ़ी-लिखी हूं, कमाती हूं। शादी के बाद क्या करना है, मैं देख लूंगी।” मास्टर साहब सब सुन रहे थे। वे बोले- “तुम बहक गई हो। वो हमारी जात का नहीं है। ये शादी नहीं हो सकती।” शबनम ने कहा- “शादी तो उससे ही करूंगी। उसके लिए किसी भी हद तक चली जाऊंगी।” इस बार शौकत भी नाराज हो गए। बोले- “क्या करेगी… खुद मर जाएगी या या हमें मार देगी? ये शादी नहीं होगी, नहीं होगी, नहीं होगी।” शबनम ने पिता को घूरकर देखा, जैसे उन्हें मार ही देगी। फिर नजरें झुका लीं। अगली सुबह वो उठी और बिना तैयार हुए स्कूल स्कूल जाने लगी। रात में कई बार उसे उल्टी हुई थी। परिवार को लगा था, वो परेशान है। लेकिन बात कुछ और थी, जो सिर्फ सलीम और शबनम को पता थी। आज वो नहाई नहीं, शीशे के सामने भी नहीं गई। न बाल संवारे और न दुपट्टा सिर पर रखा। सीधे सलीम से मिलने चली गई और पूरी बात बताई। फिर अचानक से बोली- “घर तो नहीं छोडूंगी। उसी घर में रहेंगे हम दोनों…” सलीम ने चिढ़कर कहा- “और तुम्हारे घरवाले ऐसा होते देखते रहेंगे। शबनम ने आंखें तरेरकर कहा- “जब बचेंगे, तब न देखेंगे…” सलीम ये सुनकर चौंक गया। शबनम की आंखों में खून उतर आया था। कुछ दिन तक शबनम के घर में खींचतान चलती रही। शौकत अली ने उसका घर से निकलना भी बंद करवा दिया था। अब सिर्फ छिप-छिपाकर फोन पर ही सलीम से बात हो पाती थी। शबनम ने तय कर लिया था। “चाहे कुछ भी हो जाए, घर से नहीं भागूंगी और न ही सलीम के सिवा किसी और से निकाह करूंगी।” उसके दिमाग में शैतानी प्लान चलने लगा था। सलीम भी शबनम का साथ देने के लिए राजी हो गया था। सलीम ने कहा- “घर में सबसे अच्छे से पेश आओ। सब-कुछ ठीक करो पहले जैसा… फिर आगे काम किया जाएगा।” शबनम ने अपने मां-बाप से माफी मांग ली। अम्मी से बोली- “अब सलीम से मेरा कोई मतलब नहीं। मुझसे गलती हो गई थी। एक गलती तो अल्लाह भी माफ करता है। आगे ऐसी गलती नहीं होगी। अब्बू जहां तय करेंगे, वहीं शादी करूंगी।” शबनम के बस इतना कहने की देर थी, हाशमी और शौकत का गुस्सा एक पल में काफूर हो गया। मां ने रोती हुई शबनम को गले लगा लिया। फिर समझाते हुए बोली- “बेटी, हमने जो कुछ कहा, तेरी भलाई के लिए कहा। वो लड़का क्या कमाता, क्या तुझे खिलाता। तेरे अब्बू मास्टर, एक भाई इंजीनियर दूसरा इंजीनियर बनने वाला… तू खुद डबल एम्मे, सकूल में पढ़ावे और वो जाहिल… हमारा-उसका क्या मेल।” फिर शबनम के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली- “थोड़ा ठीक-ठाक होता, अपनी जात-बिरादरी का होता तो देखा जाता। तेरे अब्बू तो तैयार ही थे। हम दुस्मन ना हैं तेरे, भला चाहे हैं।” शबनम फिर से मां के गले लगकर सुबकने लगी, लेकिन उन आंसुओं में तेजाब की झरफ थी। 14 अप्रैल 2008, रात करीब 9 बजे सभी लोग खाना खाकर बैठे थे। शौकत, हाशमी, बड़ा बेटा अनीस और इन्हीं लोगों के साथ रहने वाली शौकत की भतीजी राबिया। इधर-उधर की बातें चल रही थीं। तभी शबनम बोली- “चाय पीने का मन हो रहा है, कोई पीएगा?” अनीस फट से बोला- “मैं…।”
शबनम में पिता की तरफ देखा। शौकत बोले- “पूछ-पूछकर नेकी नहीं करते बेटी, सबके लिए बना लाओ।” शबनम मुस्कुराई और चाय बनाने चल दी। किचन से इलाइची और चाय पत्ती की तेज खुशबू आ रही थी। अनीस ने अपनी बीवी को पुकारा- “अंजुम… बाहर आओ। शबनम चाय बना रही है।” 9 महीने के बेटे अर्श को गोद में लिए अंजुम कमरे से झांकी- “इसे सुलाकर आती हूं।” पड़ोस के कमरे से छोटा बेटा राशिद निकलकर आया- “मेरे लिए चाय नहीं बनी क्या?” ट्रे में चाय लेकर आ रही शबनम दूर से ही बोल पड़ी- “सबके लिए बनी है…।” सबको चाय देने के बाद शबनम ने आखिरी कप राशिद की तरफ बढ़ा दिया। वो हैरानी से बोला- “तुम्हारी चाय?” शबनम- “किचन में है, ट्रे में कप रखने की जगह नहीं थी।” शबनम अपनी चाय लाई और वहीं बैठकर पीने लगी। चाय का आखिरी घूंट पीकर शौकत अली बोले- “भाई वाह, मजा आ गया। अच्छी चाय पीने के बाद नींद भी अच्छी आएगी।” चाय पीकर सब सोने चले गए। बिस्तर पर लेटते ही सभी को नींद आ गई, लेकिन शबनम की आंखों से नींद काफी दूर थी। कुछ देर बाद वो धीरे से उठी और अम्मी के करीब जाकर पुकारा। पहले धीमी आवाज में, फिर कुछ तेज। हाशमी और राबिया गहरी नींद में डूब चुके थे। दवा ने अपना काम कर दिया था। शबनम के चेहरे पर सुकून भरी मुस्कान तैर गई। उसने तुरंत सलीम को फोन लगाया- “मैंने अपना काम कर दिया है। अब तुम्हारी बारी, जल्दी आओ।” रात करीब 11ः30 बजे गांव में सन्नाटा था। शबनम ने मेन गेट खोला, हाथ में कुल्हाड़ी लिए सलीम सामने खड़ा था। दोनों छत पर गए। शबनम के हाथ में टॉर्च थी। शौकत अली बरामदे में ही खाट पर सो रहे थे। सलीम और शबनम ने एक-दूसरे को देखा। शबनम ने अपने पिता के चेहरे के ठीक ऊपर टॉर्च जलाई। सलीम ने एक बार शबनम की ओर देखा और फिर पूरी ताकत से कुल्हाड़ी उठाकर शौकत की गर्दन पर दे मारी। खून के छीटे उड़े और एक झटके में सिर, धड़ से अलग हो गया। पहला शिकार आसान रहा। दोनों कमरे की तरफ बढ़े। कमरा अंदर से बंद था। शबनम ने खिड़की से हाथ डालकर सिटकनी खोली। अनीस और उसकी बीवी अंजुम बेसुध सो रहे थे। टॉर्च की रोशनी पहले भाई और फिर भाभी की गर्दनों पर पड़ी। हाथ-पांव हिलाने का तो सवाल ही नहीं था। बारी अब मासूम से भतीजे अर्श की थी। सलीम ने पूछा- “इसका क्या करें?”
शबनम बोली- “गर्दन दबा दो।” सलीम ने बच्चे को अपनी तरफ खींचा तो वो रोने लगा। तभी सलीम ने जोर से उसकी गर्दन दबा दिया। चेहरा नीला पड़ने लगा और रोना बंद हो गया। इसके बाद पड़ोस के कमरों में छोटे भाई, मां और कजिन राबिया का भी वही हाल हुआ। कमरों की दीवारें और फर्श खून से लाल हो चुका था। घर के 7 लोगों को मारने के बाद भी शबनम के चेहरे पर शिकन का एक निशान तक न था। शबनम ने सलीम को गले लगा लिया और धीरे से बोली- “अब कोई हमारे बीच नहीं आएगा। तुम हाथ-पैर धोकर घर जाओ। हम कुछ दिन बाद मिलेंगे।” सलीम चला गया। शबनम ने भी अपने हाथ-पैर धोए, खून से सने कपड़े छिपा दिए। तभी बच्चे के रोने की आवाज आई। शबनम बुरी तरह डर गई। झट से अनीस के कमरे की तरफ भागी, अर्श रो रहा था। शबनम को कुछ समझ नहीं आ रहा था। उसने बच्चे को उठाया और चुप कराने लगी। जब सलीम ने गर्दन दबाई, तो बच्चा मरा नहीं सिर्फ बेहोश हुआ था। शबनम ने तुरंत सलीम को फोन लगाया- “कैसे गर्दन दबाई थी, ये पिल्ला अभी जिंदा है। जल्दी घर आओ।” सलीम भड़क गया- “6 लोगों का काम मैंने कर दिया, तुमसे एक बच्चा नहीं संभल रहा। फिर से दबा दो, इस बार कुछ देर तक दबाए रखना।” और फोन कट गया। शबनम ने बच्चे को बेड पर रखा और फिर कसकर गर्दन दबाने लगी। नन्ही-सी जान, दम घुटने से हाथ-पैर पटकती रही। फिर एक हिचकी आई और सब शांत हो गया। शबनम ने इस बार कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी थी। अब प्लान के दूसरे हिस्से पर काम करना था। रात के 2 बज चुके थे। शबनम चीख मारकर रोने लगी- “या अल्लाह… ये सब क्या हो गया। अब मैं कहां जाऊं…” चीख-पुकार सुनकर मोहल्लेवाले दौड़ पड़े। शबनम फूट-फूटकर रो रही थी। “हाय मेरा पूरा परिवार मार दिया… मेरे अब्बू, हाय मेरी अम्मी… अब मैं कहां जाऊं।” पड़ोसियों के काफी समझाने के बाद उसने नीचे आकर दरवाजा खोला। मोहल्लेवाले ऊपर आए और घर का हाल देखा तो सन्न रह गए। परिवार के 7 लोगों की कटी-फटी लाशें बरामदे और कमरे में पड़ी थीं। शौकत अली, बीवी हाशमी, बड़ा लड़का अनीस, उसकी बीवी अंजुम, दोनों का बेटा अर्श, छोटा लड़का राशिद और भतीजी राबिया। देखते ही देखते पूरे गांव, फिर पूरे शहर और सुबह तक प्रदेश भर में हड़कंप मच गया। पुलिस-प्रशासन के आला अफसर तो एक तरफ मुख्यमंत्री मायावती भी बावनखेड़ी गांव पहुंच गईं। देशभर का मीडिया एक छोटे से गांव में इकट्ठा हो गया था। शबनम ने पड़ोसियों को बताया कि कुछ लोग घर में घुसे सबको मारा, लूटपाट की और भाग गए। वो सबसे ऊपर छत पर सो रही थी, इसलिए बच गई। अचानक बूंदाबांदी हुई, नीचे आई तो देखा घरवाले इस हालत में पड़े थे। उधर, पुलिस अपनी कार्रवाई में जुटी थी। अमरोहा के शहर कोतवाल (SHO) आरपी गुप्ता ने घर के चप्पे-चप्पे का मुआयना किया। शबनम की बात गुप्ता के गले नहीं उतर रही थी। घर में लूटपाट के विरोध का कोई निशान नहीं था। उनका ध्यान बिस्तर पर अटक गया। चादरें बिल्कुल ही सिमटी नहीं थी। ऐसा लग रहा था, मरने वाले ने बचने की कोशिश ही नहीं की। तभी एक सिपाही ने दवा का खाली रैपर उन्हें दिखाया। आरपी गुप्ता ने नाम पढ़ा- “बायोपोज… नींद की दवा।” उनका शक यकीन में बदल रहा था कि मर्डर में कोई घरवाला भी शामिल है। शक की सुई शबनम पर थी, लेकिन केस सेंसेटिव था इसलिए गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी। SHO गुप्ता को अब पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार था। रिपोर्ट में साफ हो गया कि मर्डर से पहले उन्हें नींद की दवा दी गई थी। ये सबूत काफी था, लेकिन पुलिस ने सावधानी बरती। शबनम की कॉल डीटेल्स निकाली गई। पता चला 14 अप्रैल की शाम 7ः30 बजे से रात 1ः09 बजे तक उसने कई बार एक ही नंबर पर बात की थी। फिर रात 1ः40 बजे से 2ः09 बजे तक यानी करीब 31 मिनट तक उसी नंबर पर बात की थी। मतलब साफ था, शबनम पूरी रात जाग रही थी। शौकत अली और परिवार के 6 लोगों को उनके घर में अहाते के भीतर सुपुर्द-ए-खाक किया जा चुका था। अब पुलिस शबनम से पूछताछ कर सकती थी। आरपी गुप्ता सवालों के पुलिंदे के साथ तैयार थे। पहला सवाल आया, तो शबनम ने वही बात दोहरा दी जो पड़ोसियों से कही थी। गुप्ता ने अगला सवाल दागा- “डकैत अंदर कैसे अंदर आए?”
शबनम- “बाहर के दरवाजे से।” गुप्ता ने पलटकर सवाल किया- “लेकिन पड़ोसियों ने बताया था कि जब वो लोग तुम्हारे घर पहुंचे, गेट अंदर से बंद था। डकैतों के पास क्या जादू-मंतर था, बिना दरवाजा तोड़े ही अंदर आ गए।” शबनम का गला सूख गया, बोली- “क्या पता छत से आए हों?” गुप्ता ने जैसे सवाल तैयार रखा था- “छत पर तो तुम सो रही थीं, फिर तुम कैसे बच गई?” शबनम के हाथ-पैर ठंडे पड़ने लगे थे। चेहरे पर घबराहट साफ दिख रही थी। इस बार आरपी गुप्ता ने सख्ती से पूछा- “सच-सच बताओ मामला क्या है, तुमने ही मारा है न अपने घरवालों को?” शबनम के मुंह से निकल गया- “मैंने सिर्फ बच्चे को मारा है।”
आरपी गुप्ता- “फिर बाकियों को किसने मारा?”
शबनम- “सलीम…” और फिर पूरी कहानी एक-एक पहलू के साथ सामने आने लगी। कत्ल के पांच दिन बाद, 19 अप्रैल 2008 पुलिस ने पूछताछ के बाद सलीम और शबनम को गिरफ्तार कर लिया। सलीम ने भी अपना गुनाह कबूल कर लिया। उसने गांव के तालाब से वो कुल्हाड़ी भी बरामद करा दी, जिससे मर्डर हुए थे। आरपी गुप्ता ने 300 पन्नों की चार्जशीट अमरोहा सेशन कोर्ट में दायर की। सुनवाई शुरू हुई, इस बीच 13 दिसंबर, 2008 को शबनम ने मुरादाबाद जेल में एक बेटे को जन्म दिया। साल 2010, अमरोहा सेशन कोर्ट ने सलीम और शबनम को मौत की सजा सुनाई। केस हाईकोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। 15 मई 2015, सर्वोच्च अदालत ने भी जिला अदालत का फैसला बरकरार रखा। शबनम और सलीम ने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दाखिल की। राष्ट्रपति ने याचिका खारिज कर दी। जेल में बंद शबनम और सलीम अपनी मौत की तारीख का इंतजार कर रहे हैं। *** स्टोरी एडिट- कृष्ण गोपाल *** रेफरेंस जर्नलिस्ट- राशिद चौधरी, आरिफ खान, मोहम्मद चांद | उस्मान सैफी (शबनम के बेटे के कस्टोडियन) | महेश ठाकुर (शौकत अली के दोस्त) भास्कर टीम ने सीनियर जर्नलिस्ट्स, पुलिस, पीड़ितों और जानकारों से बात करने के बाद सभी कड़ियों को जोड़कर ये स्टोरी लिखी है। कहानी को रोचक बनाने के लिए क्रिएटिव लिबर्टी ली गई है।

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