माता-पिता ने किडनी देकर जान बचाई:अब हर माह दवा खरीदने 20 हजार नहीं, ऐसे दर्जनों केस

दिसंबर 2021 में मेरी तबीयत बिगड़ी। निजी अस्पताल में जांच में पता चला कि शरीर में पानी भर रहा है। किडनी काफी हद तक खराब हो गई है। जनवरी 2022 से डायलसिसिस शुरू हुआ। इसके लिए मुझे हर दूसरे दिन अस्पताल जाना पड़ता था। जिस समय मेरी तबीयत बिगड़ी, मैं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा था। बीमारी ने सब छुड़ा दिया। डॉक्टर ने किडनी ट्रांसप्लांट की सलाह दी। मां ने अपनी एक किडनी मुझे दी। ट्रांसप्लांट के बाद नई किडनी को ठीक रखने हर माह 15 से 20 हजार रुपए दवा का खर्च है। घरवाले दवाई का खर्च नहीं उठा पा रहे हैं। डर है दवाई बंद कर दी तो मुझे फिर से डायलिसिस करना पड़ेगा। कई जगह गुहार लगा चुका हूं, लेकिन सहायता नहीं मिल रही है। ये दर्द है आरंग के भैंसा सकरी गांव के पिरित कुमार (24 वर्ष) का। ऐसी कहानी अकेले पिरित की नहीं है। दर्जनों लोग हैं जिन्होंने सरकारी मदद से किडनी ट्रांसप्लांट तो करवा लिया लेकिन उस किडनी को स्वस्थ रखने के लिए उनके पास पैसे नहीं है। आयुष्मान योजना के तहत करीब 5 लाख ट्रांसप्लांट के समय दिए गए थे। पूरे पैसे ट्रांसप्लांट पर ही खर्च हो गए। उस समय ज्यादा लोगों को मालूम नहीं था कि ट्रांसप्लांट के बाद भी किडनी को सुरक्षित रखने कम कम से तीन साल तक हर माह हजारों रुपए खर्च करने होंगे। अब उनके पास दवाओं के लिए पैसे नहीं है। ऐसे दर्जनों केस हैं इसके लिए वे लगभग सभी मंत्रियों, स्वास्थ्य विभाग और विधायकों के कार्यालय के चक्कर लगा चुके हैं। लेकिन इनकी समस्या का कोई हल नहीं मिल रहा है। इनमें युवा ज्यादा हैं, जिनकी उम्र औसतन 30 साल है। पांच साल में हुए रिकॉर्ड ट्रांसप्लांट 3 साल तक सहायता राशि मिलने का है नियम गरीबी रेखा से नीचे आने वाले मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट के बाद दवाइयों के लिए अनुदान राशि मिलने का प्रावधान है। इसके तहत केंद्र सरकार से हर मरीज को 10 हजार रुपए 3 साल तक, यानी 36 माह तक मिलने हैं। इसके लिए हर राज्य के स्टेट ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गनाइजेशन (सोटो) के कार्यालय से मरीजों की लिस्ट नोटो यानी नेशनल आॅर्गन एंड टिश्यु ट्रांसप्लांट भेजी जाती है। वहां से मंजूरी के बाद ही मरीज के खाते में दवाइयों के पैसे भेजे जाते हैं। लेकिन आश्चर्य की बात है कि छत्तीसगढ़ में अब तक एक भी मरीज को किडनी ट्रांसप्लांट के बाद दवाइयों के पैसे नहीं मिले हैं। इसके चलते मरीज परेशान हो रहे हैं। जबकि राजस्थान और बिहार जैसे राज्यों की सरकार की ओर से खुद की योजना और बजट बनाकर किडनी ट्रांसप्लांट के मरीजों को अनुदान राशि दी जा रही है। पिछले साल छत्तीसगढ़ सोटो ने 119 मरीजों की लिस्ट भेजी थी, लेकिन अब तक इनका अप्रूवल नहीं मिला है। मंत्रालय में भटकते मिले 10 युवक इनमें 8 को मां ने दी है किडनी
भास्कर को 10 युवक मंत्रालय में भटकते मिले। इनमें आठ को उनकी मां ने किडनी दी है। मंत्रालय में मदद के लिए भटकते मिले युवकों पिरित कुमार, संतराम ध्रुव, जन्मजय, शिव कुमार कश्यप, दीनानाथ, हर्ष वर्मा, गजेंद्र साहू, योगेश बंजारा, रवि कुमार और टकेश्वर, सभी की अलग-अलग कहानी पर समस्या एक ही। अब हर माह दवा खरीदी के पैसे नहीं है। केंद्र सरकार के नियमों के अनुसार जिनका सरकारी अस्पताल में ट्रांसप्लांट होगा और जो गरीबी रेखा के नीचे आएंगे, उन्हें ही तीन साल तक दवा के लिए पैसे मिलेंगे। जो मरीज भटक रहे हैं उनका ट्रांसप्लांट प्राइवेट में हुआ है। नियमों को शिथिल करने पत्र लिखा गया है। ताकि सभी को मदद मिल सके।- डॉ. विनीत जैन,सोटो चेयरमेन ​​​​​​​पेट में दर्द के बाद शुरू हुई समस्या
मैं दीनानाथ साहू (21 वर्ष) सारंगढ़ का रहने वाला हूं। जुलाई 2022 की रात अचानक मेरी तबीयत बिगड़ी। मेरे पेट में असहनीय दर्द शुरू हुआ। उल्टियां, पैरों व चेहरे सूजन आ गयी। अस्पताल गया तो पता चला किडनी खराब हो गई है। इसके बाद 6 से 7 माह तक डायलिसिस चला। एक हफ्ते में 3-3 बार डायलिसिस होता था। डॉक्टर ने कहा कि मेरी किडनी पूरी तरह से खराब हो गई है, दूसरी किडनी लगानी पड़ेगी। मैं बहुत परेशान हो गया था। कहां से किडनी लाऊंगा। कैसे ठीक हो पाऊंगा। फिर मेरी मां ने मुझे किडनी दी। एम्स में 26 फरवरी को मेरा इलाज हुआ। लेकिन अब इसकी दवाइयों के खर्च मैं नहीं उठा पा रहा हूं।

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