रायपुर के श्री रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस एंड रिसर्च (एसआरआईएमएसआर) में ओपीडी-आईपीडी मानकों को पूरा करने के लिए स्वस्थ लोगों को मरीज बनाकर भर्ती किया जाता था। इसके लिए पचेड़ा, तुलसी, बख्तरा, भखारा सहित कई अन्य गांवों से स्वस्थ लोगों को बस से हॉस्पिटल तक पहुंचाया जाता था। इसके बदले प्रत्येक व्यक्ति के नाम से 200 रुपए का पेमेंट पेशेंट के एजेंट को किया जाता था। इतना ही नहीं इंस्टीट्यूट में पढ़ रहे थर्ड ईयर और फाइनल ईयर के मेडिकल स्टूडेंट्स को निरीक्षण टीम के सामने फैकल्टी स्टाफ बताया जाता था। भास्कर टीम की ओर से यह खुलासा एसआरआईएमएसआर के पेशेंट एंड फैकल्टी मैनेजमेंट की इन्वेस्टीगेशन में हुआ है। भास्कर रिपोर्टर को पड़ताल के दौरान एसआरआईएमएसआर के अटेंडर लोकेश सिन्हा ने बताया कि अस्पताल में स्वस्थ लोगों को मरीज बनाकर मितानिन और झोलाछाप डॉक्टर मैनेजमेंट करते हैं। एसआरआईएमएसआर प्रबंधन ने हॉस्पिटल फर्जीवाड़ा से पेशेंट फ्लो को मानकों के अनुरूप रखने के लिए पेशेंट एजेंट्स का एक सिस्टम तैयार किया था। इसके तहत पचेड़ा, बख्तरा, तुलसी गांव के युवाओं को हॉस्पिटल में वार्ड अटेंडेंट की पोस्ट पर पदस्थ किया गया। लेकिन, इनसे गांवों से स्वस्थ लोगों को हॉस्पिटल में रजिस्टर्ड कराने का काम बतौर पेशेंट एजेंट कराया जाता था। एमबीबीएस कोर्स की मान्यता के लिए होने वाले इंस्पेक्शन के ठीक पहले बड़ी संख्या में स्वस्थ लोगों को बीमार बताकर हॉस्पिटल लाया जाता था। ऐसा पिछले तीन साल से ज्यादा समय से किया जा रहा था। एनएमसी निरीक्षण के एक हफ्ते पहले कॉलेज को मिलती थी इंस्पेक्टर्स की सूची हॉस्पिटल में जाने पर एक दिन के मिलते थे 150 रुपए
पचेड़ा गांव की 70 वर्षीय शांति बाई स्वस्थ हैं। वह कहती हैं कि रावतपुरा मेडिकल कॉलेज में बतौर मरीज जाने पर 150 रुपए प्रतिदिन के मिलते थे। वह हफ्ते में दो दिन जाती थीं। कॉलेज से बस आती थी, उसी बस से कॉलेज जाती थीं। वह दो महीने पहले भी रावतपुरा मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में मरीज के रूप में गई थीं। तब उन्हें दो दिन के 200 रुपए मिले थे। बीमार नहीं था, मरीज बनकर 5 बार अस्पताल में भर्ती हुआ
रावतपुरा मेडिकल कॉलेज से 2 किमी दूर पचेड़ा गांव के 65 वर्षीय चैतूराम ने बताया कि जून-जुलाई में बीमार नहीं थे। पर अस्पताल में मरीज बनकर गए थे। इसके लिए 100 रुपए प्रतिदिन मिलने थे, जो अब तक नहीं मिले। पिछले साल भी बगैर बीमारी के 5 बार अस्पताल में भर्ती हुए थे। घर आने के बाद अस्पताल के एजेंट ने मरीज बनने के पैसे दिए थे। निरीक्षण के समय एनएमसी इंस्पेक्टर्स को अस्पताल की ओपीडी और आईपीडी में पर्याप्त संख्या में मरीज भर्ती दिखा सकें। इसके लिए फर्जी मरीज भर्ती किए जाते थे। एनएमसी की ओर से मान्यता के लिए कॉलेज का इंस्पेक्शन कब और किन डॉक्टर्स की टीम करेगी? यह जानकारी कॉलेज को निरीक्षण के एक हफ्ते पहले मिल जाती थी। कॉलेज का निरीक्षण करने वाले इंस्पेक्टर्स को निरीक्षण रिपोर्ट फेवरेवल बनाने के निर्देश थे। इसके बदले में इंस्पेक्शन के पहले एनएमसी अफसर, इंस्पेक्टर्स और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अफसरों को हवाला के जरिए घूस दी जाती थी। इंस्पेक्टर पेशेंट्स से नहीं करते थे पूछताछ: मान्यता के लिए कॉलेज का इंस्पेक्शन करने वाले इंस्पेक्टर्स निरीक्षण में सिर्फ औपचारिकता पूरी करते थे। इंस्पेक्शन टीम के सदस्य ओपीडी और आईपीडी पेशेंट से उनकी बीमारी, इलाज की व्यवस्था को लेकर पूछताछ नहीं करते थे। ऐसा नेशनल मेडिकल कमीशन की मान्यता और इंस्पेक्शन शाखा में पदस्थ अफसरों के साथ कॉलेज मैनेजमेंट की सांठगांठ होना है। फर्जी मरीज को 150 और एजेंट-मितानिन को रोज के 25-25 रु. एसआरआईएमएसआर प्रबंधन पेशेंट एजेंट को प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति को हॉस्पिटल में मरीज के रूप में रजिस्टर कराने के लिए 200 रुपए देता था। एजेंट अस्पताल से प्रति पेशेंट के हिसाब से मिले पैसों मेें 25 खुद और 25 रुपए गांव से मरीज भेजने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ता (मितानिन) को कमीशन देता था। मेडिकल कॉलेज मान्यता स्कैम टीम@ हेल्थ मिनिस्ट्री एंड नेशनल मेडिकल कमीशन