राजस्थान में मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व को 11 साल बाद फिर से बसाने की तैयारी है। यहां 2018 से बाघ-बाघिन को शिफ्ट करना शुरू किया था। बीते छह साल में शावक समेत दो बाघ लापता हो चुके हैं। 3 की मौत हो चुकी है। अब अभेड़ा बॉयोलोजिकल पार्क में रह रही 22 महीने की मादा शावक को बुधवार को रिजर्व में छोड़ा गया। इसके बाद दो बाघिन को मध्य प्रदेश से लाकर यहां छोड़ा जाएगा। एक्सपर्ट का कहना है कि- एक बाघ और एक बाघिन के छोड़ने से मुकुंदरा आबाद नहीं हो पाएगा। जब तक सही अनुपात में बाघ और बाघिन नहीं होंगे। इनमें आपसी संघर्ष नहीं होगा। न तो इनका कुनबा बढ़ेगा और न ही इन्हें ये जगह पसंद आएगी। ऐसे में मुकुंदरा को बाघों का घर बनाने के लिए सरिस्का और कूनों (मध्य प्रदेश) जैसे प्रयास करने होंगे। आखिर क्यों 6 साल में भी मुकुंदरा आबाद नहीं हो पाया? क्यों बाघ यहां रह नहीं पा रहे? ऐसे ही सवालों के जवाब पढ़िए इस रिपोर्ट में… दो टाइगर नहीं बना सकते टेरिटरी
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट डॉ. सुधीर गुप्ता कहते हैं- मुकुंदरा में जब तक सही संख्या और सही अनुपात में टाइगर नहीं लाए जाएंगे तब तक ये आबाद नहीं होगा। एक-दो टाइगर छोड़ने से रिजर्व में बाघों का कुनबा नहीं बढ़ेगा। न ही वह अपनी टेरिटरी बना पाएगा। बाघों को यह रास नहीं आएगा। बीते दिनों की घटनाओं पर गौर करें तो मुकुंदरा का नर बाघ तीन बार चंबल नदी पार करके चित्तौड़गढ़ के बेगूं तक चला गया था। उसका बार-बार भटकना इस बात का सबूत है कि उसे साथी नहीं मिल रहा। ये स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक सही संख्या व अनुपात में यहां टाइगर नहीं लाए जाएंगे। टाइगर रिजर्व में बाघों की आबादी बढ़ाने के लिए 2 नर, 5 मादा (2:5) के अनुपात में टाइगर लाना जरूरी है। 1 जोड़े से टाइगर रिजर्व का भविष्य नहीं है। मेटिंग के लिए मैच्योर जोड़ा नहीं
डॉ. गुप्ता ने बताया कि मुकुंदरा में अभी एक मेल टाइगर है। दूसरी जो फीमेल टाइगर है उसकी उम्र अभी कम है। मेटिंग के लिहाज से ये जोड़ा मैच्योर नहीं है। अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क (कोटा) से एक और मादा शावक को रिजर्व में छोड़ा जाना है। उसे फिलहाल 8-10 महीने एनक्लोजर में रखा जाएगा। जंगल के तौर तरीके से वाकिफ होने के बाद उसे खुले में छोड़ा जाएगा। वो भी एक डेढ़ साल तक मेटिंग के लिए मैच्योर नहीं होगी। इससे उनका अनुपात सही नहीं बैठेगा। सरिस्का और कूनो की तरह छाेड़ने होंगे टाइगर एक्सपर्ट ने बताया कि मुकुंदरा में टाइगर का कुनबा बढ़ाने के लिए यहां सरिस्का और कूनो की तरह काम करना होगा। जब सरिस्का में बाघ नहीं बचे तो एक के बाद एक, कई बाघ-बाघिन को यहां छोड़ा गया। इसी का नतीजा था कि 5 साल में ही सरिस्का टाइगर रिजर्व पूरी तरह आबाद हो गया। ऐसा ही कूनो में किया गया। यहां बड़ी संख्या में चीते लाए। इनमें कुछ मर गए और कुछ आबाद हो गए। जो बच गए उन्होंने अपना कुनबा बढ़ा लिया। आज कूनो में चीतों की संख्या अच्छी-खासी है। सरिस्का: 2006 तक सरिस्का टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था। 2008 में टाइगर बसाने का प्रोसेस शुरू किया गया। साल 2018 तक बैक-टू-बैक यहां 10 से ज्यादा टाइगर रणथंभौर से लाकर छोड़े गए। इसके बाद रिजर्व में टाइगर की मेटिंग शुरू हुई। फिर शावक होने से टाइगर की संख्या बढ़ने लगी। महज 5 साल में ही यहां टाइगर की संख्या 42 तक पहुंच गई। इसका एक ही कारण था कि बाघ और बाघिन की संख्या उनकी टेरिटरी और उनके व्यवहार के अनुसार एकदम सही थी। कूनो : कूनो में पहले राउंड में 12 व दूसरे राउंड में 8 चीते लाकर बसाए गए। समय निकलने के साथ ही चीतों की मौत की सूचनाएं आने लगीं। देखते ही देखते 8 चीतों की मौत हो गई। कूनो में केवल 12 चीते ही बचे थे। लेकिन बचे हुए चीतों की संख्या उस अनुपात में थी कि धीरे-धीरे शावकों की संख्या बढ़ने लगी। आज कूनो में चीतों की संख्या बढ़कर 24 के करीब हो गई है। रणथंभौर में बाघ बढ़े तो छोटी पड़ गई टेरिटरी
डॉ. सुधीर गुप्ता बताते हैं- आदर्श स्थिति में एक टाइगर 30 स्क्वायर किलोमीटर में अपनी टेरिटरी बनाता है। रणथंभौर में टाइगर की संख्या बढ़ी तो बाघ की टेरिटरी छोटी होने लगी। संख्या बढ़ने से टाइगर छोटी-छोटी टेरिटरी बनाने लगे। टेरिटरी की साइज 30 स्क्वायर किलोमीटर से घटकर करीब 15 स्क्वायर किलोमीटर रह गई। वर्तमान में संख्या के हिसाब से रिजर्व (जगह) छोटा पड़ने लगा है। टाइगर आसानी से देखने को मिल रहे हैं। टाइगर में आपसी संघर्ष की घटनाएं सामने आने लगी। इसी कारण से रणथंभौर में पिछले कुछ वर्षों में संख्या की आशा के अनुरूप बढ़ोतरी नहीं हो रही है। टाइगर टेरिटरी की तलाश में भटक रहे हैं या आपस में लड़ रहे हैं। दावा: मुकुंदरा सबसे बेहतर, लेकिन टाइगर शिफ्टिंग का तरीका गलत
डॉ. गुप्ता ने बताया कि मुकुंदरा रिजर्व रणथंम्भौर से ही सटा है। रणथंभौर से रामगढ़ सेंचुरी व इंदरगढ़ होते हुए मुकुंदरा तक दो अलग-अलग कॉरिडोर बने हैं। रणथंभौर के टाइगर इस कॉरिडोर में आते रहे हैं। यहां का वातावरण व जलवायु टाइगर के लिए सबसे बेहतर है। यहां तेजी से टाइगर की संख्या बढ़ सकती है। अभी तक जो तरीका अपनाया गया, वो छोटी पॉपुलेशन को स्थापित करने की कोशिश थी। किसी भी जगह जब एक ही जोड़ा होता है तो उसे बढ़ने के बराबर मौके नहीं मिलते। टाइगर के नेचर में है कि वे आपस मे एक कॉम्पिटिशन रखते हैं। अपनी टेरिटरी बनाते हैं। अन्य टाइगर की मौजूदगी कई बार उन्हें अलग माहौल देती है। 2018 में बिना परमिशन के लाया गया था पहला टाइगर
डॉ. गुप्ता ने बताया साल 2012 में मुकुंदरा का नोटिफिकेशन जारी हुआ। 2013 में टाइगर रिजर्व डिक्लेयर हुआ। 2017 तक रिजर्व में बाघ नहीं लाया जा सका। साल 2018 में पहला बाघ बूंदी के रामगढ़ अभ्यारण्य से लाया गया था। उस समय NTCA से परमिशन नहीं मिली थी। बिना परमिशन के बाघ लाने पर मामला हाई कोर्ट तक गया। इसके बाद 2018 में कोटा में देशभर के टाइगर एक्सपर्ट बुलाकर वर्कशॉप आयोजित की गई। मुकुंदरा में बाघ बसाने की पूरी टाइमलाइन
-अप्रैल 2018 में रामगढ़ से पहला टाइगर लाया गया। इसे MT-1 नाम दिया गया। -इसके बाद 2019 में रणथंभौर से एक बाघिन को लाया गया, जिसे MT 2 नाम दिया गया। – बाघिन के आने के दो महीने बाद ही एक बाघ रणथंभौर से घूमता हुआ, मुकुंदरा पहुंच गया। उसे MT-3 नाम दिया गया। – साल 2019 में एक और बाघिन को रणथंभौर से मुकुंदरा लाया गया। एनक्लोजर के बाहर खुले क्षेत्र में छोड़ा गया। उसे MT 4 नाम दिया गया। – जुलाई 2020 में बाघ MT 3 की मौत हुई। मशालपुरा वाटर पॉइंट के पास बाघ का शव मिला था। – करीब 10 दिन बाद बाघिन MT 2 का शव मिला था। MT 2 के साथ दो शावक थे। इनमें से एक कि मौत हो गई। एक लापता हो गया। ऐसा कहा जाता है कि बारिश के समय टाइगर का मेटिंग का समय होता है। जानकर बताते हैं कि बाघिन के साथ जब शावक होते हैं तो मेटिंग नहीं करती। संभवत: मेटिंग के लिए MT 3 व MT 2 के बीच संघर्ष हुआ। इसके चलते MT 3 की मौत हुई। संघर्ष में MT 2 ने भी घायल होकर दम तोड़ दिया। उसके एक शावक ने भी इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। -कुछ समय बाद साल 2020 में ही मुकुंदरा का पहला बाघ MT 1 भी लापता हो गया, जिसके रेडियोकॉलर लगा था। -नवंबर 2022 में रणथंभौर से एक बाघ मुकुंदरा लाया गया। उसे MT 5 नाम दिया गया। -मई 2023 में बाघिन MT 4 की मौत हो गई। अप्रैल महीने में बाघिन बीमार थी। बाघिन के 90 दिन का गर्भ था। -अगस्त 2023 में रणथंभौर से एक और बाघिन को लाया गया, जिसे MT 6 नाम दिया गया। -अभी मुकुंदरा में MT 5 व MT 6 का जोड़ा है।


