सरगुजा जिले के मैनपाट में बने एक प्रायमरी स्कूल, आंगनबाड़ी भवन और किचन पिछले 19 सालों से एक ही भवन में चल संचालित हो रहा है। दरअसल स्कूल का भवन स्वीकृत किया गया था, लेकिन तत्कालीन सरपंच-सचिव स्कूल भवन का पैसा हजम कर गए। स्कूल अब भी भवन विहीन है। बारिश के दिनों में स्कूल में बच्चों को बांटने आई किताबों को प्लास्टिक से ढंककर रखना पड़ता है। दोबारा स्कूल भवन के लिए प्रपोजल कई बार भेजा गया, लेकिन स्वीकृति नहीं मिली। हालात ये है कि आंगनबाड़ी के बच्चों के लिए भोजन सहायिका अपने घर से बनाकर लाती है। 2006 में खुला था स्कूल यह तस्वीर मैनपाट के कुदारीडीह अंतर्गत जंगलपारा प्रायमरी स्कूल की है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत कुदारीडीह के जंगलपारा में प्रायमरी स्कूल 2006 में खोला गया था। स्कूल भवन के लिए स्वीकृति देते हुए राशि भी जारी कर दी गई थी। तत्कालीन अजाक मंत्री गणेशराम भगत ने स्कूल भवन निर्माण की एजेंसी जनभागीदारी समितियों से हटाकर पंचायतों को दे दी। पैसा खा गए जनप्रतिनिधि, नहीं बना स्कूल स्कूल भवन निर्माण की राशि पंचायत के सरपंच, सचिवों ने आहरित कर लिया, लेकिन स्कूल भवन नहीं बनाया। नतीजतन प्रायमरी स्कूल का संचालन आंगनबाड़ी केंद्र जंगलपारा के आंगनबाड़़ी केंद्र में सालों से किया जा रहा है। जंगलपारा का सालों पुराने आंगनबाड़ी भवन की छत जर्जर हो गई है और बारिश में प्लास्टर गिर रहा है। बारिश का पानी अंदर टपक रहा है तो यहां के हेडमास्टर ने स्कूल को किचन शेड में शिफ्ट कर दिया। आंगनबाड़ी के एक हिस्से में भी कुछ बच्चे पढा़ई कर रहे हैं, जहां की स्थिति अब तक ठीक है। सहायिका के बनता है भोजन, शौचालय भी नहीं ग्रामीणों ने बताया कि पंचायत ने स्कूल भवन का निर्माण शुरू किया था, लेकिन नींव और दो लेयर की जोड़ाई के बाद काम आगे नहीं बढ़ सका। प्रायमरी स्कूल का शौचालय निर्माण भी अधूरा है। किचन शेड में स्कूल का संचालन हो रहा है तो भोजन सहायिका के घर बनता है। सहायिका अपने घर से भोजन बनाकर लाती हैं और बच्चों को खिलाती हैं। किचन शेड और आंगनबाड़ी के एक हिस्से में संचालित प्रायमरी स्कूल के बच्चों तीन शिक्षक पढ़ाते हैं। कई बार आवेदन, नहीं हुई सुनवाई स्कूल के हेडमास्टर घनश्याम शरण सिंह ने बताया कि स्कूल की समस्या से कई बार बीईओ, सीईओ एवं जिले के अधिकारियों को अवगत कराया गया, लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो सका। मैनपाट बीईओ योगेश शाही ने बताया कि स्कूल भवन निर्माण के लिए वर्ष 2006 में स्वीकृति मिली थी। तत्कालीन सरपंच ने काम पूरा नहीं किया। जनपद के सीईओ से चर्चा हुई। उन्होंने नए सिरे से स्कूल भवन का प्रस्ताव देने के लिए कहा है। पहले भी प्रस्ताव भेजा जा चुका है, लेकिन वर्ष 2006 में राशि दिए जाने के कारण दुबारा स्वीकृति नहीं मिल पा रही है।