भास्कर न्यूज | राजनांदगांव जैन बगीचे में जारी चातुर्मासिक नियमित प्रवचन में सोमवार को मुनि विनय कुशल श्रीजी के शिष्य मुनि वीरभद्र (विराग) श्रीजी ने कहा कि अपने कर्तव्यों का पूर्ण ईमानदारी से पालन करें। बाप हो तो बाप के दायित्व का पालन करें और बेटा हो तो बेटे के दायित्व का पालन करें। आजकल देखने में यह आ रहा है कि लोग यदि कर्तव्य पूरा करते हैं तो उसका यश भी चाहते हैं। यश के पीछे मत भागो और यश की चाह छोड़कर अपने कर्तव्यों का पूरी निष्ठा के साथ पालन करें। स्वयं को आचार संपन्न बनाएं अर्थात आप जिस पद पर हैं, उस पद की गरिमा का पूरा ख्याल रखें और उसके अनुरूप आचरण करें। परमात्मा के वचन का आत्म चिंतन करें। आत्म कल्याण के लिए यह जरूरी भी है कि हम परमात्मा के वचन का मनन-चिंतन करें व इसका पालन करें। मां-बाप की सेवा करें, उन्हें वृद्धाश्रम न भेजें: जैन संत ने कहा कि आवश्यकताएं कभी खत्म नहीं होती। शरीर को टिकाना है तो भोजन चाहिए। दुख होता है कि मां-बाप को वृद्धाश्रम में रखा जा रहा है। आपको सब कुछ दिया किंतु आपने उनको वृद्धाश्रम भेज दिया। धर्म छोड़कर जीने से अच्छा तो मर जाना है मुनिश्रीजी ने कहा कि अच्छे कार्य का श्रेय हम अपने को देते हैं और यदि कोई कार्य बिगड़ जाता है तो उसका दोष हम दूसरों पर मढ़ देते हैं। हम यह जानने की कोशिश नहीं करते कि आखिर यह गलती क्यों हुई? और हम यह मानने की कोशिश भी नहीं करते हैं कि जो कुछ हो रहा है वह कर्मों कारण हो रहा है। हम यह सोचते नहीं और तत्वों का चिंतन करते नहीं। धर्म छोड़कर जीने से अच्छा तो मर जाना है। आजकल सेवक बड़े हो गए हैं और परमात्मा गौण हो गए हैं। इसके पीछे कारण यह है कि हमारी दृष्टि परिवर्तित हो गई है। कहा कि दृष्टि एक समान जरूर रखें किंतु आदर सम्मान का भी पूरा ध्यान अवश्य रखें और जो जितने सम्मान के पात्र हैं, उन्हें वह सम्मान अवश्य दें।