रांची का बड़ा तालाब… 1842 में 53 एकड़ में बना था, अब 17 एकड़ में सिमट गया

कभी रांची की पहचान रहा बड़ा तालाब लगातार सिकुड़ता जा रहा है। ब्रिटिश अफसर कर्नल ऑनस्ले ने 1842 में जब कैदियों से इसे बनवाया था, उस समय यह 53 एकड़ में फैला था। लेकिन, जैसे-जैसे रांची बढ़ती गई, तालाब सिकुड़ता गया। अब यह महज 17 एकड़ में रह गया है। 36 एकड़ जमीन गायब हो गई यानी करीब 68 फीसदी। यह खुलासा डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय (डीएसपीएमयू) की बॉटनी विभाग की टीम के शोध से हुआ है। बॉटनी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अशोक कुमार नाग और उनके रिसर्च स्कॉलर अक्षय कुमार वर्मा ने इस तालाब पर चार साल तक शोध किया।

स्वास्थ्य-पर्यावरण पर खतरा तालाब का पानी उपयोग लायक नहीं रहा। हानिकारक बैक्टीरिया से पाचन और आंत संबंधी रोग फैल सकते हैं। दूषित शैवाल से जलजनित बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। शहर की जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन को भी नुकसान। प्रदूषण की मुख्य वजह… बड़ा तालाब में सीधे सीवेज का बहाव हो रहा है। कचरे और दूषित पानी की बिना रोक-टोक डंपिंग। कंक्रीटकरण और सफाई की कमी। {तालाब का अतिक्रमण, जिससे आकार सिकुड़ा। सफाई न होने से हानिकारक बैक्टीरिया और शैवाल पनपे। शोध का निष्कर्ष : तालाब का पानी पूरी तरह असुरक्षित शोध टीम ने तालाब को पांच जोन में बांटकर हर तीन महीने में पानी के नमूने की जांच की। इसमें जोन-5 में सबसे अधिक प्रदूषण मिला। पता चला कि पानी में ई. कोलाई और माइक्रोसिस्टिस जैसे हानिकारक बैक्टीरिया की भरमार है। बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) और केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (सीओडी) का स्तर इतना अधिक है कि पानी उपयोग के लिए पूरी तरह असुरक्षित है। शोध में 13 ऐसे शैवाल मिले, जो सिर्फ प्रदूषित पानी में ही जीवित रह सकता है। तालाब को तत्काल प्रदूषण मुक्त करने की जरूरतबड़ा तालाब प्रदूषण और अतिक्रमण का शिकार हो चुका है। तालाब को प्रदूषण मुक्त करने को लेकर अभी कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में यह ऐतिहासिक धरोहर की स्थिति और खराब हो जाएगी। डॉ अशोक कुमार नाग, शिक्षक बॉटनी, डीएसपीएमयू

FacebookMastodonEmail

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *