राज्य बनने के बाद-हुआ था कर्मचारियों की पेंशन का बंटवारा:पेंशन का हिस्सा दबाए था मप्र, जब दस्तावेज डिजिटलाइज हुए तो एक साल के 1685 करोड़ छत्तीसगढ़ को वापस मिले

वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश के विभाजन से जब छत्तीसगढ़ बना तो कर्मचारियों का बंटवारा हुआ। उसी समय दोनों प्रदेशों ने कर्मचारियों की पेंशन दायित्वों को भी आपस में बांटा गया। तय हुआ कि जो कर्मचारी छत्तीसगढ़ आए हैं, जब वे रिटायर होंगे तो उनकी अविभाजित मप्र में जितने वर्ष की सेवा होगी उसकी पेंशन में 73.38 फीसदी हिस्सा मप्र देगा बाकी 26.62 प्रतिशत छत्तीसगढ़ दिया करेगा। बाकी जितनी सेवा छत्तीसगढ़ में की है, उसका पूरा छत्तीसगढ़ सरकार देगी। यह भी तय हुआ कि रिटायर होने पर कर्मचारी की पहली पेंशन कोषालय के माध्यम से मिलेगी, बाकी बैंक के माध्यम से दी जाएगी। कर्मचारियों को पेंशन मिलने के बाद बैंक को राशि छत्तीसगढ़ सरकार देगी। मप्र अपने हिस्से की राशि महालेखाकार के माध्यम से छत्तीसगढ़ कोष को भेज दिया करेगा। भाजपा सरकार बनने के बाद वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने विभागीय समीक्षा की ताे उन्होंने ​पेंशनर्स रिकाडर्स को डिजिटलाइज करने का निर्देश दिया। जब रिकाडर्स चेक करना शुरू हुए तो पहली बार यह पकड़ में आया कि मप्र तो अपना हिस्सा छत्तीसगढ़ को भेज ही नहीं रहा है। यह बात कभी कोई पकड़ नहीं पाया इसलिए इससे जुड़े पत्राचार भी नहीं मिले। पहली बार जब यह गलती पकड़ में आई तो छत्तीसगढ़ शासन ने मध्यप्रदेश सरकार को पत्र लिख 2024-25 के लिए पेंशन का अंशदान 1685 करोड़ रुपए देने की मांग की। हाल ही में यह राशि मप्र सरकार ने छत्तीसगढ़ कोष में जमा करवा दी है। विभाग की मानें तो अब हर साल इतनी राशि तो छत्तीसगढ़ सरकार की बचेगी। अब समझें पूरे मामले को: 2012 में जब बैंकों को सेंट्रल पेंशन प्रोसेसिंग सेंटर बनाया गया तो कर्मचारियों को सीधा नाता संचालनालय से नहीं रहा। पेंशन संचालनालय केवल पहली पेंशन कर्मचारियों को देता था और दूसरी बैंक से सीधे आने लगी। 9 सरकारी बैंकों को सेंटर बनाया गया उन सभी की मुख्य ब्रांच भोपाल में थी। 80 प्रतिशत कर्मचारियों का खाता एसबीआई में है। अब बैंकों को एक शीट बनानी थी जिसमें दोनों प्रदेशों के शेयर का जिक्र होता, लेकिन बैंकों ने ऐसा नहीं किया। छत्तीसगढ़ सरकार पूरी पेंशन की राशि भेजती और वह सीधे पेंशनर्स को ट्रांसफर कर दी जाती। 2022 में इन बैंकों के सेंटर रायपुर में आए। जांच में जब बैंकों से शीट मांगी गई तो उनके पास नहीं मिली। यहीं से गलती पकड़ में आई। डिजिटल करते समय कागज आए पकड़ में: पेंशन संचालनालय के संचालक रितेश अग्रवाल बताते हैं कि हमें डेटा को डिजिटलाइज कर इस गलती को पकड़ने में चार महीने लग गए। पहले करीब 1.4 लाख लीगेसी ऑफलाइन पेंशन भुगतान आदेशों (पीपीओ) का स्कैनिंग और डिजिटलाइजेशन किया गया। ये रिकॉर्ड, 2000 में राज्य विभाजन के बाद मैनुअल रजिस्टरों, जिला कोषागारों और नौ बैंकों (अब आठ) के अभिलेखागारों में बिखरे थे। हमने दोनों राज्यों के बीच तय हुए पेंशन अनुपात मेंं एकीकृत डेटाबेस बनाया। हर महीने 1.25-1.50 लाख पीपीओ के लेनदेन को अनुपात में बांटकर समझना चुनौतीपूर्ण था। हमने डेटा को सरल करने में एआई तकनीक का उपयोग किया। बैंकों ने 2011-12 से लेकर 2024-25 तक के डेटा को पेंशन के अनुपात में बांटकर तैयार किया गया। इसके बाद सहायक खाता बही संशोधित की गई और इसे महालेखाकार कार्यालयों ने सत्यापित किया। अब हर महीने 150 से 200 करोड़ रुपये की स्थायी बचत सरकार को होगी। 1.42 लाख कर्मचारियों को 8-10 हजार करोड़ तक की दी जाती है पेंशन फैक्ट फाइल मध्यप्रदेश से आए सभी 51000 कर्मचारी 2040 तक हो जाएंगे रिटायर एक मामले से समझें कहानी
रामप्रकाश ने 30 साल नौकरी की। इसमें से 20 साल वे मप्र में रहे। विभाजन के समय छत्तीसगढ़ आ गए। जब रिटायर हुए तो उनकी पेंशन 30 हजार रुपए तय हुई। इसमें से 21,996 रुपए मप्र से आने थे और बाकी 8,004 रुपए छत्तीसगढ़ कोष से जाना था। लेकिन पूरी 30 हजार पेंशन छत्तीसगढ़ सरकार बैंक को देती गई और मप्र से अंशदान आया ही नहीं। एक मामले से समझें कहानी
रामप्रकाश ने 30 साल नौकरी की। इसमें से 20 साल वे मप्र में रहे। विभाजन के समय छत्तीसगढ़ आ गए। जब रिटायर हुए तो उनकी पेंशन 30 हजार रुपए तय हुई। इसमें से 21,996 रुपए मप्र से आने थे और बाकी 8,004 रुपए छत्तीसगढ़ कोष से जाना था। लेकिन पूरी 30 हजार पेंशन छत्तीसगढ़ सरकार बैंक को देती गई और मप्र से अंशदान आया ही नहीं। डेटा और तकनीक का सही प्रयोग हो तो इतिहास भी सुधारा जा सकता है। पेंशन विभाग और संचालनालय का 1685 करोड़ रु. वापस लाना प्रेरणास्रोत है। इसका अर्थव्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।
-ओपी चौधरी, वित्त मंत्री, छत्तीसगढ़ मुख्यमंत्री, वित्त मंत्री और सचिव के मार्गदर्शन और टीम के परिश्रम से ही यह हो पाया है। बैंक, एजी व मप्र से समन्वय कर डिजिटल गवर्नेंस से तकनीकी त्रुटि का सुधार कम समय में संभव हुआ।
-रितेश अग्रवाल,संचालक, कोष लेखा पेंशन

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